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जानें क्या है ईश्वर और भगवान में भेद?

Difference of Ishwar and bhagwan

Difference of Ishwar and bhagwan

ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः ।

ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा ।।

अर्थ – सम्पूर्ण ऐश्वर्य,धर्म,यश,श्री,ज्ञान और वैराग्य–इन छह का नाम भग है। इन छह गुणों से युक्त महात्मा को भगवान कहा जा सकता है।

श्रीराम व श्रीकृष्ण के पास ये सारे ही गुण थे (भग थे)। इसलिए उन्हें भगवान कहकर सम्बोधित किया जाता है। वे भगवान थे, ईश्वर नहीं। ईश्वर के गुणों को वेद के निम्न मंत्र में स्पष्ट किया गया है।

स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरं शुद्धमपापविद्धम् । कविर्मनीषी परिभू: स्वयम्भूर्याथातथ्यतोऽर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः ।। (यजुर्वेद अ. ४०। मं. ८)

अर्थात वह ईश्वर सर्व शक्तिमान, शरीर-रहित, छिद्र-रहित, नस-नाड़ी के बन्धन से रहित, पवित्र,पुण्य युक्त, अन्तर्यामी, दुष्टों का तिरस्कार करने वाला, स्वतःसिद्ध और सर्वव्यापक है। वही परमेश्वर ठीक-ठीक रीति से जीवों को कर्मफल प्रदान करता है।

क्लेशकर्मविपाकाशयेपरामृष्ट: पुरुषविशेष: ईश्वर ।।

– ( योग दर्शन ; 1/24 )

अर्थ: क्लेश, कर्म, विपाक और आशय से मुक्त विशेष परमात्मा को ईश्वर कहते है।।

ऋगवेद् में कहा गया है:

द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परि षस्वजाते।

तयोरन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्नन्नन्यो अभि चाकशीति॥ ऋ01.164.20

उपर्युक्त मन्त्र का सार यह है कि एक वृक्ष(संसार) है, उस पर दो पक्षी(परमात्मा और जीवात्मा) बैठे हुए हैं, उनमें से एक(आत्मा) वृक्ष(संसार) के फलों का भोग कर रहा है, जबकि दूसरा(ईश्वर) भोग न करता हुआ प्रथम(आत्मा) को देख रहा है। उक्त मन्त्र में वृक्ष संसार का प्रतीक है।

ओ३म् सनातन धर्म का चिन्ह (symbol) नहीं

ओ३म् परमात्मा का सर्वोत्तम व मुख्य नाम है|

यजुर्वेद 40.17

हि॒र॒ण्मये॑न॒ पात्रे॑ण स॒त्यस्यापि॑हितं॒ मुखम्। यो॒ऽसावा॑दि॒त्ये पु॑रुषः॒ सो᳕ऽसाव॒हम्। ओ३म् खं ब्रह्म॑ ॥१७ ॥

भगवान अनेकों होते हैं। लेकिन ईश्वर केवल एक ही होता है। ईश्वर ओम – सच्चिदानंद स्वरूप, निराकार, सर्व शक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वांतर्यामी, अजर,अमर,अभय,नित्य,पवित्र और सृष्टि करता है

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