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बिहार में नशामुक्ति अभियान के सायें में पनपता ज़हर

2016 में बिहार में शराब निषेध कानून लागू हुआ तब से अभी तक राज्य में अलग – अलग हिस्सों में नकली शराब से मरने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है| इन्डियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के अनुसार, सरकारी आंकड़ों बताते है की अब तक राज्य में कुल 199 आधिकारिक मौतें दर्ज की गई हैं और यदि संदिग्ध जहरीली मौतों को शामिल किया जाए तो मृतकों की संख्या 269 हो जाती है|

बिहार में होने वाली ये मौतों सबका ध्यान बिहार की ओर खींचने तथा सरकार द्वारा शराब निषेध कानून पर दोबारा सोचने को मजबूर करती है| जिनमें से प्रमुख सिलसिलेवार मौतें इस प्रकार है:

सितम्बर-2023, में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में कथित तौर पर जहरीली शराब पीने से दो लोगों की मौत हो गई, जबकि तीन अन्य की आंखों की रोशनी चली गई।

अप्रैल-2023, में पूर्वी चंपारण में जहरीली शराब से 26 लोगों की मौत हुई|

जनवरी-2023, में सीवान में जहरीली शराब पीने से 5 लोगों की मौत हो गई थी|

दिसम्बर-2022, में छपरा में जहरीली शराब से 65 की मौत हुई थी जो की शराबबंदी के बाद सबसे बड़ी त्रासदी|

राज्य में होने वाली मौतों के बाद से सरकार की इस योजना के खिलाफ भी लोग आवाज़ उठा रहे है| लगातार होती इन मौतों पर विशेषज्ञों की माने तो बिहार 2016 में बिहार में शराब निषेध कानून लागू होने के बाद से न केवल शराब का व्यापर बढ़ा है बल्कि अन्य प्रकार के नशे का कारोबार भी बढ़ने लगा है| जिसकी पुष्टि बिहार में पुलिस द्वारा आये दिन शराब और अन्य नशे से जुड़ी चीजों के पकड़े जाने पर होती रहती है|

इसके बाद भी राज्य में नशे से जुड़ी स्तिथि में बेहद आशाजनक बदलाव नहीं आये है, हालाँकि सरकार ने भी शराब की जगह निरा को प्रसारित करना शुरू किया है| परन्तु अब समस्या दूसरी है, अब बच्चे भी इसका आसान शिकार हो रहे है| राजधानी पटना में ही सड़कों, रेलवे स्टेशन, और स्कूलों के बाहर कुछ बच्चों को नशे में घूमते देखा जा सकता है और जो ड्रग्स और अन्य खतरनाक चीजों से अधिक जुड़ा है|

एक खबर के अनुसार, बिहार पुलिस ने अप्रैल 2023 तक 1.16 लाख किलोग्राम गांजा, 1,597 किलोग्राम चरस, 60 किलोग्राम हेरोइन और 300 किलोग्राम अफ़ीम जब्त किया| नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में चरस का सेवन करने वाली आबादी का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से काफी कम है, लेकिन हाल ही में इसमें वृद्धि देखी जा रही है।

राज्य की जेलों में आज बंद होने वालें अधिकतर कैदियों में शराब पिने या नशे का कारोबार करने वाले लोग है| इस मुद्दें पर सिविल सोसाइटी के साथ, पटना हाई कोर्ट सहित सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रिय मानव अधिकार आयोग ने भी राज्य सरकार को एक बार और इसपर सोचने के लिए बोला| जिसके बाद बिहार सरकार ने 2022 में इस कानून में थोड़े बदलाव किये|

अपने फील्ड विजिट के दौरान मैंने पाया की बिहार के बाल सुधारगृहों से लेकर जेलों में भी बच्चों तक की संख्या बढ़ रही है| जेलों में वो बच्चे है जिनकी उम्र दिखने में छोटी लगती है पर काग़ज पर उनके साथ व्यवहार बड़ों जैसा किया जा रहा था|

ऐसा ही एक उदहारण बेऊर सेंट्रल जेल में देखने को मिला जहाँ एक बच्ची की बेल होने बाद भी बेलर नहीं होने की वजह से उसे शनिवार और इतवार आने पर बेऊर सेंट्रल में दो या तीन दिन ज्यादा रहना पड़ा। जबकि कानून यह कहता है की बच्चों और महिलाओं की बेल छुट्टी वाले दिन भी हो सकती है|

उस बच्ची की उम्र बहुत अधिक नहीं होगी क्योंकि मुझे वो सिर्फ 15-17 साल के बीच ही लगी, पर पता नहीं कैसे शादी होने की वजह और आधार कार्ड पर वो 18+ थी। दूसरा पुलिस और जेल अधिकारियों को उसे जेल में बंद करने से पहले जेजेबी, बाल सुधार गृह आदि का ख्याल क्यों नहीं आया यह समस्या थी| सिर्फ शादी हो जाने से कोई बालिग होगा और उनको बाल सुधार गृह नहीं ले जाया जायेगा| यह सोचने पर मजबूर करता है|

वह बच्ची पारिवारिक रूप से तारी और शराब बनाने वाले समाज से आई थी और अपने पति के साथ शराब पीकर पुलिस वालों को गांव के रास्ते में नशे की हालत में पड़ी मिली थी। यहाँ जानने वाली बात यह भी थी की उसके पति की बेल उस बच्चि की बेल से एक महीने पहले ही हो गई थी पर उसके बेल के लिए घर से कोई नहीं आ रहा था। पैसे के आभाव में जेल से बाहर निकलने की प्रक्रिया में उस बच्ची को अधिक रहना पड़ा| बिहार में ऐसी कहानियां लगभग हर जिले में मिल जाएँगी|

यहाँ सवाल यह है की क्या शराब बंदी सफल हो पाई ?

क्या बिहार दूसरे राज्यों की तरह नशे में लिप्त नहीं हो रहा ?

बच्चो को इससे कैसे निकाला जाये ?

शराब बंदी का मकसद नशे से मुक्ति थी| ताकि लोग नशे से दूर रहे और अपने परिवार तथा समाज के विकास पर अधिक ध्यान दें| इस कानून के लागू होने बाद महिलाएं सबसे अधिक खुश थी| इसकी पुष्टि हाल ही में पटना स्थित चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (सीएनएलयू) द्वारा किए गए एक हालिया सर्वेक्षण से भी पता चलता है|

रिपोर्ट में कहा गया है कि 92.12% लोग शराबबंदी के पक्ष में हैं। सर्वेक्षण में शामिल लगभग सभी महिलाओं (99.36%) ने शराबबंदी का समर्थन करते हुए कहा कि इससे उन्हें शांति और पारिवारिक आनंद मिला है| अप्रैल 2016 में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद से राज्य में लगभग 1.82 करोड़ लोगों ने शराब पीना छोड़ दिया है।

हालाँकि, राज्य की जेलों में बंद कैदियों की संख्या इस ख़ुशी को बहुत अधिक टिकने नहीं दे रही| इन आंकड़ों को और गहरे से देखें तो गरीब तबके से आने वाले सबसे अधिक प्रभावित हुए है| जिनके परिवारों के पास उनके बेल करवाने के लिए भी पैसो का आभाव है|

राज्य सरकार द्वारा विधानसभा में उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, जनवरी 2023 तक बिहार में शराबबंदी कानून के तहत कुल 7,49,000 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है| 1 अप्रैल 2016 से 20 फरवरी 2023 तक बिहार में शराबबंदी और उत्पाद अधिनियम के तहत प्रावधानों के उल्लंघन से संबंधित 5.63 हज़ार मामले सामने आए| राज्य में 1.54 करोड़ लीटर विदेशी शराब और 96.71 लाख लीटर देशी शराब जब्त की गई है|

आज राज्य में शराब सहित हर प्रकार के अन्य नशे का व्यापार बढ़ रहा है| बच्चों तक को इसकी लत लगना और फिर स्कूल के बच्चों का इस्तेमाल नशे को बढ़ाने में करने वालों में कानून का डर नहीं होना यह बताता है की समाज और सरकार, दोनों की नैतिकता में गिरावट आई है| इसके साथ ही, यह नीति हजारों लोगों को अपराधी के रूप में पेश कर रही है|

बिहार के गांवों में जब कोई खेतों की मेड पर तारी भी पीता था तो वह गांव के किसी भी बच्चे को वहां से घर जाने को बोल देता था| पर आज बच्चों भी नशे का शिकार हो रहे है और उनको घर भेजने वाला कही नजर नहीं आता| यह बच्चों की शिक्षा को भी प्रभावित करता है| क्यूंकि, नशे की बढती लत, नशामुक्ति अभियान के सायें में एक ज़हर को पनपने देने में मदद कर रहा है|

सरकार को यह समझने की जरूरत है की नशाबन्दी इन्सान को नशे से दूर करने के लिए थी न की किसी को अपराधी बनाने, जेलों को भरने, उनमें तथा उनके परिवार में मानसिक तनाव पैदा करने के लिय| आज न सिर्फ इसे कम करने पर काम करने की जरुरत है बल्कि यह भी देखने की जरुरत है की समाज की वास्तविक भलाई किस दिशा में है|

क्योंकि कोई भी समाज नशामुक्त, नशाबंदी से नही बल्कि लोगों द्वारा नशे की आदत को छोड़ने से होगा। और इसके लिए जरूरी है कि इसी दिशा में काम किया जाए। इसमें महिलाएं एक अहम रोल अदा कर सकती हैं। एक बार महिला सशक्त बन जाती है तो अपने-आप में कई दूसरी चीजे ठीक होने लगती है।

 नशे के बढ़ते प्रभाव को भी उनके द्वारा कम किया जा सकता है। उदाहर के रूप में बिहार की ही एक महिला इंदु देवी, जो खुद नशे की वजह से परिवार की खराब हालत को झेल चुकी है आज शराब के खिलाफ अपने संगीत की मदद से राज्य में नशा मुक्ति अभियान का एक सफल हिस्सा है। 

Reference:

https://www.hindustantimes.com/cities/others/bihar-police-reconstitutes-anti-narcotics-task-force-to-crackdown-on-drug-smuggling-significant-seizures-made-in-recent-past-101685378328783.html#:~:text=Gangwar%20also%20informed%20that%201.16,2019%20and%20arrested%20490%20accused.
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