Site icon Youth Ki Awaaz

हमर पहाडक रहन सहन (कुमाउनी कविता)

यो छु हमर पहाड स्वर्ग समान

यो छु हमर जनम भूमि महान

डुगं माटक कुढ या हुनी

पाथरक बिधी छत छावनी

शहरक लोग उठण बखत अलार्म धरनी

पहाडक मेष चिड़िया चहकेल उठ जानी

एक एकक आहटेल सब चलनी

मिल जूल बे समाज मे रुनी

चुल मे ज्यौ मडुवक रवट बढुनी

पीनाउक जस साग लगूनी

चार पांच तो भैंस रुनी

या बुवारी दूर जंगल बे घा काट लुनी

प्यास लागढ बखत धारक पाण पि लिनी

या शुद्ध हाव शुद्ध पाण पिनि

या मेष किसानी ले करनी

धान गियु भर पेट खानी

उत्तराखंड की दो प्रमुख भाषाओं में एक कुमाउनी में यह कविता बागेश्वर जिला के कपकोट ब्लॉक स्थित कन्यालीकोट से महिमा जोशी ने चरखा फीचर के लिए लिखा है. 19 वर्षीय महिमा ने इस कविता के माध्यम से उत्तराखंड की महान और पावन धरती की महत्ता और इसकी प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है

Exit mobile version