स्वर्ग और नर्क की अवधारणा ने ही दुनियां में पुरोहितवाद को जन्म दिया । सत्य तो यह है कि मृत्यु के पश्चात जिन तत्वों से जीव बना है वह पुनः उन्ही तत्वों में विलीन हो जाता है। आत्मा परमात्मा का कोई अस्तित्व नहीं होता ।
मानव शरीर का 50-70% भाग H2O (हाइड्रोजन+ऑक्सीजन) यानी पानी से बना है। बल्कि चार तत्व ऑक्सीजन, कार्बन ,हाइड्रोजन , नाइट्रोजन जैसे 96.2% तत्वों से बना है। इसके अलावा फास्फोरस , पोटेशियम, सोडियम, क्लोरीन, मैग्नेशियम और गंधक प्रमुख तत्व है। ये सभी तत्व के अणु और परमाणु कण प्रकृति में अलग अलग रूपों में विद्यमान है। मानस शरीर के मृत्यु के उपरांत ये सभी तत्वों के मूल कण पुनः अपने मौलिक स्थानों में चला जाता है। चाहे आप उसे जला दे या गाड़ दे या कहीं फेक दे ये रिजॉल्व होकर मूल तत्वों में विलीन हो जाता है। यही प्रक्रति का नियम है। मृत्यु के उपरांत कोई पुनर्जन्म नही होता बल्कि अपने अपने स्पेसिज अपने वंश को बढ़ाने के लिए नई जीवों को उत्पन्न करता है। ये जीवन चक्र सभी जीवों और वनस्पतियों में यही नियम पाई जाती है।
प्रकृति के नियमो के विरुद्ध जब से इस पृथ्वी में धर्म का उदय हुआ उन धार्मिक सिद्धांतों ने अनेकों मिथक को फैलाने का कार्य किया है। उन्ही मिथक में आत्मा परमात्मा का सिद्धांत ने भी मानवों को मूल सत्य से दूर रखा । स्वर्ग नर्क की अवधारणा रखी गई जिसमे भोले भाले मनुष्य बड़ी आसानी से फंस गए। भारत में अदेत्ववादियों ने “ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या” का सिद्धांत दिया। फिर आत्म परमात्मा का सिद्धांत देकर लोगों को फंसाने का कार्य किया। बाईबल में भी पुनरूत्थान की शिक्षा दी और मृत्यु के बाद अनंत जीवन का खूब सपना दिखाया। इस्लाम ने तो ऐसी शिक्षा दी की लोग हुरो की चाह में निरीह लोगों की जान तक लेने लगे।
आज दुनियां मोक्ष की चाह में क्या कुछ नहीं करते अपना सबकुछ त्याग देते है लेकिन प्रकृति के परम सत्य को ज्ञान विज्ञान की दृष्टि से समझना नही चाहते। इसी कारण दुनियां में धार्मिक पाखण्ड का फैलाव हुआ और लोग धार्मिक तो बन गए पर मानवतावादी नही बन पाए। मोक्ष या छुटकारा या अपने पापों से मुक्ति के लिए अपने अपने लिए धर्मगुरुओं को पकड़ लिया। कोई हज को जा रहा है तो कोई गंगा में डुबकी लगा रहा है तो कोई रोम जाकर पोप को चूम रहा है। सत्य को नही जानने के कारण आज मानव जगत भटकता फिर रहा है।
इस पृथ्वी का अपना एक अलग भौतिक आयाम है। इस पृथ्वी में सब कुछ नेचुरल है लौकिक है कुछ भी अलौकिक नही कोई आत्मा परमात्मा नही कोई स्वर्ग नर्क नही है। मानव शरीर के नष्ट होते ही सब कुछ खत्म हो जाता है। जैसे अन्य जीव एवम वनस्पतियों के साथ होता है। पूरा पृथ्वी कॉस्मिक ऊर्जा से संचालित है बल्कि विश्व मे फैली हुई उर्जा cosmic energy कहलाती है । उसी उर्जा से सूरज और तारे रोशनी से भर जाते है । galaxy, nebula, ब्रह्माण्ड के सभी पदार्थ और सभी अवकाशीय पदार्थ इसी उर्जा से कार्यवंत है । इतना ही नही ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी है ये सब इनका ही भाग है ।
आपको कभी ऐसा ख्याल आता होगा की आखिर यह विश्व क्या है ? किस तरह से इसका निर्माण हुवा होगा । ये सूर्य, चाँद, तारे, पृथ्वी और यह सारा ब्रह्माण्ड आखिर मे क्या है ? क्या हमारा connection उनके साथ है ? क्या हमारी वर्तमान सारी समस्या उनसे जुडी हुई है ?
यह energy क्या है ? उस उर्जा को हमारे शरीर में ज्यादा उपयोग में कैसे लाया जाये ? उनके द्वारा हमे वर्तमान जीवन में कैसे लाभ हो शकता है ? हमारा जन्म क्यों हुवा है । हमे जीवन में क्या करना चाहिए मतलब हमारा जीवन ध्येय क्या हो शकता है ?.
हम श्वास लेते है तो यह भी उसी ऊर्जा की वजह से, हम खाते है, पीते है तो यह भी उसी ऊर्जा वजह से, इतना ही नहीं कोई विचार या चिन्तन इत्यादि मन से की जाने वाली सभी क्रिया भी इसी उर्जा से होती है।
कॉस्मिक केंद्र से निरंतर उर्जा का बहाव होता रहता है । जैसे मोबाईल के waves telecast होते रहते है। मोबाईल में बात करने में या net connection में थोड़ी सी गरबडी मालूम हुई की तुरंत हम कहते है की “भाई लगता है connectivity down है.”
इस यूनिवर्स में कोई ब्रम्हा नही, कोई ईश्वर नही , कोई अल्लाह या गॉड नही है बल्कि सब कुछ कॉमिक एनर्जी के जालों से जुड़ा हुआ है यही विज्ञान का सत्य है।