गर्मी के चलते तबियत थोड़ी नासाज़ सी है। काम से छुट्टी ले रखी है और बिस्तर पर पड़े हुए बस इंस्टाग्राम और फ़ेसबुक के गलियारे में घुमाई चल रही थी। इसी में एक वीडियो देखा जिसमें मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह कह रहे थे कि एक मामला दमोह का संज्ञान में आया है और किसी भी बेटी को कोई भी स्कूल बाध्य नहीं कर सकता कि वो कोई ऐसी चीज़ पहने जो उनकी परंपरा में नहीं है। थोड़ी जाँच पड़ताल की तो पता चला मामला वही हिंदू मुस्लिम वाला है। दमोह के एक स्कूल का ड्रेस कोड है जिसमें स्कार्फ़ भी शामिल है और उसी स्कार्फ को हिज़ाब के स्कार्फ के तरह पहनने को लेकर ये पूरा मामला है।
क्या सीएम से भी बढ़कर हैं स्कूल के नियम
एक तरफ़ तो एमपी के सीएम साहब कह रहे हैं कि किसी भी बेटी को परंपरा के ख़िलाफ़ कुछ भी करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। वहीं, दूसरी तरफ़ उस स्कूल के प्रार्थना में एक धर्म विशेष के देवी के प्रार्थना को शामिल किए जाने की बात हो रही है। क्या ये सच में एक पंथ निरपेक्ष राज्य को और शिक्षा के मंदिर को धर्म से परे रखने में सहयोग कर पाएगा।
किसी एक धर्म से क्यों जुड़े हैं शैक्षिक संस्थान
इसी तरह जब हम आरएसएस के विद्या भारती संगठन द्वारा संचालित स्कूल के नियमावली में जाते हैं तो वहाँ पूरे स्कूल में सिर्फ़ एक धर्म विशेष की परंपराओं का ही बोल बाला है। वहाँ प्रार्थना सिर्फ़ एक धर्म से संबंधित होती है और बाक़ी सभी क्रियाकलाप भी। इसी तरह जब हम कॉन्वेंट स्कूलों की ओर देखते हैं तो वहाँ भी इसी तरह की परिस्थिति है। वहाँ धर्म विशेष के चलते परंपराओं के पालन पर रोक लगाई जाती है और इसके पीछे उनका तर्क होता है कि बच्चों को पढ़ाना है न कि इन सब में व्यस्त करना है।
शिक्षा बड़ा या धार्मिक विचार
इन सब से परे जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वो ये है कि हम बच्चों को स्कूल क्यों भेजते हैं ? हाँ, पढ़ने के लिए ही न। फिर दमोह के उस स्कूल की बात करूँ या कॉन्वेंट स्कूल की या आरएसएस पोषित स्कूलों की, यदि ये सभी स्कूल बेसिक गाइडलाइन को फॉलो करते हुए बच्चों की पढ़ाई अच्छी करवा रहे हैं। तभी हम इन स्कूलों में अपने बच्चों को भेज भी रहे हैं। पर स्कूलों को भी ये ध्यान रखना होगा कि वे शिक्षा के केंद्र बने न कि धार्मिक परंपराओं के रक्षक।
स्कूलों में बने अच्छे विद्यार्थी
वे अच्छे विद्यार्थी बनायें जो पढ़ने में अच्छे हों और जब वे अच्छी शिक्षा देंगे तो धर्मों के नाम पर पैदा होने वाले मैल ख़ुद ब ख़ुद साफ़ हो जाएगी । वे बच्चे अच्छे इंसान बनेंगे न कि हिंदू या मुस्लिम। सबसे ज़रूरी बात सभी स्कूल में प्रार्थना का एक प्रारूप हो। ऐसा करने से सभी धर्मों की प्रार्थना हो पाएगी जिससे किसी भी धर्म विशेष को कोई परेशानी न हो। उनके ड्रेस कोड भी इस तरह हों जिससे किसी भी धर्म विशेष को ठेस न पहुँचे और इन सब का ध्यान ज़िला शिक्षा कार्यालय के द्वारा किया जाए।
धर्म नहीं, शिक्षा को चुने
इन छोटी-छोटी बातों को ज़्यादा तूल न देते हुए राजनीति से परे उठ कर एमपी के सीएम शिवराज जी को पूरे देश के लिए एक मॉडल तैयार करने वाला काम करना चाहिए। मगर आप और हम सब ये भली भाँति जानते हैं कि ऐसा होगा नहीं। मध्य प्रदेश का भी चुनावी वर्ष है और ये सब हथकंडे तो बीजेपी अपनाएगी ही। आप और हमें ये समझना ज़रूरी है कि हम अपने बच्चों को इतना ही सिखाये कि पढ़ाई पर ध्यान दें। काम तो वही गणित, बायोलॉजी या यूमैनिटीज़ जैसे विषय ही आने हैं।