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“कई नेताओं की नाकाम कोशिशें, और टुकड़ों में बँटता चला गया भारत”

India and Pakistan army holding respective flags

India and Pakistan army holding respective flags

पाकिस्तान अधिनस्थ कश्मीर या पीओके. आज भारत का न सिर्फ हिस्सा होता बल्कि सबसे शांत और प्रगतिशील राज्य भी। लेकिन कुछ लोगों की बेवकूफी का नतीजा भारत आज तक भुगत रहा है। 

कई प्रांतों को समेटने का था मौका

1947 के बाद भारत के पास कई ऐसे मौके आए जब भारत ना सिर्फ पीओके बल्कि सिंध, बलुचिस्तान, गिलगिट और बाल्टीस्तान जैसे प्रांतो का भी विलय भारत में आसानी से कर सकता था। किंतु कुछ लोग राजनीतिक फायदे के लिए राष्ट्रहित भूल गए। इसका अंजाम आज तक भारत, आतंकवादी हमलों के रूप में झेल रहा है। इन हमलों में हमने न जाने कितने वीर पुत्रों को खो दिया और न जाने कितने बेकसूर कश्मीरी मौत के घाट उतार दिए गए।

कैसे कई मौका चूक गया भारत

● 1949 में पाकिस्तान ने जब सैन्य भारत में भेजा था तब भारत, पाकिस्तान द्वारा छेड़े गए युद्ध में विजयी होने ही वाला था कि नेहरू जी ने सीजफायर घोषित करवा दिया और खुद यूनाइटेड नेशंस चले गए। मिलट्री कमांडर इस फैसले के खिलाफ थे। उस एक झटके में हम पीओके सिंध, गिलगिट, बलुचिस्तान और बाल्टीसतान सब ले लेते। लेकिन नेहरू ने ऐसा होने नहीं दिया। पहली और सबसे बड़ी गलती।

● 1965 में जब भारत पाकिस्तान से युद्ध जीत गया था तब भारत चाहता तो ताशकंद एग्रीमेंट में यह बिंदू रख सकता था कि भारत जीता हुआ क्षेत्र तभी लौटाएगा जब पाकिस्तान उसे उसका पुराना क्षेत्र (राजा हरि सिंह का क्षेत्र) पूर्ण रूप से वापस करे। युद्ध का यह नियम होता है कि जीतने वाला संधि के केंद्र बिंदू रखता है। लेकिन भारत ने ऐसा नहीं किया। ये थी भारत की दूसरी बेवकूफी।

क्या इंदिरा गांधी ने की थी राजनीतिक भूल

1972 में ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो शिमला आए थे। पाकिस्तान की आर्मी ने भुट्टो से कहा था कि आर्मी सैनिकों की रिहाई हो, इस बात पर ध्यान रखा जाए। भुट्टो ने इंदिरा गांधी से मुलाकात करने की मांग की। डिप्लोमेटिक इशू होने की वजह से मांग स्वीकार कर ली गई। जब इंदिरा और भुट्टो की बैठक चल रही थी तब इंदिरा बिना किसी शर्त के कथित रूप से पाकिस्तान के शर्त मानती गई। इस कार्य से वे संसद में देवी बन गई। भारत की तीसरी बड़ी गलती।

अगर मैं प्रधान मंत्री होती तो क्या करती

मैं भुट्टो से कहती, “मुझे सिंध, पीओके, बलुचिस्तान, गिलगिट और बाल्टीस्तान दे और 93,000 ले। साथ ही यह शर्त भी रखती कि आज से पाकिस्तान का डिफेंस और फॉरेन अफ़ेयर भारत देखेगा। दोनों प्रस्तावों में उसे यही बात रखती और देखती की पाकिस्तान कौन-सी दिशा चुनता है। तब पाकिस्तान को अपनी औकात समझ आती। मरता क्या न करता ; अगर खाली हाथ जाता तो पाकिस्तानी आर्मी उसे जिंदा न छोड़ती। 1972 में तो पाकिस्तान की गर्दन हमारे हाथ में थी।

ऐसे निर्णय थे राजनीतिक भूल या फैसले

इन निर्णयों को भूल कहें, गलती या राजनीतिक कौशल की कमी। ऐसे-ऐसे लोग इस देश के प्रधानमंत्री बने हैं जिन्होंने स्टेट्समैन्स के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंकी हैं। इसके विपरीत जब 2016 में पाकिस्तान ने पुलवामा में हमारे 19 जवानों को शहादत दी थी तब माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा था, “किसी देश ने बहुत भारी गलती कर दी है, उसको भुगतना पड़ेगा इसका अंजाम।” लोगों ने सोचा कि कई प्रधानमंत्री आए – गए , हम भी देखते हैं कि ये क्या कर लेते हैं। महज़ 10 दिनों के अंदर, शहीदों की तेरहवीं से पहले इसपर कार्रवाई की गई। जैश-ए-मुहम्मद का ट्रेनिंग बैस तबाह कर दिया गया। भारतीय वायु सेना ने 300-350 आतंकवादी मार गिराए।

लेख का उद्देश्य केवल सच से अवगत कराना है ना कि किसी व्यक्ति विशेष के राजनीतिक विचारों को आहत करना।

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