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क्या आपको श्री मल्लिकार्जुन भगवान का मुख्य रहस्य पता है?

Sri Bhramaramba Mallikarjuna Temple

Sri Bhramaramba Mallikarjuna Temple

श्रीमल्लिकार्जुन- यह एक ऐसा तीर्थ है जहाँ भगवान भोलेनाथ किसी भक्त को दर्शन देने नहीं गए थे, बल्कि अपने रूठे पुत्र को मनाने एक सामान्य पिता की तरह गए थे। भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती वहाँ बिल्कुल माता-पिता के भाव के साथ ही विराजते हैं। इस कारण वहाँ का महात्म्य और बढ़ जाता है क्योंकि संतान के लिए माता-पिता को मना लेना ईश्वर को मनाने से ज्यादा सहज और आसान है।

आंध्रप्रदेश के श्रीशैल् पर्वत पर अवस्थित मल्लिकार्जुन भगवान शिव का दूसरा ज्योतिर्लिंग है। यहाँ की कथा यह है कि माता-पिता से रूष्ट हो कर भगवान कार्तिकेय कैलाश त्याग कर इस स्थान पर रहने लगे थे। तब पुत्र को मनाने के लिए भगवान भोलेनाथ वहाँ गए, और लोककल्याण के हेतु लिंग स्वरूप में विराजमान हुए।

कुमार कार्तिकेय रुष्ट क्यों हुए थे

तो कथा वही है कि “पहले किसका विवाह हो” के विषय पर छिड़े द्वंद में पिता ने कहा कि जो पहले समस्त संसार की परिक्रमा कर के आएगा उसी का पहले विवाह कर देंगे। भगवान गणेश ने बुद्धि लगाई और संसार की परिक्रमा करने के स्थान पर माता-पिता की ही परिक्रमा कर विजेता हो गए। उधर भगवान कार्तिकेय जब परिक्रमा कर के लौटे तो देखा, अनुज का विवाह हो चुका है। वे रुष्ट हो गए।

माता-पिता और भगवान एक समान

अब बेटा रुष्ट हो जाय तो उसके लिए माता-पिता क्या नहीं कर देते? अपने बेटे को मनाने पहुँचे मल्लिकार्जुन अपने हर भक्त को उसी दृष्टि से देखते हैं, उसकी पीड़ा को उसी भाव से हरते हैं। इस कथा में जीवन के दो महत्वपूर्ण सूत्र हैं। पहला यह कि ईश्वर भी मानते हैं कि माता-पिता का स्थान समस्त संसार से ऊपर होता है। यदि वे प्रसन्न नहीं हैं तो समझिये आपके ईश्वर भी आप पर प्रसन्न नहीं हैं।

दूसरा यह! कि माता-पिता का प्रेम उस संतान पर अधिक होता है जो किसी भी क्षेत्र में पीछे छूट गया हो। और जब भगवान शिव और माता पार्वती तक ऐसा मानते हैं, तो सामान्य जन को भी अपने कम सफल बेटे के साथ अधिक स्नेह का भाव रखना चाहिये। मनुष्य को सबसे अधिक ऊर्जा माता-पिता के स्नेहपूर्ण व्यवहार से ही मिलती है।

भगवान शिव सतयुग से हैं

विकिपीडिया बता रही है कि सातवाहन राजाओं के समय का एक अभिलेख है मन्दिर में, जिसके आधार पर कहा जाता है कि यह मंदिर ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में भी अवस्थित था। यह प्रमाण तो उनके लिए है जो साक्ष्य मांगते फिरते हैं, हमारा प्रमाण हमारे पुराण हैं जो कहते हैं कि महादेव वहाँ सतयुग से हैं।

दक्षिण के मंदिरों पर आक्रांताओं के प्रहार तनिक कम हुए हैं, इसी कारण वहां सौंदर्य बचा हुआ है। मल्लिकार्जुन परिसर में असँख्य प्राचीन मूर्तियां, शिवलिंग और सुंदर कलाकारी वाले मन्दिर हैं जिनका एक एक स्तम्भ आप घण्टों निहार सकते हैं। आप अपने पूर्वजों की स्थापत्य कला और मूर्तिकला देख कर निहाल हो सकते हैं।

घने वन में विराजते हैं मल्लिकार्जुन महादेव! रास्ते में 27 किलोमीटर आपको बाघों के लिए रिजर्व क्षेत्र के बीच से गुजरना होता है। मतलब भोले बाबा के सारे गण उपस्थित हैं उस क्षेत्र में। अन्य तीर्थस्थलों की अपेक्षा शान्ति है वहाँ। तो जब भी संभावना बने, घूम आइये जगत पिता की देहरी से। वे सदैव आपके साथ हैं।

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