Site icon Youth Ki Awaaz

“महिलाओं के खिलाफ हिंसा का समाधान सिर्फ ‘फांसी’ नहीं हो सकता”

Violence against women must stop

Violence against women must stop

गत दिनों भारत की राजधानी दिल्ली में नृशंसता का एक और घिनौना चेहरा सामने आया है। दिल्ली हत्याकांड में साक्षी नामक महिला की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई, पर आते-जाते लोग देखकर चुपचाप निकल रहे थे। बिलकुल ऐसे जैसे कि ये कोई आम बात हो। कथित आरोपी साहिल लगातार चाकू मार रहा था और पीड़िता जमीन पर गिर गई थी। पर लोग मूकदर्शक बने रहे।

क्यों नहीं बंद हो रही है हिंसा

कई वर्ष पहले दिल्ली हत्याकांड में निर्भया के साथ दरिंदगी हुई थी। देश की जनता ने कहा कि दरिंदों को फांसी दो, ताकि कोई ऐसी जुर्रत फिर कोई ना करे। उस पीड़िता को 7 साल बाद न्याय मिला, फांसी हो गई, लेकिन क्या ये घटनाएं बंद हो गई? क्या अपराधियों की जुर्रत नहीं होती अब? आखिर समस्या कहां है?

महिलाओं को वस्तु समझना बंद करे समाज

समस्या है, उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा दिया जाना। इस समाज ने महिला को एक वस्तु के तौर पेश किया है। आप साबुन बेच रहे हो, तो उसमें महिला वस्तु है, परफ्यूम बेच रहे हो, उसमें महिला को आकर्षित करने के लिए वस्तु बनाया गया है, यहां तक कि आप पुरुषों के वस्त्र भी बेच रहे हैं, तो उसमें भी महिला को वस्तु बना कर बेच रहे हैं।

इस पुरुष प्रधान समाज में महिला केवल एक वस्तु है। जब बच्चा शुरू से ही इस माहौल में ये सब देख रहा है, तो उसे लगने लगता है कि महिला पर उसका अधिकार है। अगर महिला पुरुष को रिजेक्ट कर देती है, तो उसका “इगो हर्ट” हो जाता है। इस उपभोक्तावादी संस्कृति में पुरुष को लगता है कि महिला एक वस्तु है, और वह उसका उपभोक्ता है। “इगो हर्ट” होने पर वह मुंह पर तेजाब छिड़कने से लेकर बलात्कार और कत्ल तक को अंजाम देता है। महिलाओं की इस प्रकार नृशंस हत्याओं के पीछे आपकी महिलाओं को लेकर पितृसत्तात्मक सोच और इस समाज की उपभोक्तावादी संस्कृति है।

पुरुषों के लिए न सुनना क्यों कठिन है

आपको लगता है कि पुरुष शारीरिक और मानसिक रूप से महिला से ज्यादा मजबूत होते हैं और महिलाओं को केवल उपभोग के लिए रखा जाना चाहिए। आपकी सोच है कि महिला सिर्फ भोगने के लिए है। आप विज्ञापनों से लेकर गानों और फिल्मों में महिला के अंगों पर कैमरा फोकस करके उसको वस्तु की तरह बेच रहे हो। केवल अपराधियों को फांसी देने से ये सोच खत्म हो जाएगी, ऐसा लगता नहीं है।

धर्म के नाम पर हिंसा

उस पर भी “लव जिहाद” के नाम पर राजनीति करने वाले अपनी रोटियां सेंक लेते हैं। राज्यसभा में ये सवाल किया गया था कि “लव जिहाद” के कितने मामले दर्ज हुए हैं। इस पर सरकार का उत्तर था कि “लव जिहाद” जैसा कोई शब्द कानून में ही नहीं है। यहां भी आपकी पुरुषवादी सोच साफ दिखाई देती है। एक कम्युनिटी के लिए नफरत फैलाने को आपको सामग्री मिल जाती है, जिसमें आप महिला को अपनी राजनीति के लिए बेच रहे हो।

कैसे अंत हो समस्या का

इस समस्या का अंत कैसे होगा? यह तभी हो सकता है जब पूंजीवादी उपभोक्तावादी संस्कृति को खत्म किया जाए। जब आप महिला को एक वस्तु बनाकर पेश नहीं करोगे, जब आप अपनी पुरुषवादी सोच खत्म करके महिला को बराबर समझेंगे। उठिए, इस उपभोक्तावादी बलात्कारी संस्कृति के खिलाफ खड़े होइए। अपनी आने वाली नस्लों की सोच बदलने के लिए प्रयास कीजिए और महिला पुरुष का भेदभाव खत्म करके एक सभ्य समाज का निर्माण कीजिए।

Exit mobile version