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हिंदी कविता : खरीदीं गईं कविताएँ!

writing poems

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मैंने कविताएँ खरीदीं थी

जब स्कूल की फ़ीस में पैसे दिए गए,

मुझे गणित से भी ज्यादा

हिंदी कहानियाँ पढ़ाई गईं, सुनाई गईं, रटाई गईं

पाठ – प्रश्नोंत्तरों में उलझा रहा बचपन

जिंदगी गणित से चलने वाली कहानी बनती गई … 

मैंने कविताएँ याद की ,कक्षा में सबसे होड़ लेने में

मन कविताओं में रमने लगा,

कुछ कवियों के प्रेम में

मैंने तोते की तरह रटना फिर भी नहीं छोड़ा

एक दिन कविताओं की क़ीमत मालूम हुई

साथ और अकेलेपन को सीखना आसान हो उठा

स्कूल और कॉलेज की फ़ीस ने

मुझे जीवन के व्याकरण तो सीखा दिएँ

पर बिना व्याकरण मैं खुद को तलाश रही हूँ… 

घंटों मैगज़ीन कॉर्नर पर खड़े रहना आदत हो चली है

सेकंड हैंड कविताएँ हाथ लगती हैं

तो तोल- मोल करते

गणित के सबक अच्छे लगते हैं !

आज भी कविताएँ खरीदती हूँ

इसलिए कि जी लूँ थोड़ा

कुछ लिख भी लेती हूँ कि

शायद कोई और भी जी ले थोड़ा…

स्त्री हूँ

मेरी देह से कविताएँ बातें करतीं हैं

पुरूष तो! 

उनकी देह में स्त्री की देह

जंगल -सी भूख बनकर भी लिपटी होती तो है

पर मिटती नहीं, 

अकसर देखा है उस स्त्री की देह पर जीवन के निशान

अंँगीठी में जाड़े के आलू की तरह

जीवन की पहली कविता कैसी होगी

हो न हो

मन के धुंधले रंगों को सांसों में उकेरती रही होगी

जीवन की अंतिम कविता में भी कोई शोर नहीं होगा

शायद हँसती रहेगी दुनिया पर 

बेख़ौफ़…! 

मैं कह दूँ 

यह अंतिम कविता मैं खरीदना चाहती हूँ

इसलिए नहीं कि वह किसी जंगल में

किसी छपछपाती नदी की तरह गुम हो जाए

बल्कि चाहती हूँ

वह आसमान पर उमग कर, घटाओं से भीग 

हवाओं में घुलकर 

एक स्वतंत्र जीवन का आग़ाज़ करें।

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