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“बचा लीजिये अपने देश और अगली पीढ़ी को नफरत के ज़हर से”

Undated photo of Railway Protection Force (RPF) Constable Chetan Kumar Choudhary who fired from his automatic weapon, killing an RPF Assistant Sub-Inspector (ASI) and three other passengers of the Jaipur-Mumbai Central Express

Undated photo of Railway Protection Force (RPF) Constable Chetan Kumar Choudhary who fired from his automatic weapon, killing an RPF Assistant Sub-Inspector (ASI) and three other passengers of the Jaipur-Mumbai Central Express

जलते मणिपुर के बीच मानवता पर कुत्सित ठहाका मारते हुए देख अगर आप का दिल कांपता न हो तो कल सुबह जयपुर-मुंबई एक्सप्रेस में एक आर पी एफ (रेलवे सुरक्षा बल ) के सिपाही के द्वारा किये गए वीभत्स अपराध के बारे में गूगल सर्च कर लीजिये। अपने अख़बारों की हेडलाइंस में देखकर अनदेखा मत कर दीजिये। जिसे रेलयात्रियों की सुरक्षा के लिए रखा गया हो वह अगर चुन चुनकर किन्ही निर्दोषो का चलती ट्रेन में  क़त्ल कर दे। फिर आस-पास पसरे डर और सन्नाटे के बीच लाश के पास किसी ट्रॉफी की तरह अपने इस ‘गौरवशाली ‘ कार्य पर एक ‘भाषण ‘ या कहूं धमकी दे। तो सिहर तो उठेंगे न आप।

वह इस ‘नफरती स्पीच ‘ में अपने दो पूजनीय नेताओं, प्रधान मंत्री और यूपी मुख्य मंत्री योगी का नाम लेकर कहता है कि अगर हिंदुस्तान में रहना है तो सिर्फ उन्हें वोट देना होगा और यह भी कि ये क़त्ल किये गए अनजाने मुस्लिम पाकिस्तानी सम्बन्ध रखते हैं। यह भी कि मीडिया भी तो यही बताता है! हुआ यूँ है कि यह आर पी एफ कांस्टेबल अपने सीनियर जो आदिवासी हैं, उनके रोकने पर उन्हें और फिर अलग-अलग कोचों में मुस्लिम धर्म के अनजाने निर्दोष यात्रियों की बेरहमी से जान ले लेता है। अगर इस घटना को आप आतंक की घटना नहीं कहेंगे तो फिर किसे कहेंगे। अनुभव सिन्हा की 2018  में आयी फिल्म मुल्क़ का एक संवाद मुझे आज भी याद है, जिसमें आतंकवाद की परिभाषा समझायी जाती है और जिसका किसी विशेष धर्म से कोई लेना देना नहीं होता है। 

सार्वजनिक रूप से बोलने और चर्चाओं से लगेगा डर 

यह घटना मुझे व्यक्तिगत रूप से बेहद डराती है क्योंकि मैं हमेशा अपनी रेल यात्राओं या यूँ कहें अकसर सार्वजानिक रूप से सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करती हूँ। नए लोगों की सोच को समझती हूँ और लोकतान्त्रिक रूप से ये चर्चाएं बड़ा मज़ा देती रही हैं। पर अब मानो यह करने में डर लगेगा। क्या पता आपके बगल में बैठा कोई व्यक्ति अपने भीतर नफरत की तलवार छुपाये बैठा हो। आपने कोई ऐसी बात कह दी हो जो उसे पसंद न आये। औरत हैं तो और भी डर हैं। संविधान की दी गयी नेमतें पिछले एक दशक से लगातार क्षीण होती गयी हैं। अभिव्यक्ति की आज़ादी उन्ही में से एक है। पर अब निम्नतम स्तर पर हम आ चुके हैं। 

व्यवस्थागत धार्मिक-सांप्रदायिक उन्माद का नतीजा 

2015 सितम्बर में किसी मुस्लिम मुहम्मद अख़लाक़ को भीड़ द्वारा मार डाला गया था बिना किसी बात के। या यूँ कहूं बीफ रखने के शक में। कभी खाने की चॉइस को लेकर , कभी गौरक्षा के नाम पर पिछले दशक में मॉब लिंचिंग भयावह रूप से कानून और भारत की आत्मा को धता बता रही हैं । कभी पहलू तबरेज़ , कभी नासिर-जुनैद और कभी कोई और। साम्प्रदायिक उन्माद की आग को धीरे धीरे हर घर में गोदी मीडिया द्वारा भड़काया जा रहा था जो नफरत का दिन भर डोज़ चलाता है। पिछले कुछ महीनों से मणिपुर भी इसी जनजातीय और सांप्रदायिक बंटवारे के कारण जल रहा है। देश में चर्चों मस्जिदों पर हमले हो रहे हैं। अभी नूह और मेवात में बहुलवादी धर्मोन्मादी युवाओं का तांडव ज़ारी है। 

पूर्व आई पी  विजय सिंह कहते हैं कि इन नफरती चैनलों और उनके नफरत बेचने वाले एंकर्स को सांप्रदायिक असामाजिक तत्व घोषित कर देना चाहिए। इसके अलावा इन सालों में व्हाट्सप्प फॉरवर्ड्स में जो ज़हर आपके परिवारों , रिश्तेदारों और आम तौर पर समझदार और सीधे साधे दोस्तों के दिलों में भरा और बांटा गया; यह उसी विध्वंसक राजनीति और गोदी मीडिया की जुगलबंदी का नतीजा है। पत्रकार रविश कुमार कहते हैं कि आप को यह कब समझ आएगा कि इन नफरती नेताओं , मीडिया वालों के खुद के बच्चे विदेश में पढ़ते हैं और आपके याने साधारण लोगों के बच्चे बेरोज़गार होकर सम्प्रदायवाद का औज़ार बनाये जाते हैं। केंद्र के मंत्री ‘गोली मारो सालों को ‘ करके उत्तेजित करते हैं और आप के बीच दिल्ली के दंगाई और आर पी एफ कांस्टेबल जैसा नफरती हत्यारा पनप जाता है. गुजरात में धर्मांध भीड़ के बलात्कारी हत्यारों को मुक्त करके उनका स्वागत किया जाता है। और सत्ता की रोटियां सेंकी जाती हैं।  

आयडिया ऑफ़ इंडिया का ख़त्म होते जाना है यह 

सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर बताते हैं उनके एक युवा मुस्लिम साथी फफक फफक कर रो पड़ते हैं कि कल को इस तरह उनके पिता को भी कोई राह चलता मार सकता है। उन्हें डर लगता है। ट्विटर पर एक यूजर साहिल काज़मी कहते हैं कि इन सालों में उनकी अम्मी उन्हें पब्लिक में फ़ोन पर बात करने पर खुदा हाफ़िज़ बोलने से और कैंपस से बाहर कुर्ता पायजामा पहनने से मना करती हैं। ऐसे ही एक वीडियो वायरल हो रहा है जहाँ ऊपर बर्थ पर शांति से नमाज पढ़ रहे बुज़ुर्ग को परेशान करने के लिए कुछ बच्चे और युवा ज़ोर ज़ोर से मोबाईल पर हनुमान चालीसा पढ़ते हैं। समझ रहे हैं आप ! 

भारत हर धर्म ,हर जाति  ,हर भाषा , हर समुदाय और हर विचारधारा के साथ साथ रहने और सह-अस्तित्व का नाम रहा है। उस भारत की आत्मा को तबाह करने की व्यवस्थागत प्रक्रिया ज़ारी हैं इस तरह। जहां एक व्यक्ति ,एक धर्म और एक विचारधारा का दबदबा हो। क्या यह भारत था हमारा ? 

आपको हमको मिलकर बचाना होगा हमारे देश को 

लोकतंत्र , संविधान और कानून को तबाह करते कट्टर धर्मांध बहुलवाद से हमको आपको ही बचाना होगा हमारे अपने देश और युवाओं को। वो युवा जो इस जनजातीय-सम्प्रदायवाद -बँटवाराकारी ज़हर में खुद भी मर रहे हैं और हत्यारे बलात्कारी भी बन रहे हैं।मत देखिये ज़हरीले भड़काऊ मीडिया को ,वोट डालने से पहले कैंडिडेट का आपराधिक रिकॉर्ड चैक कीजिये।उसके और उसके राजनीतिक दल और विचारधारा का ,शिक्षा ,स्वास्थ्य ,रोज़गार , वंचित वर्गों के लिए और  सभी तबकों को जोड़ने वाली राजनीति का रिकॉर्ड देखिये। बंद कर दीजिये विकास की तूती बजाना अगर आप यह नहीं समझते हैं कि वह विकास जो नीचे आखिरी व्यक्ति तक नहीं पहुँचता वह अभी तूती बजाने का विषय नहीं है। अगर उस विकास की कीमत बढ़ती असमानता और सामाजिक खाइयों का बढ़ना और बर्बाद होता पर्यावरण है तो वह विकास दरअसल शायद विकास की उलटी रफ़्तार हो सकती है। सोचियेगा इसपर।  

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