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“जनता, सरकार से पूछिए कि मणिपुर आज भी क्यों जल रहा है?”

Photo Credit- PTI, Manipur Violence

कल सदन में मणिपुर मामले पर पूछे गए सवाल पर महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती स्मृति जुबिन इरानी जी ने जिस तरह का भाषण दिया है, उसे देख कर बच्चों के बीच होने वाली बचकानी लड़ाई की याद आगई, जब कोई एक बच्चा दूसरे बच्चे को धक्का दे या मार दे तो दूसरा बच्चा भी उसी आवेग में प्रतिरोध लेता है। लेकिन जब यही काम कोई बड़ा करे तो इसे छुटपन कहा जाता है जो अपने आप में एक अपमान सूचक शब्द है।इसी छुटपन का आज कल ज़िन्दा मिसाल भारतीय राजनीति है। वैसे तो राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप का खेल पुराना है ,लेकिन आज के दौर में इस खेल का स्तर जितना गिरा है ,शायद पहले कभी नही हुआ।

सत्ता पर बैठी सरकार क्यों खामोश है

सत्ता और विपक्ष के बीच ये खेल हमेशा से चलता आ रहा है, लेकिन दुख और अफ़सोस तब होता है जब ,इस खेल में जिस जनता को अंपायर बनना था वो दर्शक दीर्घा में बैठ कर अपने-अपने पसंदीदा पार्टियों के समर्थन में तालियां बजा रही होती हैं। अपने कर्तव्य अपने अधिकारों को दरकिनार कर बस अपने पसंदीदा पार्टी की वकील बन जाती है और सामने वाले पार्टी पर छींटाकशी करती नज़र आती है। हमारा देश, जिससे हम “मदर ऑफ डेमोक्रेसी” से संबोधित करते हैं उसी देश का एक राज्य पिछले 2 महीने से ज़्यादा से जल रहा था, लेकिन सब खामोश थे । जैसे कुछ हुआ ही नही या ऐसा कुछ नही हुआ जिस पर कोई प्रतिक्रिया दी जाए।

मणिपुर पर संवेदनाएं नहीं, एक्शन लेना होगा

घटना के 77 दिनों बाद एक वीडियो वायरल होता है जिसमे 2 महिलाओं के साथ खुले आम सड़क पर सड़ी हुई मानसिकता के लोग अमानवीय व्यवहार करते हुए दिखाई देते हैं ,जिसके बाद पूरे देश में इस बात पर आक्रोश ,अफ़सोस, घृणा ,विलाप जैसे कई संवेदना एक साथ उमड़ती दिखाई देतीं है। मणिपुर ट्विटर पर ट्रेंड करता है। इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का कुछ सेकण्ड्स का बयान आता है जिसमे वो मणिपुर की दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर अपने संवेदनाएं व्यक्त करते है और लगे हाथ राजस्थान और छत्तीसगढ़ पर एक सवालिया निशान लगा देते हैं।

जनता मांगे जवाब

और बस यहीं पर वो जनता जिनमें इस घटना को लेकर गुस्सा और नाराज़गी दिख रही थी वो भावनाओ में बह जाती है ,और दो गुटों में बंट जाती है ,और अपने जनता होने का मूल कर्तव्य भूल कर किसी पार्टी के प्रवक्ता में बदल जाती है ,जो कि आज कल देश में आम बात है। ऐसा कहने में कोई संकोच नही किया जा सकता की, “किसी देश में लोकतंत्र के ख़त्म होने से ज़्यादा बड़ा दुर्भाग्य उस देश की जनता की संवेदनशीलता का मर जाना होता है।” कमोबेश अब अपने देश का यही हाल है। कहने में बहुत दुख होता है लेकिन अब देश में बस सत्ता ,विपक्ष और इन दोनों के समर्थक ही बचे हैं, जनता जैसे कोई चीज़ बची ही नही।

वो जनता जो किसी लोकतंत्र की रीढ़ हो, वो जनता जो सरकार से सवाल पूछे, जो सरकार से पूछे के मणिपुर जल रहा है ,सरकार क्या कर रही है? जो पूछे के दो गुटों के बीच की लड़ाई गृह युद्ध कैसे बनी? जो पूछे के ऐसे गृह युद्ध के माहौल में प्रधानमंत्री विदेश दौरा कैसे कर सकते हैं ? जो सरकार पर सवाल उठाए की मणिपुर के उपद्रवियों को इतने बड़े पैमाने पर हथियार किसने उपलब्ध करवाए? जो मोदी जी से पूछे कि मणिपुर में आपकी डबल इंजिन सरकार थी फिर भी हिंसा को रोक क्यों नही पाए? जो पूछे प्रधानमंत्री महोदय से की, बीरेन सिंह की हिंसा को ना रोक पाने पर भी उनसे इस्तीफ़ा क्यों नही लिया गया?

क्यों मणिपुर सीएम को घटना की जानकारी नहीं थी

जो पूछे महामहिम से ,की मणिपुर में ऐसे आमनिविये घटना घटती है,क्या आपको और बीरेन सिंह की सरकार को इसकी ख़बर नही थी? और अगर थी तो अब तक आप चुप क्यों थे? और अगर नही थी तो आप किस विधि से देश और राज्य पर शाषन चला रहे हैं? जो जनता सत्ता पक्ष के मंत्रियों से पूछे, के बेटी बचाओ का नारा देने वाली आपकी सरकार की महिला मंत्री तक ऐसे भयावह घटना पर चूप्पी कैसे साध सकती हैं? और जब महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती स्मृति जुबिन इरानी जी सदन मैं मणिपुर के सवाल पर बोलती हैं तो किस तरह मुद्दे को राजनीति रूप दे कर आरोप-प्रतिआरोप का छुटपन वाला खेल खेलती नज़र आती है?

मणिपुर पर बोलते हुए स्मृति ईरानी असंवेदनशील भाषण क्यों देती है

क्यों मणिपुर वासियों के ज़ख़्मो को अपनी असंवेदनशील भाषण शैली से कुरेदती नज़र आती हैं? मणिपुर में जिन महिलाओं के साथ दुराचार हुआ है उनसे मिलने ,उनकी काउंसिलिंग करने या आश्वासन ही देने,अब तक कोई केंद्रीय मंत्री क्यों नही गया? मणिपुर महिला आयोग ने पीड़िता से मिलने की और इस दुर्घटना पर संज्ञान लेने की ज़हमत क्यों नही की? प्रधानमंत्री जी ने पीड़ितों को बस आश्वाशन देकर ,क्यों उन्हें अपने हाल पर तड़पता ,रोता ,बिलखता छोड़ दिया? क्यों ? लेकिन इन सारे सवालों को पूछने के लिए जनता का जानत होना ज़रूरी है।

जनता को किसी पार्टी विशेष के कार्यकर्ता या प्रवक्ता होने के संकोचित दायरे से निकल कर अपने जनता होने के विशेषाधिकार को समझना होगा, उन्हें समझना होगा के आप किसी पार्टी से बंधे नही है बल्कि आप वो हैं जो पार्टियों को सत्ता पर जितने नाज़ों से बिठाने की ताकत रखते हैं ,तो उसी पार्टी को उतनी ही ताक़त से ज़र से उखाड़ कर सत्ता से हटा देने की क़ूवत भी रखते हैं। आप जनता हैं और जनता सर्वोपरि होती है। बस आपको ये याद रखने की आवश्यकता है। तो सवाल पूछिये,क्योंकि जनता द्वारा पूछा गया हर सवाल मणिपुर की आग पर पानी की तरह होगा।

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