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“अम्मा, क्या तुम्हें कभी ऑर्गैज़म हुआ है?”

Sex, masturbation and orgasm

Sex, masturbation and orgasm

मैं पहले से तुमसे ये पूछना चाहती थी। तुम्हारे कामोन्माद के बारे में क्या तुम मुझे बता सकती हो? अपने बदन के कोने कोने को तुमने कब जाना? किस उम्र में? क्या तुमने उस लड़के को तुम्हें छूने दिया जिसके साथ तुम कॉरम ( carrom) खेलती थी? जिस अंदाज़ में तुम उसका ज़िक्र किया करती थीं, मैं हमेशा सोच में पड़ जाती। मैंने बंबई के उस चाल के बाहर तुम्हारी कल्पना की, उन लड़कों के साथ बैठी हुई, स्कर्ट पहने, बाल चोटी में बंधे हुए और निशाने पर गोटी दागते हुए।

क्या तुम ख़ुद को छूती हो?

क्या पानी से खेलने से तुम्हें मज़ा आता है? यहाँ से दूर, समुद्र से लगे उस शहर में एक ऑफ़िस के टॉयलेट में मैंने जाना कि पानी की एक ऐसी नलिका भी होती है, जिससे पानी की फुहार कुछ यूँ निकलती है, कि उसका निशाने पर इस्तेमाल करने पर मेरा पूरा बदन आनंदित हो जाता है। तुम्हें तो याद ही होगा, कि हम जितने भी घरों में रहें, उनके टॉयलेट में हमेशा दीवार से लगे नल और प्लास्टिक के मग हुआ करते थे। इस वजह से भी ऑफिस की उस निराली नलिका – faucet – ने तो मुझे मोहित ही कर किया। मैंने उसे जांचा और उससे पानी की ऐसी फुहार छूटी कि मैं दंग रह गई। मैंने पानी के दबाव को कम ज़्यादा करने की कोशिश की। मैं पानी के कितने प्रेशर को सह सकती हूँ, ये थोड़ा बहुत समझ में आने लगा ही था, कि अचानक, मुझे कुछ तो हुआ। वो क्या था मैं कुछ समझी नहीं, और शायद मैं थोड़ा भौंचक्का रह गई। उस दोपहर, मेरा सलवार मेरे पैरों के पास पड़ा रह गया, और मैं स्टील के उस लंबे, लचीले पाइप के साथ खेलती बैठी। मैंने दोबारा कोशिश की। एक विशेष दबाव, एक विशेष जगह पर। मेरी जांघों की मांसपेशियों/ muscles को मैंने थोड़ा जकड़ते हुए महसूस किया। हिचकिचाते हुए मैंने फिर से उस नलिका को ट्राय किया, और ऐसा लगा कि कोई अजीब लेकिन फिर भी जाना पहचाना एहसास मेरे गहराई से उभर रहा था। और फिर तो कहानी जिस ओर बढ़ रही थी, वहाँ पहुँच ही गई। ऑफ़िस की कई दोपहर मैंने उस टॉयलेट में गुज़ारीं। जब कोई लड़की उसकी बैग टॉयलेट ले जाती है तब कोई भी उसे जल्दी करने को नहीं कहता। मैंने जाना कि ये कितनी बढ़िया बात हो सकती है।

मेरे प्यूबर्टी के दिन

आख़िर हमने आपस में वो बात की ही नहीं। मुझे याद है, जब किसी ने यह कहकर मेरा मज़ाक उड़ाया कि मेरे काँखों / underarms में बाल फूट फूट कर निकलने लगे थे- तब तुमने मुझसे बात की थी। तुमने मुझे ये कहा कि कैसे मैं जल्द ही एक फूल बनने वाली हूँ। और कई लड़के इस फूल को छूना चाहेंगे, और यह कि मुझे सतर्क रहना होगा। मुझे बिलकुल समझ नहीं आया था कि तुम मुझे अचानक बाग़बानी – gardening – क्यों सिखाने लगी हो। लेकिन काश हमने मेरे शरीर में छिपी उस कसी हुई नन्ही कली के बारे में बात की होती और मेरी अपनी उँगलियाँ से उसे छूने की बात की होती।

हस्त मैथुन से मिलती खुशी

शायद फिर मैं तुम्हें बता सकती कैसे मैं कभी कभी इस बात से परेशान होती थी कि मुझे उँगलियों में दर्द/ कार्पल टनल सिंड्रोम (carpel tunnel syndrome) हो जाएगा, और उसकी वजह कोई टाइपिंग वाइपिंग नहीं होगी। मैं अक्सर हस्त मैथुन/masturbate – ख़ुद को छूकर ख़ुद को आनंदित – करती हूँ । कई बार सिर्फ़ इसलिए कि मैं ऊब गई होती हूँ और करने के लिए कुछ नहीं होता, ख़ासकर छुट्टी के दिन। जो कुछ भी मिले, मैं खाती हूँ, लेट जाती हूँ, पाजामे की गाँठ खोलती हूँ और शुरू हो जाती हूँ। और फिर सारी दोपहर सोती हूँ। मुझे इससे ख़ुशी मिलती है।

तुम्हारा घर और दफ्तर संभालना

मुझे याद है तुम दोपहर में कैसे सोती थी, दफ़्तर से लौटने के बाद। तुम्हें सुबह की 5 बजे की ट्रेन पकड़नी होती। पापा और मैं बहुत देर बाद उठते थे, तुम्हारे तैयार किये हुए रोटी सब्ज़ी से भरे डब्बे लेते थे और शिकायत करते – कैसे तुम्हारे ट्यूब लाइट को झट से ऑन ऑफ़ करने से और बेडरूम के एकमात्र बड़े आईने में अपनी साड़ी का पल्लू ठीक करने से हमारे महत्त्वपूर्ण ख़्वाब भंग हो गए थे। हम लोग बड़े खराब थे। माफ़ी चाहती हूँ। लेकिन मानना होगा कि पापा ने टॉयलेट साफ़ किए और कपड़े भी धोए। और जितनी जल्दी हो सके, मैंने खाना पकाना सीख लिया चूँकि एक डिश से ज़्यादा पापा कभी कुछ बना नहीं पाए। तो हम इतने भी बुरे नहीं थे, है ना?

अपने शरीर से प्यार और अपने साथी से रिश्ता

प्यार जिसे मैं अब प्यार करती हूँ वो दोपहर में नहीं सोता। हाथ में किताब लिए वो इधर उधर मानो किसी जानवर की तरह घूमता है । मेरे दोपहर की नींद को लेकर हम कभी कभार झगड़ते हैं। वो हमेशा बेडरूम में कुछ खुटर पुटर करता रहता है और जो मेरी आँखें खुल जाती हैं तो फिर मुसकुराकर कहता है कि उठने का समय हो गया है। कभी कभार नींद में ही मैं उससे लिपट जाती हूँ और उसे अपने पास खींच लेती हूँ। और कभी कभार मैं चिड़चिड़ी हो जाती हूँ। और हम झगड़ते हैं।

हमारा बिस्तर का झगड़ा

हमारा पहला ‘बिस्तर का झगड़ा’ (सेक्स को लेकर झगड़ों को और क्या कहते हैं?) मेरे हस्त मैथुन – masturbation – करने के बारे में था। हम एक दूसरे से लिपटकर चूम रहे थे, और आहिस्ता आहिस्ता हमने एक दूसरों के कपड़े उतार दिए थे। मेरे कपड़ें उसने बड़े ध्यानपूर्वक उतारे, जैसे वो अपने पसंदीदा चॉकलेट का रैपर खोल रहा हो। थोड़ी देर बाद वो कॉन्डम ढूंढने दूसरी रूम में गया। अपनी जगह से भटके हुए एक परदे को पार करते हुए चाँद की हलकी सी रोशनी रूम को दुलार रही थी। मेरी हथेली से मैं अपनी जांघें मलने लगी, अपने मांस को महसूस करते हुए। और मेरी उँगलियाँ यूं ही अंदर चली गईं, और इससे पहले कि मैं कुछ कह सोच पाती, मैंने उल्लास की वो सीमा पार कर ली थी।

खुद को जानने के बहाने मैंने उसे जाना

जब मैंने मेरी आँखें खोली तो वो मुझे देख रहा था। वो निराश नज़र आया। मेरे लिए रुक भी नहीं सकी, वो बोला। मैंने कहा, नहीं, नहीं, मेरे पास आओ। लेकिन वो बस इतना ज़्यादा मायूस दिख रहा था और वो वहां से चला गया। हम उन दिनों एक दूसरे को धीरे धीरे जानने ही लगे थे। मुझे क्या आरामदेह लगता था, उसे क्या आरामदेह लगता था।

सेक्स के बाद हस्त मैथुन का उल्लास और क्लाइमैक्स

मैंने जाना कि सेक्स करने के तुरंत बाद, हस्त मैथुन/ masturbation से मुझे मिलने वाला उल्लास -क्लाइमेक्स-सबसे ज़बरदस्त होता है। एक तो ख़ुद से लिपटे हुए बदन की वो गर्माहट, उसके ऊपर मेरे स्तन पर उसके होंठ, और आखिर में वो गरम उँगलियाँ मेरे अंदर। हाल ही में जब मुझे पूछा गया कि किसी से नई मुलाक़ात की सिचुएशन में, मुझे किस चीज़ से आनंद मिलता है, तब मैंने ये बात बताई । मैं शब्दों से परे इस हाल में हूँ – जैसे उत्तेजना को शब्दों के ज़रिये स्क्रीन पर दर्शाना हो।

अम्मा क्या तुम इन चीजों से उत्तेजित होती हो

अम्मा, हमारे बदन इतने समान हैं। क्या इसका मतलब है, हमें जिन चीज़ों से ख़ुशी मिलती है वो भी एक समान हैं? क्या तुम भी औरतों की ओर आकर्षित हो? हम दोनों बिस्तर पर लेटे हुए थे। टेबल पर सही ऊँचाई पर रखे लैपटॉप पर हम पिक्चर देख रहे थे। हमने थोड़ी पी रखी थी और बत्तियां बंद थीं। लैपटॉप से निकलती रोशनी की लकीरों ने उसका मुँह घना नीला रंग दिया था। हम दोनों किसी बात पर हँसे, वो क्या बात थी मुझे याद नहीं, और वो मेरे पास सटककर लेट गई। उसने मुँह फेरा, और उसने मुझे चूमा। गर्मी की उस रात ने उसकी साबुनी खुशबू को और भी तीव्र कर दिया था। मुझे वो खुशबू याद है और उसकी लंबी, लंबी टांगें भी।

क्या औरतों के प्रति मेरा आकर्षित होना नॉर्मल था

मैं अक्सर औरतों के ख़्वाब देखती हूँ। इसका ज़िक्र मैंने मेरी सहेली से किया, और वो बोली, ये कहना मुश्किल है कि उनके बारे में सोचने की वजह क्या ये है कि हमारी संस्कृति में औरतों को किसी वस्तु की तरह समझा जाता है और आप भी उन्हें अभिलाषा के नज़रिये से देखने लगते हो, या वजह क्या ये है कि आप उनकी ओर आकर्षित हो। आम तौर पर समाज में लोगों को मिलने वाला सेक्स संबंधित प्रोत्साहन उन्हें एक औरत के बदन के ज़रिये मिलता है, है ना? मैं उसकी बात से कंफ्यूज हो गयी हूँ ।

एक दफ़े परदेश में ट्रेन में सफ़र करते समय मुझे सामने की सीट के थैले में ठूसा हुआ एक मैगज़ीन मिला। वो मर्दों के नंगे फ़ोटों से भरा हुआ था। वो ट्रेनें ज़्यादातर खाली होती हैं। मैंने मैगज़ीन के पन्ने पलटे, काफ़ी ख़ुश थी मैं, फ़ोटों से ज़्यादा कागज़ का एहसास मुझे तरसा रहा था। किसी भी मर्द को सामने से नंगा नहीं दिखाया गया था। फ़ोटों लाल भूरे और ब्लैक और व्हाइट रंगों में थे, उनकी पीठ कॅमेरे से मुड़ी हुई या मुँह मुड़े हुए। मैंने पन्ने पलटे, धीरे से, मेरी उँगलियां किसी आदमी की पीठ की लकीर खींचती हुईं, वो आदमी थोड़ा सा झुकते हुए, अपनी जांघें ऐंठते हुए, उसका बम गोलाकार। मैंने वो मैगज़ीन ट्रेन में छोड़ दिया।

क्या तुम्हें याद है जब हमने कामसूत्र देखा था?

नाइटी पहने, साथ में सोफ़े पर बैठे हुए, उस रात जब वो केबल टी वी पर दिखाया गया। पा, उनकी आदत से मजबूर, सो गए थे। जब वो सीन आया, तुम खिलखिलाई और मुझे आँखें बंद करने के लिए कहा। मैं खिलखिलाई, और बोली, मैं जानती हूँ क्या होता है, मैंने पहले देखा है। चौंककर, तुम हंसी, और फिर हम दोनों हंसे।

जिस चाल में तुम बड़ी हुई, उसमें सोफ़ा नहीं था। एक बड़ा परिवार वहां साथ में रहता था। तुमने मुझे बताया कैसे सब साथ सोते थे। बाप, भाई, माएँ और बच्चे। एक अंकल और एक भतीजी। तुमने उसके बारे में कभी बात नहीं की, पूछने के लिए मुझे शब्द नहीं मिले। लेकिन तुम्हारी आवाज़ से मुझे पता चला।

तुमने मुझे सिखाया कि घर में मौजूद लोगों से भी सतर्क रहना है

एक दिन जब मैं किशोरी थी और मैंने तुम्हारे पास आकर तुम्हें बताया कि उस दूसरे अंकल के साथ ऑटो में क्या हुआ था, तुम कितनी ग़ुस्सा थीं, और तुमने कहा कि वो मुझे फिर से कभी नहीं छूएंगे। तुमने कहा कि मुझे डरने की कोई जरूरत नहीं। हर बार जब हम उन्हें घरवालों की संगत में मिलते थे, तुम मेरी रक्षा करती। जैसे जैसे वक़्त बीतता गया, और ऑटो में उस शाम की याददाश्त धुंधली हो गई, मुझे पता है कि तुम वो बात कभी नहीं भूलीं थीं, चूँकि एक दिन घरवालों के एक कार्यक्रम में, उस अंकल ने कहे जोक पर मैं उसके थोड़ा करीब जाकर हंस रही थी, तुम अचानक से वहां आईं, और कोई काम करने के लिए मुझे वहां से बाहर निकाला। और फिर फुसफुसाईं, ‘सतर्क रहना’।

मुझसे गले न मिलने का कारण मैं समझती हूँ

तुम्हें वैसा फुसफुसाने के लिए कोई नहीं था। तुम अपनी अम्मा को कभी नहीं जान पाई, जो तुम एकदम छोटी थी तब चल बसी। तुम्हें गले से लगाने वाला कोई नहीं था। क्या इसलिए जब मैं तुम्हें गले लगती हूँ तुम्हें पसंद नहीं आता? तुम्हारे हाथ तन जाते हैं और तुम्हारे बदन से सट जाते हैं, और तुम्हारा मुँह इस अंदाज़ में जकड़ जाता है जैसे कि तुमने हद से ज़्यादा खट्टा दही खाया हो। मैं ज़िद करती और तुमसे गले लगी रहती, और कभी कभार तुम्हारा एक हाथ मुझे थपथपाता, एक तरह से मुझे बिन शब्दों से शांत कराते हुए। कई सालों से मैं कोशिश करती रहीं हूँ, तुम्हें गले मिलना, चूमना, और तुम इसके जवाब में ‘पोडुम, पो’ ‘बस हुआ, जाओ’ कहकर एक अजीब तरीके से हंसती थीं। मेरे ख्याल से वैसे करना सिर्फ़ हाल ही में तुमने बंद किया है।

क्या खुद से तुम कभी मुझसे गले मिलोगी?

इनी 38 वर्षीय औरत है, जो षड्यंत्र रचती है कि कैसे अजनबियों से मिला जाए, और जो ‘The Moving finger writhes’ यानी ‘हिलती हुई ऊँगली तड़पती है’ जैसी कविताएं लिखती है। इनी द्वारा लिखित, चित्रण- विद्या गोपाल

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