देश भर में हर साल 14 सितंबर का दिन हिंदी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। मैं इस लेख में हिंदी दिवस की ना कोई जानकारी देना चाहती हूं या ये बताना चाहती हूं कि हिंदी भाषा का परिचय कैसे हुआ। मैं एक हिंदी वक्ता के दृष्टिकोण से अपनी राय प्रस्तुत करना चाहूंगी। मेरी मातृभाषा मराठी है लेकिन स्कूल के कारण मेरी और हिंदी की दोस्ती हो गई। हिंदी के अध्यापकों की वजह से ये रिश्ता और गहरा हो गया।
हिन्दी दिवस और हिन्दी में बातचीत की झिझक
मेरे स्कूल में हिंदी दिवस मनाया जा रहा था। जो भी भाषण दे रहे थे या प्रस्तुत कर रहे थे वह दर्शक को एक बात बता रहे थे। हिंदी भाषा उनका गर्व है और हिंदी भाषा बहुत महत्तवपूर्ण है। कार्यक्रम ख़त्म होने के बाद एहसास हुआ कि शब्द, क्रिया से कहीं अधिक आसान है। जो लड़की हिंदी भाषा को अपना गर्व कह रही थी उसे हिंदी में बात करने से एक दिन शर्म आ रही थी। आज कल जब कोई हिंदी में बात करे तो अनपढ़ और अंग्रेजी में बात करे तो होशियार। मैं जब ये कहती हूं तब किसी भी भाषा का भेदभाव नहीं करना चाहता। मैं बस आज की पीढ़ी का उदाहरण देना चाहती हूं।
हिन्दी का गलत तरीके से इस्तेमाल
हिंदी अपने आप में एक सुंदर भाषा है। हिंदी में हर एक शब्द की अपनी खुदकी सुंदरता है। उन शब्दों का गलत तरीके से इस्तमाल करना यानि उस शब्द का अपमान करना है। कहीं लोग कुछ शब्दों का गलत इस्तेमाल करते हैं। फिर आगे जाके नये बच्चों को वो शब्द ही सही शब्द लगता है। इसका कारण यही है कि उन्हें मूल शब्द सुनाया ही नहीं गया। उदाहरण के तौर पर मैंने अपनी सहेलियों को “तेरेको”, “मेरेको”, का प्रयोग करते हुए कई बार सुना है। मैंने जब उनसे पूछा तुम सही शब्द क्यों नहीं बोलते तब उनका जवाब कुछ ऐसा था, “हमें कूल दिखना है, कूल लोग ऐसी ही बात करते हैं, तू क्या पंडित है क्या माताश्री, पिताश्री बोलने के लिए।” हर भाषा के हर शब्द की खुदकी पहचान होती है। उसे बदलना यानि उस शब्द के साथ अनुचित करना।
अंग्रेज़ी गर्व का विषय तो हिन्दी क्यों नहीं
हिंदी दिवस के दिन कई सारे अध्यापको ने हिंदी दिवस पर भाषण दिए। कहा हिंदी महतवपूर्ण है। हमारी पहचान है। फिर इस पहचान को अपने ही क्यों मिटाने की कोशिश की? हर इंग्लिश मीडियम स्कूल में बच्चों से स्कूल के वक्त इंग्लिश में बात करने की गुजारिश की जाती है। मेरा शैक्षिक कारण कोई विरोध नहीं है। मुझे बुरा तब लगता है जब हम कक्षा के बाहर हिंदी का इस्तमाल करते हैं और तब कोई अध्यापक हमें डांटते हैं। घर पर अगर कोई रिश्तेदार आए तो सारे माता-पिता की अपेक्षा होती है कि हमारा बच्चा अंग्रेजी में बात करे। अगर उसने अंग्रेजी में अच्छे से बात की तो वो रिश्तों के सामने पिता का गर्व बढ़ाने की परीक्षा पास कर लेता है। हिंदी में बात करना तो उनके लिए आम बात है।
हिंदी भारत की ऐसी भाषा है जो संचार का सूत्र बन चुकी है। यह 2 लोगो को एक दूसरे को जानने का मौका देती है। हिंदी हमारी पहचान बन जाती है। इस पहचान का सिर्फ गर्व करना काफी नहीं है, इस पहचान को बनाए रखना इस समय अधिक महत्वपूर्ण है।