आजाद भारत के शुरुआती समय में महिलाओं की शिक्षा के बारे में क्या सोचा गया? आज इस लेख में मैं इस विषय पर थोड़ी सी बात करूंगा। आजादी मिलने के बाद और भारत के संविधान के लागू होने के बीच में शिक्षा के मसलों पर राय देने के लिए भारत सरकार ने एक आयोग का गठन किया। संक्षेप में उस आयोग को राधाकृष्णन आयोग कहते हैं। उस आयोग के द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट का शीर्षक है – द रिपोर्ट ऑफ द यूनिवर्सिटी एजुकेशन कमिशन, 1948। कम समय में किसी आयोग के परिप्रेक्ष्य और उसकी सिफारिशों पर बात कर पाना असंभव है। इसलिए मैं केवल महिला-शिक्षा पर बात करूंगा।
क्या आयोग में हो रही है महिलाओं की शिक्षा की बात
इस आयोग ने महिलाओं की शिक्षा के बारे में क्या सिफारिशें की हैं ? यह आयोग महिला-शिक्षा को किस नजरिए से समझ रहा था। मैं इस बारे में बात करूंगा। इस आयोग के 12वें अध्याय का शीर्षक है – वुमन’स एजुकेशन । आयोग महिलाओं की शिक्षा के बारे में जो कुछ कहता है, उसका ठीक-ठीक मूल्यांकन और विश्लेषण तभी हो पाएगा, जब हम को यह पता चलेगा कि आयोग शिक्षा की भूमिका के बारे में क्या कहता है।
आयोग शुरू में ही साफ करके चलता है कि एक नया भारत बनाना है। इस भारत के बनने का वैचारिक स्रौत भारत का संविधान और उसकी उद्देशिका में दिये गये मूल्य होंगे। हालांकि इस आयोग के बनने के समय भारत का संविधान लागू नहीं हुआ था लेकिन संविधान की उद्देशिका का ड्राफ्ट तैयार हो चुका था। समानता और व्यक्ति की गरिमा का सिद्धांत उस उद्देशिका में शामिल थे। आयोग बता रहा है कि शिक्षा के जरिए समानता के सिद्धांत को स्थापित करना है । आयोग, व्यक्ति की गरिमा जैसे मूल्यों की दिशा में बढ़ाना शिक्षा का उद्देश्य बता रहा है।
व्यक्ति की गरिमा का सिद्धांत कैसे होगा सफल
लेकिन असमानताओं से भरे देश में समानता और व्यक्ति की गरिमा के सिद्धांत को व्यवहार में कैसा लाया जाएगा । इसके लिए आयोग मानता है कि – Education is the great instrument of social emancipation by which a democracy establishes, maintains and protects the spirit of equality among its members।” ( The Report of the University Education Commission 1948, p। 43 )। यानी शिक्षा सामाजिक रूपांतरण का बहुत बड़ा साधन है। ऐसा साधन जिसके जरिए कोई लोकतंत्र अपने सदस्यों में समानता की चेतना को स्थापित करता है, बनाए रखता है और सुरक्षित रखता है। यानी लोकतंत्र के मूल में समानता का मूल्य है और समानता के मूल्य को स्थापित करने के लिए शिक्षा की रूपांतरणकारी यानी ट्रांसफरमेटरी भूमिका है।
पारंपरिक परिवार व्यवस्था को बनाए रखने पर ज़ोर
जिन मूल्यों पर संविधान की रचना हो रही है थी, जो मूल्य ड्राफ्ट उद्देशिका में आए थे, उन मूल्यों का हवाला देते देते जब आयोग अपने 12वें अध्याय में महिलाओं की शिक्षा की बात करता है तो ऐसा लगता है कि वे सारे सिद्धांत अपनी जरूरत खो बैठे हैं और महिला-शिक्षा के संदर्भ में एक ही बात का ध्यान रखा जाना है और वह है पारंपरिक परिवार व्यवस्था को बनाए रखना। देश की आधी आबादी की शिक्षा के संदर्भ में शिक्षा की भूमिका रूपांतरणकारी न होकर यथास्थिति वादी होनी चाहिए। ऐसा राधाकृष्णन आयोग कह रहा है। रिपोर्ट के पेज 344 आयोग कहता है कि महिलाओं का काम घर की देखभाल करना है।
आयोग का घरेलू काम पर अहमियत
आयोग मानता है कि महिला और पुरुषों में सामान बौद्धिक क्षमता होती है, लेकिन महिलाओं की बौद्धिक क्षमता का उपयोग घरेलू कामों में होना चाहिए। अपने पेज 345 पर आयोग लिखता है कि – “The greatest profession of women is, and probably will continue to be, that of home maker” – यानी घर संभालना महिलाओं का काम था, है और रहेगा। शिक्षा से घर का रूपांतरण नहीं होगा और न ही होना चाहिए। आयोग ऐसा कह रहा है। अगर परिवारों का लोकतंत्र के पक्ष में रूपांतरण नहीं होगा तो लोकतंत्र व्यवहार में कैसे आएगा ? समाज के प्राइमरी इंस्टिट्यूशन को लोकतंत्र के दायरे से बाहर रखकर लोकतंत्र को और समानता की चेतना को स्थापित करना एक दिवास्वप्न है। आयोग लिखता है कि महिलाओं को घरेलू कामों की शिक्षा दी जानी चाहिए। अगर किसी महिला की तमन्ना ऊंचाइयों को छूने की है तो ऐसी तमन्ना को पूरा करने के लिए घर से बेहतर सेटिंग उसे कहां मिलेगी ! घरेलू काम कर करके एक औरत जितनी चाहे उतनी ऊंचाई छू ले ।
घर के कामों में सैटिस्फैक्शन खोजने की नसीहत
आयोग लिखता है कि महिलाओं को जीवन में satisfication चाहिए तो वह उसे घर को ठीक से संभाल कर और घरवालों और मेहमानों की देखभाल करके मिलेगा। अपने satisfication की तलाश में उसे किसी और बात पर ध्यान ही नहीं देना चाहिए । तो आयोग लिख रहा है कि महिलाएं :
घरेलू काम करने के लिए ही बनी है।
दूसरा उन्हें घरेलू काम में ही ऊंचाइयां छूनी चाहिए और
तीसरा उन्हें घरेलू कामों में ही संतोष खोजना चाहिए।
महिलाओं की समानता और स्वतंत्रता की अहमियत नहीं
महिलाओं के संदर्भ में आयोग द्वारा प्रस्तावित लोकतंत्र, समानता, व्यक्ति की गरिमा, स्वतंत्रता आदि मूल्यों का कोई मतलब नहीं है। आयोग के अनुसार महिलाओं की शिक्षा के संदर्भ में पारंपरिक सामंती मूल्य ही अपनाने चाहिए। इसलिए आयोग ने कहा है कि महिलाओं को होम इकोनॉमिक्स, नर्सिंग, टीचिंग और फाइन आर्ट्स के कोर्स करवाने चाहिए। इसके लिए महिलाओं के कॉलेज में Baby Home होना चाहिए। उनके कॉलेज में वृद्धाश्रम होना चाहिए ताकि कॉलेज में उनको घरेलू बनाने की शिक्षा ठीक से दी जा सके।
अपने पेज 345 पर आयोग लिखता है कि महिलाओं को वही सब सीखना चाहिए जो शादी में काम आता है। घर, बच्चे, बुजुर्ग संभालना उनकी शिक्षा के केंद्र में होने चाहिए। है न हैरानी की बात ! शिक्षा के विद्यार्थियों को इस बात पर हैरानी होनी चाहिए।