भारत जैसे विशाल भूभाग पर भिन्न-भिन्न जलवायु और भौगोलिक परिस्थिति देखने को मिलती है। मेघालय स्थित मासिनराम और चेरापूंजी जहां सबसे अधिक वर्षा वाले स्थान के रूप में दर्ज है, तो वहीं राजस्थान का जैसलमेर सबसे अधिक सूखा वाला स्थान माना जाता है। जहां देश के अन्य सभी ज़िलों की अपेक्षा न्यूनतम वर्षा दर्ज की जाती है। यही कारण है कि राजस्थान में पानी की समस्या का होना एक आम उदाहरण है। रेगिस्तानी राज्य होने के कारण आज भी यहां के बहुत से गांव पानी को तरस रहे हैं। हालांकि स्थानीय लोगों की समस्या के समाधान के लिए राजा महाराजाओं ने भी काफी प्रयास किया था। इसके तहत बावड़ी, कुंए और तालाब का निर्माण कराया गया। लेकिन इससे पूरी तरह से समस्या का हल नहीं हुआ। यदि लोगों को पीने का पानी मिलने लगा तो सिंचाई की समस्या बनी रही।
पानी की किल्लत से जूझ रहे गाँव
आज़ादी के बाद केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक ने इस समस्या के हल के लिए गंभीरता से ध्यान दिया। इस सिलसिले में 30 मार्च 1958 को महत्वाकांक्षी जल परियोजना ‘राजस्थान नहर’ का शुभारंभ किया गया। इसे बाद में 2 नवंबर 1984 को इसे ‘इन्दिरा गांधी नहर परियोजना’ के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। लेकिन इसके बाद भी लोग पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। दूर दराज़ के कई गांव पानी को तरस रहे हैं। राज्य के बीकानेर स्थित लूणकरणसर ब्लॉक का ढाणी भोपालाराम गांव इसका एक उदाहरण है, जहां के लोग पानी न होने की समस्या का सामना कर रहे हैं। सवाल उठता है कि क्या यह समस्या ऐसे ही राजस्थान के गांव और ज़िलों में परेशानी का कारण बनी रहेगी?
इस संबंध में गांव के निवासी 40 वर्षीय विनोद कहते हैं, “हमारे बुज़ुर्ग बताते थे कि इस गांव में पहले पानी की पर्याप्त व्यवस्था थी। पानी इतना उपलब्ध हो जाता था कि लोग अगली वर्षा तक अपनी सभी ज़रूरतें पूरी कर लिया करते थे। लेकिन अभी कोई व्यवस्था नहीं है। पहले के लोग पानी को इकट्ठा करना जानते थे। आज से कई साल पहले एक कुंई का निर्माण करवाया गया था। उस वक़्त इस गांव जनसंख्या इतनी नहीं थी। बारिश का जो पानी इकट्ठा होता था इससे इनका एक साल निकल जाता था और पशुओं के लिए भी वह उपयोग में लाया जाता था।” उन्होंने बताया कि इस गांव में पहले निवासियों के साथ-साथ पशुओं के लिए भी पानी की उचित व्यवस्था होती थी। लेकिन जैसे-जैसे गांव की जनसंख्या बढ़ने लगी तो उनकी देखरेख भी बंद होने लग गई, जिससे लोगों और पशुओं को पानी की किल्लत से जूझना पड़ रहा है।
पानी की कमी पर नहीं हो रहा काम
ज्ञात हो कि इंदिरा गांधी नहर के तहत लूणकरणसर में पानी आता है जिसका प्रतिदिन का खर्च पांच हज़ार होता है। लेकिन इसके बावजूद पशुओं के लिए पानी की कोई उचित व्यवस्था नहीं हो पाती है। जब बारिश होती है तो लोग पानी इकट्ठा करते हैं जिससे गांव के पशु के पीने के उपयोग में लाया जाता है। जबकि घरों के लिए टैंकर से पानी मंगवाया जाता है, जिसका खर्च लगभग 1000 से 1500 रुपए तक आता है। जबकि गांव वालों की आमदनी इतनी नहीं है कि वह इस खर्च को प्रतिदिन वहन कर सकें। इसीलिए वह बारिश के पानी पर निर्भर रहने लगे हैं। अब तो बारिश होने से एक ही फसल प्राप्त हो पाती है, जिससे ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति लगातार कमजोर और दयनीय होती जा रही है। इस सिलसिले में गांव के एक 75 वर्षीय बुजुर्ग तालुराम जाट कहते हैं, “पानी की कमी के संबंध में हमने गांव के सरपंच से शिकायत भी की है, पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है। पानी का संकट इस स्तर पर आगे बढ़ता जा रहा है कि कोई कुछ नहीं कर पा रहा है। यदि समस्या का जल्द समाधान नहीं किया गया तो गांव वालों को भीषण जल संकट से गुज़रना पड़ सकता है।”
जाति के आधार पर पानी का बंटवारा
राजस्थान में जाति व्यवस्था के संकट ने भी ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट की समस्या को और भी बढ़ा दिया है। इस संबंध में निम्न समुदाय से संबंध रखने वाली गांव की एक किशोरी लक्ष्मी का कहना है, “गांव में जातिवाद के आधार पर पानी का बंटवारा होता है। जब गांव की कुंई में पानी आता है तो सबसे पहले स्वर्ण जाति की महिलाओं को पानी भरने दिया जाता है। इसके बाद ही निम्न वर्ग की महिलाओं को पानी भरने की अनुमति होती है।” उसका कहना है कि इस गांव में जलापूर्ति की सबसे बड़ी समस्या है। सरपंच से बात होने पर भी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। गांव के लोग लूणकरणसर ब्लॉक से पानी का टैंकर मंगवा कर अपना जीवन चला रहे हैं। लेकिन यह समस्या का स्थाई समाधान नहीं है। गांव के निवासी नाथूराम गोंडा का कहना है कि गांव के लोग पहले हैंडपंप की सहायता से पानी निकाल लेते थे। लेकिन उसकी उचित देख-रेख नहीं होने के कारण वह पिछले 15 वर्षों से खराब पड़ी है।
राजस्थान में पानी की समस्या की हालत
वर्तमान में, राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 18 प्रतिशत ही पाइप से पानी की आपूर्ति की जाती है। जिसे जल जीवन मिशन के तहत शत प्रतिशत घरों तक पहुंचाने का लक्ष्य है। 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से जल जीवन मिशन की घोषणा की थी। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों मिलकर काम कर रहे हैं। घरों तक नल के माध्यम से जल पहुंचाने की इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर 3.60 लाख करोड़ रुपए लागत आने का अनुमान है, जिसमें केंद्र सरकार 2.08 करोड़ रुपए का अंशदान दे रही है। जल जीवन मिशन के लिए वित्तीय वर्ष 2020-21 के बजट में 11500 करोड़ आवंटित किए गए हैं लेकिन सरकार द्वारा इतने परियोजनाओं व जल जीवन मिशन जैसे योजनाओं के बाद भी गांव में पानी का संकट दूर होता नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में इसके लिए हर पहलू और हर स्तर पर जल्द से जल्द कार्रवाई की आवश्यकता है।
यह आलेख बीकानेर, राजस्थान से सरिता आचार्य ने चरखा फीचर के लिए लिखा है