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हिन्दी कविता: बेटी तो बेटी होती है!

Manipur violence

Manipur violence

बेटी से जीवन चले, बेटी से जीवन ढले,

तीर्थयात्रा-सी पवित्र होती है बेटी,

जन्मों के पुण्यों का फल होती है बेटी, 

झुलसती गर्मी में पीपल-सी छाँव होती है बेटी,

कड़कड़ाती ठंड में अलाव के ताप-सी होती है बेटी,

देश का गौरव होती है बेटी,

फूल-सी खिलती कोमल कली होती है बेटी,

सोचो क्या बीतती होगी उस पौधे पर,

जिसने सालों उस फूल को सींचा,

कोई आकर अचानक नोंच दे उसे,

नहीं करता कोई परवाह उस फूल की,

पैरों तले रौंद दिया जाता है,

बिना फूल के पौधे को कौन अपनी बगीया में रखता है,

लाख गालियाँ देंगे उस पौधे को,

क्या गलती उस पौधे की, उसने तो प्यार से सींचा था,

चुभो दिए किसी ने गर नफ़रत के काँटे,

पौधा तो बेकसूर था,

फूलों का राजा, गुलाब सबको भाता है,

तोड़ने पर सबसे पहले काँटा चुभता है,

लाख कोसते लोग उस काँटे को पर काँटा भी तो उसकी शान है,

उजड़ गई मणिपुर की बगीया,

तरस रहें हज़ारों पौधे हैं,

सरकार भी मूक हैं,  खुलेआम घुम रहें दरिंदे हैं,

बगीया तो फिर शायद बस जाएगी,

लेकिन क्या भरोसा कि फिर नहीं उजाड़ी जाएगी,

ये कैसा कलयुग ठहरा है,

मंदिरों में देवियों को पूजा जाता है,

पर उनके वास्तविक रूप को सरेआम बेइज्ज़त किया जाता है ।।

 

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