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आईए जानें विश्व आदिवासी दिवस का इतिहास और महत्व

Adivasi in India

Adivasi in India

आदिवासियों के मूलभूत अधिकारों की सामाजिक, आर्थिक और न्यायिक सुरक्षा के लिए प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है। आदिवासी शब्द दो शब्दों ‘आदि’ और ‘वासी’ से मिल कर बना है जिसका अर्थ ‘मूल निवासी’ होता है। पहली बार आदिवासी दिवस 9 अगस्त 1994 को जेनेवा में मनाया गया था। 

आदिवासी दिवस का इतिहास

1923 में, Iroquois संघ के छह राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले Iroquois लीग के प्रमुख Deskaheh, एक मिशन के तहत कनाडा से Geneva (स्विट्जरलैंड) के लिए एक रवाना होते है। वह Iroquois की तरफ से राष्ट्र संघ में भाग लेने गए थे ताकि अपने लोगो के अधिकारों को अपनी जमीन पर, और अपने विश्वास के तहत जीने का अधिकार दिलवा सके। भले ही उनको बोलने की अनुमति नहीं दी गई और वह 1925 में कनाडा वापस आ गए लेकिन उनकी सोच और दृष्टीकोण ने आने वाली पीढ़ी को रास्ता दिखाने का काम कर दिया। 1970 के दशक में अंतरराष्ट्रीय आदिवासी आंदोलन वास्तव में आकार लेना शुरू कर रहा था।

आदिवासियों के समस्याओं पर ध्यान

1971 में आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC council) ने संकल्प (Resolution)1589 को अपनाया, जिसके तहत भेदभाव की रोकथाम और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का उप-आयोग को आदिवासियों के विरुद्ध भेदभाव के अध्यन की अनुमति प्रदान की। उप-आयोग ने José Martínez Cobo (Ecuador) को इस अध्यन को करने के लिए नियुक्त किया और उन्हें विशेष Rapporteur (दूत) के रूप में भी रखा गया। उसी समय के दौरान कुछ आदिवासी समुदायों ने (अमरीका) से अपने अधिकारों का दावा करने के लिए खुद को राजनीतिक रूप से संगठित किया। फलस्वरुप संयुक्त राष्ट्रीय ने दो बड़े सम्मेलनों का आयोजन किया जिसमें आदिवासी प्रतिनिधियों ने भाग लिया। एक 1977 में और दूसरा 1978 में। पहले सम्मलेन में आदिवासी प्रतिनिधियों ने अपने ऊपर से अल्पसंख्यक का दर्जा हटाकर ‘PEOPLES’ का दर्जा दिलवाया और अदिवासी लोगो की विशिष्ट समस्याओं का अध्यन करने के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यकारी समूह के निर्माण के लिए दबाव भी डाला।

दूसरे सम्मलेन में आदिवासी प्रतिनिधियों ने आदिवासी भाषा, संस्कृति, आर्थिक और क्षेत्रीय अधिकारों को मान्यता दिलवाने के लिए राज्यों पर दबाव डाला। 1980 की दशक के दौरान आदिवासियों ने अपने अधिकारों के लिए अंतराष्ट्रीय स्तर पर काफी आन्दोलन किया | इन्ही अन्दलोनो के दबाव में आकर 1982 में उप-आयोग ने ‘Working Group on Indigenous Population’ (WGIP) की स्थापना करी | WGIP का मुख्य कार्य आदिवासी लोगो के अधिकारों और संरक्षण के मुद्दों की निगरानी करना था | इसी दरमियान COBO report (1986-87) भी प्रकाशन हुआ जिसमे आदिवासिओं की विभिन्न क्षेत्रों में समस्याओं जैसे स्वास्थ, शिक्षा, आवास, भूमि और क्षेत्र के प्रबंधन का उल्लेख भी किया गया | अंतिम प्रकाशन पांच बड़े खंडो में समाहित हुआ | आज तक ये Report अन्तराष्ट्रीय क्षेत्र में आदिवासी वकालत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है क्यूकि पहली बार ‘आदिवासी’ यानी ‘INDIGENOUS’ शब्द की परिभाषा का परिचय यहाँ दिया गया था।

WGIP ने इसी दशक के दरमियान कुछ सिफारिशें भी रखी, जैसे-

  1. आदिवासी लोगो के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की घोषणा को अपनाया जाना (United Nations Declaration of Rights Indigenous Issues)
  2. आदिवासी लोगो के लिए एक अन्तराष्ट्रीय वर्ष घोषित करके मनाया जाना
  3. अन्तराष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labor Organization) कन्वेंशन 107 को संशोधित करके आदिवासियों पर कन्वेंशन करा जाना।

स्वदेशी और जनजातीय लोग सम्मेलन, 1989

अंततः 1989 में ILO ने आदिवासियों के कन्वेंशन को अपनाया जिसे आज कन्वेंशन संख्या 169 भी कहा जाता है। यह एक बहुत ही मजबूत और सशक्त अन्तराष्ट्रीय क़ानूनी साधन है आदिवासियों के अधिकारों के रख-रखाव और सुरक्षा के लिए। लेकिन आदिवासियों का संघर्ष यहाँ ख़त्म नहीं हुआ। 1993 में Vienna में मानव अधिकारों के विश्व सम्मेलन पर आदिवासियों के मुद्दों के लिए एक स्थाई मंच बनाने के प्रस्ताव रखा गया जिसे Permanent Forum on Indigenous Issues भी कहा जाता था। इस प्रस्ताव और संघर्ष के ज़रिये भी 1995-2004 को विश्व के आदिवासियों का अन्तराष्ट्रीय दशक के रूप में भी मनाया गया और 9 August को आदिवासी दिवस के रूप में भी घोषित किया गया। इसी के तहत 1994 से अब तक हर साल 9 August को विश्व के आदिवसियों के लिए अन्तराष्ट्रीय आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

आदिवासी मुद्दों के लिए कार्यशाला

आदिवासी मुद्दों के लिए स्थाई मंच बनाने को लेकर दो कार्यशाला भी रखी गई; पहली 1995 Copenhagen (Denmark) में और दूसरी 1997 Santiago de Chile में | काफी संघर्षो और बैठकों के बाद 28 July 2000 के दिन ECOSOC ने एक संकल्प को अपनाते हुए आदिवासियों का एक स्थाई मंच की स्थापना की गई जिसे Permanent Forum on Indigenous Issues (UNPFII) कहते हैं। इसके साथ आदिवासी समुदाय के लोगो के अधिकारों पर विशेषज्ञ तंत्र जिसे अंग्रेजी में Expert Mechanism on the Rights of Indigenous Peoples (EMRIP) भी कहा जाता है, की स्थापना 14 December 2007 को हुई। इसे के कुछ महीने पहले यानी 13 September 2007 के दिन आदिवासी लोगो के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की घोषणा को भी अपनाया गया जिसे United Nations Declaration of Rights of Indigenous Issues (UNDRII) भी कहते हैं।

भारत में आदिवासियों की संख्या और हाल

भारत में लगभग 700 आदिवासी समूह व उप-समूह हैं। इनमें लगभग 80 प्राचीन आदिवासी जातियां हैं। भारत की जनसंख्या का 8.6% (10 करोड़) जितना एक बड़ा हिस्सा आदिवासियों का है। संविधान के अनुच्छेद 342 में कहा गया है कि अनुसूचित जनजाति या आदिवासी समुदाय या इन जनजातियों और आदिवासी समुदायों के भीतर या समूह हैं जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा सार्वजनिक अधिसूचना के माध्यम से घोषित किया गया है।

किसी भी समुदाय को अनुसूचित जनजाति के लिस्ट में शामिल करने के कुछ निम्न आधार हैं- आदिम लक्षण, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक अलगाव, व्यापक स्तर पर समाज के एक बड़े भाग से संपर्क में संकोच करना , पिछड़ापन। भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए ‘अनुसूचित जनजाति’ पद का उपयोग किया गया है। मध्य भारत में, अनुसूचित जनजातियों को आमतौर पर आदिवासी कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ स्वदेशी लोग (Indigenous peoples) है।

भारत में भाषा आधारित Indigenous का दर्जा क्यों नहीं

लेकिन आखिर ऐसा क्यों कि भारत में आदिवासियों के भाषा के आधार पर उन्हें भारत के स्वदेशी लोग(Indigenous Peoples of India) क्यों नहीं माना गया? दरअसल, भारत में कई कानून और संवैधानिक प्रावधान हैं, जैसे मध्य भारत के लिए पांचवीं अनुसूची और पूर्वोत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों के लिए छठी सूची जो स्वदेशी लोगों के भूमि और स्वशासन के अधिकारों को मान्यता देती है, लेकिन उनका कार्यान्वयन संतोषजनक नहीं है। भारत ने स्वदेशी लोगों (Indigenous Peoples) के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र घोषणा के पक्ष में इस शर्त पर मतदान किया कि स्वतंत्रता के बाद “सभी भारतीय स्वदेशी होंगे”। इसलिए, यह “स्वदेशी लोगों” की अवधारणा पर विचार नहीं करता है, और इसलिए UNDRIP, भारत पर लागू होता है।

आदिवासियों का शोषण कब होगा बंद

हमे याद रखना चाहिए कि आदिवासियों का राष्ट्र की आज़ादी के प्रति प्रेम ही था जिसने देश को सिद्दू और कान्हू, तिलका और मांझी, बिरसा मुंडा इत्यादि वीर योद्धा दिये । लेकिन आज देश में काफी राज्यों में आदिवासियों की स्थिति दयनीय है। केंद्र या राज्य सरकार भले ही कितने ही दावे कर ले लेकिन समय समय पर खबरों के माध्यम से उच्च जातियों के लोगों द्वारा इनके दमन / शोषण की ख़बरें आती रहती है।

अतः सरकार से अपील है कि आदिवासियों के पक्ष में कठोर कानून बनाये जिससे कि इनके परम्परा , संस्कृति और हितों की रक्षा हो सके। जिस तरह झारखंड राज्य सरकार ने हर साल 9 अगस्त को दुनिया भर में मनाए जाने वाले विश्व के आदिवासी लोगों के अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस को राजकीय अवकाश के रूप में घोषित किया है।उसी तरह बाक़ी राज्य सरकार अपनी राज्य के आदिवासी समुदाय के विकास और देश दुनिया में एक पहचान दिलाने में अपना सहयोग दे । यह आदिवासी आबादी की आधिकारिक मान्यता संदर्भ और प्रमुख विकास की राह में मील का पत्थर साबित होगा ।

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