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“टीचर का काम सिर्फ़ किताबी ज्ञान देना नहीं होता”

हरियाणा के सोनीपत एवं सिरसा जिले के उच्च माध्यमिक एवं वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों के साथ अवंती फेलोज संस्था के “रिसर्च एंड इवैल्यूएशन टीम” से एसोसिएट के रूप में जुड़ कर पिछले डेढ़ वर्ष से कार्य कर रहा हूँ | इस दौरान गणित एवं विज्ञान विषय के शिक्षकों के अलावा अन्य विषयों के शिक्षकों के साथ जुड़ कर काम करने का मौका मिला। इस दौरान बहुत बार बहुत से शिक्षकगण का उनके बेहतरीन उम्दा क्रियाकलापों का अवलोकन किया, जिसमें दो घटना मुझें ज्यादा प्रभावित किया।

क्या एक शिक्षक केवल अपने विषय ज्ञान तक ही सीमित है?

इन दो घटनाओं का उल्लेख आपलोगों के साथ करना बेहद आवश्यक हो जाता है, क्योंकि हमारे परिवेश में एक बेहतर शिक्षक की परिभाषा उनके विषय पे बेहतर पकड़ से परिभाषित होता है | परंतु नीचे वर्णित दोनों घटनाओ ने मुझें पुनः यह सोचने पे विवश कर दिया कि एक बेहतर शिक्षक का तात्पर्य उनके विषय पे बेहतर पकड़ से ही नही अपितु उनका व्यवहार एवं विचार छात्रों के प्रति भी बेहतर होना चाहिए।

बच्चे अपने ज्ञान का निर्माण स्वयं करते हैं। इस क्रम में शिक्षक एक सुगमकर्त्ता के रूप में बच्चों की ज्ञान निर्माण प्रक्रिया में सहभागिता निभाता है जिससे सीखना बच्चों के लिए अर्थपूर्ण बन सके। शिक्षकों को शिक्षण को एक अलग नजरिए से देखना चाहिए और ऐसा करते हुए अपने छात्रों को सीखने (यहाँ सीखने और सिखाने का तात्पर्य सिर्फ पाठ्य-पुस्तक की टॉपिक ही नही अपितु अपने आचरण एवं व्यवहार से भी हैं) के लिए भी प्रेरित करना चाहिए। प्रेरित होने के लिए, छात्रों को उस काम का महत्व देखना चाहिए, जो वे खुद देख रहे हैं और वह काम जो दूसरे (शिक्षक, सहपाठी, घर के परिजन या ग्रामीण-जन) करते हैं।

शिक्षक समाज की नींव ही नहीं शिक्षक समाज का आईना भी होते है। क्योंकि जैसा शिक्षक वैसा ही समाज (समाज का तात्पर्य छात्रों से है क्योंकि छात्र भी उसी स्कूली समुदाय का एक अभिन्न अंग है, जो आगे चल कर उस गांव/समुदाय का नेतृत्व भी कर रहे होंगें) भी होता है अर्थात समाज शिक्षक के आचरण को अंगीकार करते है इसलिए शिक्षक में उनका उत्तम व्यक्तित्व, चरित्र एवं कार्य निष्ठा का अनिवार्य गुण परिलक्षित होना चाहिए।

अब मैं आपको उन दो शिक्षकों के बारे में बताना चाहूंगा जिन्होंने मेरे इस विचार को प्रेरित किया और जो इस विचार के आदर्श हैं

पहला अनुभव – एक शिक्षक और एक पालनहार

यह अनुभव सिरसा जिला मुख्यालय से करीब तीस किलोमीटर दूर अवस्तिथ एक वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के दौरा(अप्रैल 2023) के दौरान हुआ। हमने देखा कि एक शिक्षक अपनी कक्षा के करीब तीन से चार विद्यार्थियों से पूछ रहे हैं कि आपने दोपहर का भोजन (मिड डे मील से प्राप्त खाद्य सामग्री क्योंकि ये सारे विद्यार्थी दसवीं कक्षा के थे) कर लिया? उनमें से एक विद्यार्थी को छोड़ कर, सभी ने कहा कि हाँ कर लिया | फिर शिक्षक ने उन्हें किसी चीज की दवा दी, जो उनके स्वास्थ्य से सम्बंधित था।

जिस विद्यार्थी ने खाना नही खाया था उसको शिक्षक ने कहा कि आप मेरे टिफिन बॉक्स से खाना निकाल कर खा लो फिर दवा खा लेना। इतना कह कर अपना टिफिन बॉक्स उक्त विद्यार्थी को देते हुए शिक्षक दुसरे कक्षा में चले गए। बाद में जब मैंने उक्त शिक्षक से बात किया तो उन्होंने कहाँ की ये सारे विद्यार्थी सुबह से अभी तक कुछ खाये नही है क्योंकि उनके घर पे खाने को कुछ नहीं था या उनके अभिभावक नशा कर के कही बेसुध पड़े होंगे, जिससे भी इनको भोजन नही मिला होगा। परंतु इनका दवा खाना जरूरी था। इसलिए मैंने उन्हें अपना भोजन दे दिया।

       सोनीपत जिले के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र मे स्तिथ वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, छपरा के गणित के शिक्षक अशोक सर

दूसरा अनुभव – एक शिक्षक और एक सामुदायिक परिवर्तनकर्ता

अगस्त 2022 में एक दिन मैं सोनीपत के कथूरा ब्लॉक के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में अवस्तिथ एक वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के दौरा के दौरान विद्यालय में नये स्थानांतरण हो के आये गणित विषय के शिक्षक को जब मैं अपने संस्था के उद्देश्य एवं विद्यालय में अब तक किये गए कार्यो की जानकारी दे रहा था उसी दौरान बातचीत के क्रम में उन्होंने ने बताया कि यह उनकी दूसरी स्थान्तरण है और विद्यालय का समुदाय के ही वे निवासी है लेकिन उनका रहन सहन पिछले 30 वर्षों से नजदीकी ब्लॉक मुख्यालय पे हैं।

उनका यहाँ स्थान्तरण कराने का मुख्य उद्देश्य है कि हम अपने गाँव के बच्चों को अपने विषय में अच्छा बनाना है। इसके लिए बच्चों को मैं दोनों घर (स्कूल एवं निवास स्थान) पे सहयोग कर पाऊंगा, क्योंकि जब हम एक बच्चों को स्कूल में बेहतर कराने की कोशिश करेंगे, लेकिन अगर उनके पारिवारिक वातावरण अच्छा नही होगा तो भी उनका बेहतर करने का प्रतिशत घट जायेगा, इसलिए मैं इस गाँव के होने के नाते मैं उनको दोनों जगहों पे बेहतर तरीके से अच्छा करने में सहयोग कर पाऊँगा। उपरोक्त सारे कथन मैंने अपने आगे के विद्यालय दौरों के दौरान उनके कार्यो में भी देख पाया।  

अपने संस्था के कार्यो को लेकर विद्यालय के दौरों के दौरान दरम्यान एवं उपरोक्त घटनाओं से कुछ चीजें जो समझ मे आयी (जो निम्न है) कि इनके अभाव में एक शिक्षक विद्यार्थियों की बेहतर देखभाल नही कर पायेंगे अर्थात उन्हें अपना-पन का भाव नहीं दे सकते हैं, जिसका परिणाम यह होगा कि हम बच्चों की सम्रग विकास के आयाम को प्राप्त नही कर पायेंगे, या यूं कहें कि हमें निम्न बिंदुओं पर कार्य करने की ज़रूरत है, जिसे कुछ विद्यालय के शिक्षकगण कर भी रहें होंगें, अपने पिछले 4 महीनों के कार्य के दौरान किया भी रहें होंगें, वो बिंदू निम्नवत है।

आदर्श व्यक्तित्व : शिक्षक की जिम्मेदारी होती है कि बच्चों में अच्छे मानवीय गुणों एवं संवेदना और शिक्षा को बढ़ावा दें, क्योंकि स्कूल के वही बच्चें अपने गांव, समाज एवं देश का भविष्य होता है। इसलिए जरूरी है कि स्कूल का शिक्षक खुद चरित्रवान, विचारशील और अच्छे व्यवहार वाला हो ताकि उसे देखकर बच्चें उक्त शिक्षक को आदर्श मानने लगे, उनके जैसे अपना व्यवहार एवं विचार को विकसित करें। क्योंकि विद्यार्थियों के ऊपर शिक्षकों की एक अमिट छाप पड़ती हैं। स्कूल में बच्चे सिर्फ पढ़ाई के लिए नहीं भेजे जाते हैं बिल्क इसलिए भी भेजे जाते हैं कि उनका व्यक्तित्व निर्माण हो सके वे भोंदू या संकोची बनकर ही नहीं रह जाएं।

अनुभव बांटे : शिक्षक का कार्य सिर्फ पाठ्यपुस्तक की किताबें पढ़ाते रहना नहीं होता उसे अपने जीवन के अनुभव भी बांटना चाहिए। इससे एक शिक्षक अपने कक्षा के बच्चों के साथ बेहतर तालमेल बैठा पाएंगे। एक बेहतर शिक्षक वही होता है जो अपने विद्यार्थी को जीवन में अच्छे बुरे की पहचान, उज्जवल भविष्य के लिए जरूरी बातें, व्यवहार और मानवता की सीख दे।

निर्देश दें, आदेश नहीं: अच्छा शिक्षक कभी भी अपने विद्यार्थियों से आदेशात्मक भाषा में बात नहीं करता बल्कि वह विनम्रतापूर्वक निर्देश देता है और जब जरूरत होती है तो वह फटकार भी प्यार से लगा देता है। उसके व्यवहार अपने विद्यार्थियों से मित्रता का होता है। शिक्षक और विद्यार्थी के बीच अनुशासन जरूरी है, लेकिन अब समय बदल गया है। अब मित्रता भी जरूरी है जिससे आपको स्टेडेंट्स को समझने और समझाने दोनों में आसानी होगी। इससे अंतर्मुखी विद्यार्थी भी खुल सकेगा और उनका डर दूर होगा।

समान भाव : एक अच्छा शिक्षक वही होता है जो अपने सभी विद्यार्थियों से साथ समान व्यवहार करता है और सभी के आत्मविश्वास को बढ़ाने का कार्य करता है। कई बच्चे हैं तो दूसरे बच्चों की भांति पढ़ने में तेज नहीं होते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं परंतु शिक्षक को उन कारणों के बारे में न सोचते हुए यह सोचना चाहिए कि आज यदि कमजोर बच्चों पर ध्यान नहीं दिया गया तो ये बच्चे भविष्य में अपने जीवन में संघर्ष ही करते रहेंगे। माता पिता भले ही ध्यान दें या नहीं लेकिन शिक्षक को हर बच्चों को विशेष ध्यान देना चाहिए।

एक शिक्षक उपरोक्त चारो तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, एक बच्चा की अच्छे से देखभाल रखें एवं उनसे अपनापन भाव अपने विचार एवं व्यवहार दोनों से करें तो ना सिर्फ अपने बच्चों की शैक्षणिक स्तर बेहतर करेंगे अपितु बच्चों की समग्र विकास में अपनी उपयोगिता भी सुनिश्चित करेंगे।

निष्कर्ष

मनुष्य सामाजिक प्राणी है और मनुष्य होने के नाते हमसब चाहते है कि हम एक दूसरे का ख्याल रखें, एक दूसरे के साथ विकट, दुखद परिस्थितियों में मजबूती से खड़े हो, जितनी सहायता बने एक दूसरे को करें। हम अपेक्षा भी करते/रखते है कि जब एक व्यक्ति (जो कि मनुष्य भी है) जन्म लेता है तो वह सारे आत्मीय मानवीय गुण अपने घर से सीखें अर्थात उसे अपने घर पे वो माहौल मिले जहाँ से उसका विचार मानवीय मूल्यों एवं संवेदना से भरा हुआ हो।

जब हम घर की बात करते है तो एक छात्र के लिए सिर्फ उसके माता-पिता का घर ही घर नही होता है अपितु स्कूल भी उसका घर ही होता है। एक बच्चों के लिए जितना अपना-पन एवं अच्छी देख रेख की अपेक्षा उनके अभिभावक से रखते है ठीक वही अपेक्षा एक शिक्षक (स्कूल रूपी घर के अभिभावक) से भी होनी चाहिए। अपने काम के दौरान, शिक्षकों के इतने सारे उदाहरण देखकर मुझे खुशी होती है जो कठिन परिस्थितियों से आने वाले छात्रों को एक दूसरा स्थिर घर प्रदान करते हैं। 

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