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“अंजू और सीमा की कहानियों में धर्म समस्या नहीं, नैतिकता है”

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मानव धरती पर सबसे बुद्धिमान प्राणी है। यदि वह चाहे तो हाथी जैसे विशालकाय जीव को भी अपने वश में कर सकता है। मनुष्य बुद्धिमान होने के साथ – साथ एक सामाजिक और संस्कृति युक्त प्राणी के रूप में भी जाना जाता है। व्यक्ति के अंदर संबंधों के कारण ही सामाजिकता के गुणों का विकास होता है। जैसा कि यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने तथाकथित सही ही कहा है, ” मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज से बाहर रहने वाला मनुष्य या तो देव होता है या दानव।”

रिश्तों को दांव पर लगाता इंसान

चूंकि यह सर्व स्पष्ट है कि मनुष्य की इच्छाएं असीम हैं। तथापि वह इन्ही इच्छाओं की पूर्ति के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने में लगा रहता है। कभी – कभी इन क्षणिक इच्छाओं के लिए संबंधों को भी दरकिनार करने से गुरेज नहीं करता है। प्रश्न यह उठता है कि क्या इच्छाओं की संतुष्टि ही एकमात्र कारण है संबंधों में विच्छेद के लिए। तो इसका उत्तर है ‘नहीं ‘। क्या आधुनिकता के इस परिप्रेक्ष्य में नैतिकता का कोई स्थान नहीं है? 

यद्यपि इन सभी प्रश्नों के साथ – साथ कई सारे प्रश्न मेरी तरह आप सभी के मनोपटल पर घूम रहें होंगे। आज यह चर्चा करने की जरूरत क्यों पड़ी? तो आप सभी पाठकों को बता दूं कि वर्तमान में कुछ 1 महीने या 15 दिनों से मीडिया में दो महिलाओं की खूब चर्चा है जिन्हें अपने अपने स्तर से नायिका के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। 

सीमा और अंजू की कहानियों में क्या है नैतिकता

कहानी यह है कि पाकिस्तान की रहने वाली सीमा हैदर जो 3 बच्चों की मां हैं, पब्जी खेल के जरिए भारतीय नागरिक सचिन से प्यार करने लगती हैं एवं पाकिस्तान छोड़कर भारत सचिन के प्यार के लिए जैसा कि उनका कहना है अवैध तरीके से नेपाल के रास्ते दाखिल हुई हैं। दूसरी चर्चा अंजू की है जो भारत से पाकिस्तान नस्सूरुलाह के प्यार में दीवानी हो चली गईं हैं। 

 धर्म समस्या नहीं

सबसे विचित्र विडंबना यह है कि सीमा अपने आपको हिन्दू के रूप में बतलाना अधिक पसंद करती हैं। वहीं अंजू को भी मीडिया के रास्ते यह खबर आ रही है कि उनको नमाज पढ़ाकर फातिमा नाम रखा गया है। बात यह नहीं है कि सीमा और अंजू ने अपना धर्म परिवर्तन क्यों किया। बल्कि प्रश्न तो यह है कि क्या संबंध इतने क्षणिक कैसे हो रहें हैं कि एक ऐसी महिला जिसके 3 बच्चें हों, जिनका पिता कोई और हो और वह पहले पति से अलग होकर सीधे पाकिस्तान से भारत आ जाना। यह कहां की नैतिकता है? 

वहीं अंजू का भी करीब-करीब वाक्या यही है वह फेसबुक के जरिए पाकिस्तानी नागरिक नसुरूल्लाह से प्यार करने लगती है जबकि उनके पति मौजूद हैं, हां वो जरूर कह रहीं हैं कि मैं भारत से पाकिस्तान वैध बीजा में आईं हूं। लेकिन इससे कैसे ये लोग पीछा छुड़ाएंगे। नैतिकता, संस्कारता और मानवता का क्या हुआ? क्या नैतिकता कहीं मर चुकी है? संस्कार का पतन हो चुका है? क्या अब मानवता बचा ही नहीं? क्या ऑनलाइन प्लेटफार्म संबंधों के लिए एक खतरनाक माध्यम तो साबित नही हो रहा है।

स्वतंत्रता और समानता का विरोधी नहीं

तो इसका उत्तर यही है कि मनुष्य के संबंध अब क्षणिक ही होंगें। मुझे तथाकथित समानता एवं स्वतंत्रता के पुजारी और आलोचक यह जरूर कह सकतें हैं कि मैं स्वतंत्रता और समानता का विरोधी हूं। लेकिन मैं यह जरूर बता देना चाहता हूं जिस स्वतंत्रता के द्वारा संबंध तार-तार हो रहें हों, नहीं चाहिए हमें ऐसी स्वतंत्रता। जिस समानता के द्वारा एक महिला अपने पति के घर में पनाह लेती है और उसी की मर्यादाएं तार – तार कर देती है, नहीं चाहिए ऐसी समानता। कहते हैं, हिंदुस्तान की संस्कृति जोड़ने की है, एकीकृत करने की है। फिर यह संबंधों का विखराव तो अंग्रेजों की देन है। हमारी संस्कृति में जब संबंध में बंधते हैं तो सात जन्मों तक वो अलग नहीं हो सकते। अतः खंडित विचारों से हम सभी हिंदुस्तानीयों को बचने की जरूरत है।

संबंध नहीं चलने के पीछे पुरुषों की भी है भूमिका

यद्यपि इन संबंधों के विच्छेद होने का कारण केवल महिलाएं ही नही है। मैं निःसंकोच यह कह सकता हूं कि एक पुरूष समाज भी उतना ही दोषी है जितनी महिलाएं। पुरुष प्राचीनकाल से ही महिलाओं को शोषण का एक यंत्र समझता रहा है, बहुत सारे अत्याचार भी हुए हैं। महाभारत, रामायण और बहुत सारे ग्रंथ इसके उदाहरण रहें हैं और इन सभी अत्याचारों का एक ही परिणाम हुआ है समूल विनाश। पुरुष समाज की जिम्मेदारी महिलाओं से कई गुना अधिक है कि वह एहसास कराए कि वह अपने जीवन साथी के साथ है और उसका भला केवल उसी से हो सकता है। तथापि मैं यह भी बता दूं कि जिससे वर्तमान का संकट इन सभी संबंधों को बचाने का है। यदि सभी संबंधों में क्षल, कपट, ईर्ष्या, द्वैष एवं अहंकार का स्तर न के बराबर हो तो मानव के संबंध हमेशा बचे रहेंगें वरना वो दिन दूर नही की व्यक्ति के संबंध इतने क्षणिक होंगें कि संबंधों को भी पहचानना कठिन हो जाए।

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