Site icon Youth Ki Awaaz

“क्या बिहार में जातीय जनगणना से संभव है सामाजिक समानता?”

Caste census in Bihar

Caste census in Bihar

इतिहास गवाह है तमाम अड़चनों और संसाधनों के अभाव में भी बिहार ने हर बार इतिहास बनाया है। प्राचीन काल से अब तक बिहार ने इतिहास के पन्नों पर कई स्वर्णिम अध्याय लिखे हैं। इसी प्रकरण में 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन, बिहार सरकार द्वारा सफलता पूर्वक संपन्न किए गए जातिगत जनगणना के आंकड़े को प्रकाशित करना एक क्रांतिकारी कदम रहा। इसके लिए बिहार सरकार के साथ-साथ हर वो व्यक्ति बधाई का पात्र है जो इस जनगणना में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा था।

पहले कब हुई थी जातीय जनगणना

भारत में जातिगत जनगणना आखिरी बार 1931 में करवाई गई थी और इसके आंकड़े भी जारी किए गए थे। हालांकि 1941 में जनगणना तो हुई परंतु आंकड़े प्रकशित नहीं हो सके थे। उसके बाद समय-समय पर जातिगत जनगणना करवाने की मांग उठती रही परन्तु जनगणना हो नहीं पाया। ऐसे में बिहार सरकार का ये कदम स्वागत योग्य है क्योंकि लगभग 90 साल बाद किसी राज्य ने साफलतापूर्वक जातिगत जनगणना करवाया और रिपोर्ट भी प्रकाशित किए।

क्या बताती है यह रिपोर्ट

इस रिपोर्ट के अनुसार बिहार की आबादी लगभग 13.07 करोड़ से कुछ ज़्यादा है। इसमें जातिगत रूप से सबसे अधिक अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी 63% है जो अति पिछड़ा वर्ग-27.12% और अत्यंत पिछड़ा वर्ग-36.01 % में बंटा हुआ है। वहीं अनुसूचित जाति 19.65%, अनुसूचित जनजाति-1.68% और सवर्ण-15.5% के साथ बिहार की जनसंख्या के भागीदार है। वैसे तो ये आंकड़े पहले से अनुमानित हैं परंतु जनगणना के पश्चात अब स्पष्ट तौर पर सामने आ गए हैं।

क्या होगा राजनीतिक मायने

इन आंकड़ों के आने से भारतीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा इस पर पक्ष और विपक्ष की राय में बहुत तालमेल नहीं दिख रहा है। परंतु इस बात में कोई शक नही के इस रिपोर्ट का प्रभाव राजनीति में ज़रूर पड़ेगा । जहां अब तक राजनीति धर्म के आधार पर केंद्रित थी वही अब धर्म में अलग अलग जाती के आंकड़े एक नया समीकरण तैयार केरेंगे। वैसे तो 1990 में मंडल आयोग के रिपोर्ट में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की गई थी। लेकिन अब जो आंकड़े सामने आए हैं उसमें ओबीसी कुल जनसंख्या का 63% हैं, ऐसे में फिर से ‘जिसकी जितनी संख्या भारी उतनी उसकी हिस्सेदारी’ जैसी मांग ज़ोर पकड़ने लगी है।

चुनाव में अहम भूमिका निभा सकती है यह रिपोर्ट

जबकि साल 1992 में उच्चतम न्यायाल ने इंदिरा साहनी मामले में ही जाति-आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय कर दी थी, तो ऐसे में कोई भी पार्टी आरक्षण में जोड़-तोड़ करने का कितना जोख़िम उठाएगी ये तो वक़्त के साथ देखा जाएगा। लेकिन विशेषागों की राय है कि 2024 के चुनाव पर इस जनगणना का असर देखने को मिल सकता है। इसमें कोई दो राय नही के अब हर जाति अपनी जाति के जनसंख्या के आधार पर चुनाव में हिस्सेदारी चाहेगी।

क्या हाशिए पर रह रहे लोग आएंगे मुख्यधारा में

जैसा कि अब तक हर छेत्र में अगड़ी जाति के लोग ही उच्च पदों पर विराजमान थे, लेकिन अब हर वो तबका जो जनसंख्या के अस्तर पर अपनी ठीक- ठाक हिस्सेदारी रखता है,अब उसमें भी शासन प्रशासन और राजनीति में ज़्यादा से ज़्यादा भागीदारी करने की इच्छा जागृत होगी। वहीं महिला आरक्षण पर बने नए क़ानून नारी शक्ति वंदन में भी ओबीसी और मुस्लिम महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान करने की मांग की जा रही है। इसके लिए विपक्षी दल लगातार केंद्र सरकार से जातीय जनगणना करवाने की मांग कर रही है, जोकि सही भी है। जातीय और आर्थिक जनगणना के बाद इस आरक्षण का लाभ उसके असल हक़दार तक पहुँच पाएगा।

जातीय जनगणना के नुकसान

जातिगत जनगणना के आंकड़े वैसे तो कई मायनों में उपयोगी हैं परंतु इसके कुछ नुकसान भी हैं। जैसे आंकड़ों के सामने आने से जातियों के मध्य मतभेद और प्रतिनिधित्व के लिए संघर्ष बढ़ेगा। किसी जाति विशेष की योजना से अन्य जातियों में तनाव पनप सकते हैं। आरक्षण बढ़ाने की मांग से राजनीति पार्टियों के वोट बैंक का समीकरण ख़तरे में पड़ सकता है। धर्म के भीतर जातिवाद का द्वेष बढ़ सकता है। लेकिन उपर्युक्त शंका के बाद भी, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता के आँकड़े उजागर होने से पहले भी किसी समाज में कौन किस जाति का है ,उस समाज के लोग इस बात से भलीभांति परिचित होते थे और बिना किसी द्वेष और तनाव के रहते आए हैं।

अगर बात आरक्षण की करी जाए तो जाति के साथ-साथ आर्थिक आधार पर भी आरक्षण मिलना चाहिए। जो जितना वंचित है उसे उतना आरक्षण दे कर सामजिक समानता स्थापित करने की ज़रूरत है। किसी भी वंचित या गरीब को इस आधार पर आरक्षण से दूर नहीं रखा जाना चाहिए क्योंकि वो अगड़ी जाति से संबंध रखता है। आरक्षण का मक़सद सामाजिक समानता स्थापित करना होना चाहिए चाहे वो जातिगत स्तर पर हो या आर्थिक स्तर पर हो।

Exit mobile version