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भारत में मीडिया का उदय और बदलता स्वरूप

media in India

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एक वक्त ऐसा भी था जब सारे मीडिया चुप थे। जगह दिल्ली शहर दिन बुधवार और तारीख 31 अक्तूबर 1984। अभी सुबह के 09 बजकर 15 मिनट हुए थे। लोग अपने काम पर जाने के लिए निकल पड़े थे। सूरज धीरे-धीरे ऊपर चढ़ते हुए रात की ओस को सुखा रहा था। घड़ी की सुई ने जब 09 बजकर 29 मिनट बजाई तब अचानक से गोलियों के टरटराहट से इस समय सफदरगंज में बना प्रधानमंत्री के ऑफिस का पूरा इलाका गूंज उठा आस-पास के लोग भौंचक रह गए। चारों तरफ़ हलचल और भागादौड़ी का माहौल मच गया। दरअसल सुरक्षाकर्मियों बेअंत सिंह ने अपने सर्विस रिवॉल्वर से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर 3 गोलियां दागी थी और थोड़ी ही दूर पर खड़े सतवंत सिंह से चिल्लाकर कहा था,”देख क्या रहे हो चलाओ गोली।”

सतवंत ने तुरंत अपनी ऑटोमेटिक कार्बाइन की 25 गोलियां इंदिरा गांधी के ऊपर चला दी थी। इसके बाद पूरे इलाके में दहशत का माहौल फैल गया था। लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या की ख़बर दिखाने की हिम्मत उस समय दूरदर्शन से लेकर ऑल इंडिया रेडियो में नहीं थी। लेकिन फॉरेन मीडिया के तौर पर उस टाइम बीबीसी ने ही इंदिरा गांधी के मौत की ख़बर को ब्रेक किया था। इतना ही नहीं इंदिरा गांधी के मौत की ख़बर को ऑल इंडिया रेडियो ने शाम 06 बजे तक टेलिकास्ट ही नहीं हुआ था। उस टाइम इंडियन मीडिया पूरी तरह से एक्सपैंड (विकसित) नहीं था लेकिन अब हालात पूरी तरह से बदल गए हैं।

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