Site icon Youth Ki Awaaz

“सोशल मीडिया पर बढ़ते हुए हिंदी पेजेस और पीछे छूटती हिन्दी भाषा”

misuse of social media

misuse of social media

आजकल सोशल मीडिया का जमाना है खासकर हिंदी प्रेमियों के लिए। हिंदी लेखन को सोशल मिडिया पर बहुत प्यार मिलता है हिंदी भाषा से प्रेम करने वाले अच्छी हिंदी लिख रहे हैं सीख रहे है । अच्छा लगता है कि हिंदी को सम्मान और प्रेम मिल रहा है । बहुत सारे एप हिंदी का प्रचार प्रसार कर रहे हैं जिन्हें खूब लोकप्रियता मिल रही है ।अच्छे हिंदी लेखक लेखिकाओं की रचनायें पढ़ने को मिलती है ।

तमाम सोशल मीडिया साइट्स पर हिन्दी सिखाते लोग

फेसबुक, इंस्टाग्राम, और एप पर हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिए अनेक पेज बनाये जा रहे हैं । कुछ पेज पुराने हिंदी लेखकों की कविताओं , कहानी और विचार को पाठकों तक पहुँचा रहे हैं तो कुछ नए हिंदी लेखकों को हिंदी से प्रेम करना सिखा रहे हैं ।

सोशल मीडिया पर इन पेजों की बाढ़ सी देखने को मिलती है । ये पेज कभी-कभी किसी समूह द्वारा बनाये जाते हैं ,कभी किसी अकेले हिंदी प्रेमी लेखक द्वारा । जैसे जैसे इन पेजों के फ़ॉलोअर्स बढ़ते जाते हैं ये पेज लेखकों को आकर्षित करने के लिए प्रतियोगिताओं का आयोजन करते हैं । इन प्रतियोगिता का विषय इन्हीं के संस्थापक द्वारा दिया जाता है औऱ कई पेजों पर समय सीमा भी निर्धारित की जाती है । ये पुरुस्कार के रूप में कभी प्रसिद्ध लेखकों की किताबें देते हैं या कभी डिजिटल सर्टिफिकेट जो खुद इनके ही टीम द्वारा डिजाइन किए गए होते हैं ।

सिर्फ फालोअर बढ़ाने की मंशा

कुछ पेज तो पूरी पारदर्शिता के साथ प्रतियोगियों की रचना के साथ न्याय करते हैं लेकिन कुछ पेज कभी कभी प्रतियोगिता का रिजल्ट देना ही भूल जाते हैं लेखकों के द्वारा सवाल पूछने पर भी वो उनका जवाब देने में दिलचस्पी नहीँ दिखाते। कुछ पेज के निर्णायक को मौलिक रचना को नजरअंदाज करके उसी प्रतियोगिता में लिखी गयी किसी रचना की हूबहू कॉपी की गई रचना को विजेता घोषित करते है। कुकुरमुत्तों की तरह उग रहे इन पेजों ने हिंदी भाषा को मान सम्मान तो नही बल्कि एक वियूज बटोरने का साधन जरूर बना दिया है ।

Exit mobile version