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हिन्दी कविता: जिस दिन हम अलग हुए!

Couple sitting in sunset

Couple sitting in sunset

चलो अच्छा ही हुआ जो तुम चले गए इस शहर से बिन बोले, 

वरना रोक लेता मैं तुम्हें शायद, और न जाने देता कभी 

किताबों में बंद कविताओं की तरह तुम्हें संजोग कर रख देता  

ना कभी स्याही खत्म होने देता, बस तुम्हें ही पढ़ता 

जिस दिन हम अलग हुए।

सोचता हूँ उन कविताओं का क्या करूँ?

जो मैंने तुम्हारे लिए लिखे थे, जो तुम्हें सोच कर कहानी बुने थे 

जब भी ओझल होती आँखों से तो उनको पढ़ते थे 

पर अब तो तुम हमेशा के लिए चले गए, 

अब किसको देखकर कविताएं बुने, लिखे भी तो नगमें कैसे?

अब कहता भी तो किस से कि तुम क्या थी मेरी,

बस एक कवि की कविता थी।

जिनको सुनने के लिए लोग दूर से आते थे, और मेरी कविताओं के गुण गाते थे,

पर अब वो गीत नहीं मेरे मन में, ना ही कोई धुन,

बस लिखता भी हूँ तो वेदना निकलती हैं, मोहब्बत सब गया भूल।

अब वो नहीं हैं बात यहाँ,

क्योंकि जिस दिन तुम चले गए अपने साथ सब ले गए,

जिस दिन हम अलग हुए!

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