वो किस्सा आज भी मुँह-ज़बानी है
तस्वीर में दिख रही हंसी बहुत पुरानी है,
ठहाकों से जो गूँज उठती थी महफिल
वो महज आज एक कहानी है।
अपनी मर्ज़ी के हैं मालिक
यही बात सबको जतानी है,
करते थे मन की वो भी डंके की चोट पर
मानो तो ठीक वरना मनमानी है।
बचपना ढूँढते हैं आज
कभी-कभी बच्चे बनकर हम
ये मायूसियत से भरी भला कैसी जवानी है?
एक दिन बैठेंगे खुले आसमान के नीचे
दर्द, खुशी, किस्से, यार
एक पूरी जिंदगी तुम्हें सुनानी है।
जिंदगी अपने शर्तों पर जीना है
हारूँ भी तो खुद की पीठ थपथपानी है,
और वो क्या जितना चाहते हैं हमसे
मेरी लड़ाई खुद से है!
ये बात तो सरेआम पुरानी है।
और तकलीफ़ें तो होंगी ही जिंदगी में
ये मुस्कान क्यों इतनी पुरानी है,
और बड़े बन-जाने पर
खुशियां रूठती नहीं जिंदगी से
बस यही बात सबको समझानी है!