Trigger Warning: Mention of violence and gender based violence
अपने माता-पिता और भाई के साथ मणिपुर से भागकर आई 19 वर्षीय लड़की मैरी (नाम बदला हुआ) कहती है, “मेरे राज्य में क्या हो रहा है, मैं अभी भी इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रही हूं।” वे अब दिल्ली में हैं, नए सिरे से अपना जीवन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। मणिपुर में मई की शुरुआत से ही दो समुदायों के बीच जातीय झड़पें देखी जा रही हैं, जिनमें घर जलाए जा रहे हैं, महिलाओं के साथ बलात्कार किया जा रहा है, सार्वजनिक संपत्ति को आग लगाई जा रही है और पुरुषों को पीटा जा रहा है और जिंदा जला दिया जा रहा है। जो परिवार सदियों से अपना जीवन संवार रहे हैं, वे सब कुछ खो चुके हैं। लोग शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हैं।
घर, संपत्ति छोड़ने को मजबूर लोग
इम्फाल में बसे एक मध्यमवर्गीय कुकी परिवार की महिला मैरी नर्स बनने के लिए पढ़ाई कर रही थी। जब तक मैतेई-कुकी संघर्ष ने उसके राज्य को तबाह नहीं कर दिया, तबतक उसका जीवन ठीक था। जैसे ही लड़ाई शुरू हुई, उसके भाई ने देखा कि उनके पड़ोसियों के घर दिन-रात जल रहे थे। वह जानता था कि वे उसके परिवार के लिए आ रहे हैं। उन्होंने वह सब कुछ उठाया जो वे इकट्ठा कर सकते थे, और अपने घर और संपत्ति को पीछे छोड़ते हुए, अपनी जान बचाने के लिए भागे। यह सब कुछ वर्षों की कड़ी मेहनत से बनाया और इकट्ठा किया गया था।
विस्थापितों के लिए शिविरों का बुरा हाल
विस्थापितों के लिए राहत शिविर खचाखच भरा हुआ था। सेना ने उन्हें रोका और वापस लौटने को कहा। वह स्थान अधिक लोगों को नहीं रख सकता था। अपनी सुरक्षा के डर से, उन्होंने अपने घर लौटने के बजाय पूरी रात पास के जंगल में छिपने का फैसला किया। कल्पना करें कि आप किसी जंगल में अंधेरा होने पर रह रहे हैं, न जाने आपका घर अभी भी वहीं है या नहीं, न जाने भीड़ आपके लिए आएगी या नहीं, यह सोचते हुए कि आसपास जानवर और सांप हैं या नहीं, कितने ही डर भरे विचार मन में आते हैं। उन्हें चारों तरफ मौत का सामना करना पड़ा। मणिपुर के बाहर मैरी की चाची और चचेरे भाई संपर्क में रहे। वे भी चिंतित थे। उसकी चाची (मां की बहन) की केवल एक ही प्रार्थना थी – परिवार सुरक्षित रहे और अगले दिन ही राज्य से भागने में सक्षम हो।
हिंसा की कड़वी यादें
कुछ हफ़्ते आगे बढ़ते हुए, परिवार राष्ट्रीय राजधानी में बसने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। मैरी बताती है, “जो कुछ हुआ, मैं उसे नज़रअंदाज़ करना चुन रही हूँ। हम मौत से बच गए और मैं सदमे में हूं।” वह आगे कहती हैं, “यहां तक कि आतिशबाजी या लोगों के चीयरिंग की आवाज भी मुझे डरा देती है।” उसके दोस्त और रिश्तेदार अभी भी राज्य में फंसे हुए हैं, जो अब युद्ध क्षेत्र जैसा लगता है।
अपने शहर लौटने की उम्मीद
उनके भाई ने अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और सेना उन्हें हिंसा से प्रभावित स्थानों में से एक चुराचांदपुर में उनके परीक्षा केंद्र तक ले गई। उसे उम्मीद है कि वह जल्द ही काम करेगा, जबकि मैरी या तो नौकरी ढूंढना चाहती है या दिल्ली में अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती है। जैसे-जैसे वे नए शहर में घुलना मिलना शुरू करते हैं, जिसमें नए सिम कार्ड लेना भी शामिल हैं, परिवार किसी दिन अपने राज्य वापस जाने का सपना देखता है। लेकिन वे अपनी सुरक्षा को लेकर भी चिंतित हैं और इंतजार करेंगे। “हम ऐसे कई लोगों से मिले जिन्होंने हमारी मदद की,” मैरी उन कठिनाइयों को याद करते हुए बताती है जिनसे वे गुज़रे थे।
हमने हिंसा के प्रति सजग होने में की देर
शुक्र है कि मुख्यधारा की खबरें और सोशल मीडिया मणिपुर में संघर्ष के प्रति जाग गए हैं। लेकिन यह विनाशकारी है कि हमने ऐसा दो महिलाओं को नग्न घुमाने के वीडियो वायरल होने के बाद ही किया। बलात्कार और यौन हिंसा जैसे कानूनी अपराध का इस्तेमाल कम प्रभावशाली समूह को चुप कराने के लिए उपकरण के रूप में किए जाने पर मैं बता नहीं सकती कि मैं कितनी क्रोधित हूँ। लेकिन शायद वह एक और लेख होना चाहिए।
प्रधानमंत्री की चुप्पी नहीं, मणिपुर की सुनी जानी चाहिए
एक राज्य में इस कदर भयानक हिंसा होने के बाद, 79वें दिन तक प्रधानमंत्री की चुप्पी राज्य के लिए उचित नहीं है। चूंकि मुख्यमंत्री के अनुसार ‘ऐसे सैकड़ों मामलों’ को वे नियंत्रित करने में असमर्थ रहे, इसलिए दशकों से जैसे मणिपुर को नजरन्दाज़ किया गया है, उसके उलट, मणिपुर के लोगों की बात सुनी जानी चाहिए। उत्तर-पूर्व भारत पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इसे एक कोने में छिपाया नहीं जाना चाहिए।
मैरी उन सभी के लिए न्याय चाहती है जिनके साथ उसके समुदाय का सामना हुआ है और वह फर्जी खबरों के प्रति आगाह करती है। जैसे ही वह अपने नए जीवन में वापस जाती है, वह अपने देश के लोगों से अपील करती है, “मणिपुर के लिए प्रार्थना करें।”
यह लेख पहले अंग्रेज़ी में प्रकाशित हो चुका है। इसे स्पर्श चौधरी द्वारा अनुवादित किया गया है।