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“भगत सिंह महज धर्म से स्वयं को अलग रखने वाले क्रांतिकारी नहीं थे”

Bhagat Singh, his contributions and ideologies

Bhagat Singh, his contributions and ideologies

क्रांति का एक और नाम जिसे हम इंकलाब कहते हैं और वो कोई और नहीं माँ भारती के महज तेईस वर्षीय पुत्र भगत सिंह संधू के मुख से निकला हुआ वो नारा है जिसने अंग्रेज़ी हुकूमत के दौरान युवाओं को जोड़ने का वो कार्य किया था जिसके बलबूते रक्त प्रवाह शरीर से निकलकर हमारे राष्ट्र की मिट्टी में समाहित हो गया। भगत सिंह ने कहा था कि लिख रहा हूँ मैं अंजाम, जिसका कल आगाज़ आएगा, मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा

क्या है युवाओं का नजरिया

अभी देखने योग्य बात यह है कि भगत सिंह का बलिदान आज कितने युवाओं के रगों में दहन बन कर जीवित है? कितने युवक उस बलिदान का कर्ज़ अपने काँधे पे लेकर चल रहे हैं? किधर है वो युवा पीढ़ी जो अपनी राष्ट्रभूमि के समक्ष अपना मार्ग प्रशस्त कर रहा हो? देखिए स्पष्टीकरण कर के देखा जाए तो ये सोशल मीडिया पर दुःख व्यक्त करने वाले युवा, हाथों में केवल मोमबत्ती लेकर चलने वाले युवा और इन सब में सबसे अव्वल स्वयं को क्रांतिकारी (कॉमरेड) बताते फिरते हुए बड़ बुद्धि वाले युवा का व्यक्तित्व क्या वाकई में भगत सिंह की शहादत को न्यायोचित ठहराता है?

राष्ट्र को महत्व देने वाले क्रांतिकारी

सर्वप्रथम हमें तो ये ज्ञात होनी चाहिए कि क्रांति धर्म का अहम अंग है पर अभी के दौर में क्रांति का जाप करने वाले बगैर धर्म ज्ञान के धर्म से आंतरिक युद्ध करने में तुले हुए हैं। जिन्हें लगता है कि भगत सिंह केवल धर्म से स्वयं को विभिन्न रखने वाले क्रांतिकारी थे। उन्हें बताते चलें कि अपने मातृभूमि के हित में स्वाभिमान के लिए लड़ा हुआ राष्ट्रयुद्ध ही धर्मयुद्ध है। उसके खातिर प्राण त्याग देने वाले योद्धा से बड़ा और कोई धर्म रक्षक नहीं। तो सही मायने में उचित ये होगा कि हम आँखें से वो पर्दे हटाने हटाएं जिनके पीछे का दृश्य यानि उससे जुड़ा इतिहास साक्ष्य है क्योंकि अन्याय के विरुद्ध हाथों में कई बार मोमबत्ती के जगह मशाल लेकर भी चलना होता है। यही है भगत सिंह का माँ भारती के चरणों में समर्पित राष्ट्रयुद्ध, अपने धर्मभूमि का सिर उठाकर राष्ट्रध्वज लहराने हेतु धर्मयुद्ध।

जयंती विशेष पर शहीद भगत सिंह को नमन!

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