शाम का समय था। हम दो लोग( मैं और मेरी सीनियर ) जीबी रोड के लिए निकले। मन में कई तरह के सवाल उठ रहे थे। जो मैंने लोगों से सुने थे, कि वहाँ जाना खतरे को मोल लेना है। गलती से भी उस गली में नहीं जाना चाहिए। बहुत गन्दा इलाका है। वहाँ की महिलायें बहुत खराब होती हैं। उसे बदनाम गली कहा जाता है। तरह – तरह के लोगों से तरह – तरह की बातें सुनी थीं, जिसकी वजह से मैं भी अंदर – अंदर थोड़ी डर गई थी। क्या होगा अगर लोगों की कही बात सही हुई तो, मैं कैसे बच के वहाँ से भागुंगी। मैं पहली बार जा रही थी, पर वाकई होता क्या है यह भी तो जानना था।
रेडलाइट एरिया में जाने का हमारा निर्णय
हम दोनों बस से नई दिल्ली उतरे और वहाँ से रिक्शा ले लिए। रिक्शे में बैठते ही रिक्शा वाला हमें घूरने लगा। मैं उसे अनदेखा करते हुए बाहर की तरफ देखने लगी क्योंकि मुझे पता था इनका सोचना, इस तरह से देखना, घूरना, ये सब लाज़मी है। इस गली में कोई क्यों ही आयेगा, खास करके एक लड़की। जहाँ की ज़िन्दगी नरक से बदतर होती है। बाहर देखते हुए भी मैं थोड़ी देर के लिए बाहर की दुनिया से अनजान हो गई थी।
मेरे मन का उधेड़बुन
फिर मेरी स्मृतियों को तोड़ते हुए रिक्शे वाले बोल पड़े। आ गया मैम। बाहर निकलते ही ऐसा लगा, जैसे मेरी आँखों के सामने कोई फिल्म चल रही हो। खिड़की से बोझिल आँखे रास्ते के तरफ ही देख रही थीं। उन आँखों में बेबसी थी। अजीब सी लाचारी थी, वो अपनी तरफ लोगों को बुलाने का इशारा कर रही थीं। यह देखते हुए मेरे मन में तरह – तरह की बातें घूमने लगीं। कितना मुश्किल होता होगा न यह सब करना। मज़बूरियाँ भी कैसी होती हैं जो इन्हें अपनी ज़िन्दगी के बारे में सोचने ही न दें। आखिर इन महिलाओं का क्या कसूर होगा? क्या ये महिलायें कभी सोच भी सकती हैं कि कभी वो मनचाही ज़िन्दगी जियेंगी? क्या इस दलदल में फंसना उनकी गलती होगी जो वो भुगत रही है? मैंने कई फिल्मों में देखी या कहानियों में पढ़ी थी कि यहाँ आई हुई ज्यादातर महिलायें किसी न किसी के धोखे की शिकार हैं। किसी के प्रेमी ने जबरदस्ती पैसे के लालच में बेच दिया, तो कोई बाप गरीबी के कारण इन्हें इस नर्क में बेच गया।
उनकी नज़रों से समझा पैसों की अहमियत
अपनी ख़ुशी से कौन ही आयेगा यहाँ। खैर, वहाँ से आगे बढ़ते ही मैंने देखा कि सामने बहुत सी लड़कियाँ खड़ी हैं। सब के चेहरे पर मुस्कान है। सिर्फ आँखें हँस रही हैँ या होंठ, बाकी चेहरा किसी अन्य तल के प्रशांत में अधडूबी चट्टान सा झलक रहा है। यह साफ दिखाई दे रहा है एक लड़की ग्राहक से बात कर रही है। दरअसल वो अपने जिस्म का सौदा कर रही है। बात साफ सुनाई नहीं दे रही है पर हाँ कुछ पैसे की ही बात है।
सजती सँवरती मजबूर गरीब महिलाएं
वहाँ से हम सीढ़ियों के द्वारा अंदर जाते हैं और अंदर जाते ही लगभग चालीस साल की महिला बैठी हैं। हमें देखते ही कुर्सी छोड़ कर खड़ी हो जाती हैं। हँसते हुये बड़े ही प्यार से बोलती हैं। बैठिये न मैम। बालों में कंघी करते हुए कहती हैं अभी सौदे का टाइम है। इसलिए तैयार हो रही हूँ। हाथ में छोटा सा आईना है जिसमें न जाने कितनी परतें धूल चढ़ी हुई है। उसी में वह अपना चेहरा देख कर सँवर रही हैं। सामने मेकअप बॉक्स है जिसमें बहुत ही पुरानी लिप्सटिक, पाउडर, काजल है। देखने से लग रहा है जैसे सब खराब हो चुका है।
मेरी सीनियर कहती हैं ये मेकअप तो अब खराब हो गया है दूसरा ले लीजिये। सामने बैठी महिला हँसते हुए कहती है काम ही तो चलाना है ले लेंगे। एक तो वहाँ पर सबके चेहरे हँसते हुए दिखेंगे। लेकिन उस चेहरे के पीछे कितना दर्द है यह जानना मुश्किल है। फिर वह हम लोगों से पूछती हैं वैसे आप लोग किससे मिलने आये हैं। मालकिन तो नहीं है, एक दो दिन बाद आयेगी। यह कहते हुये वो मेकअप अपने चेहरे पर लगा रही हैं। लगा नहीं रही है, ऐसा लग रहा है जैसे जबरदस्ती थोप रही हों।
उनकी मजबूरी देख मेरा असहज होना
सामने छोटे – छोटे कमरे हैं। उसमें लड़कियाँ अपने ग्राहक के साथ आ रही हैं फिर दरवाज़ा बंद हो जा रहा है। यह सब देखते हुए मुझे अब अंदर से अजीब सी बेचैनी होने लगी। बहुत घुटन सी हो रही है, साँस बहुत तेजी में चल रही है। पहले जो मेरे मन में डर था वो अब बिलकुल भी नहीं है। मैं अपने को लेकर असुरक्षित महसूस नहीं कर रही हूँ लेकिन मुझे अब उस जगह से दिक्कत होने लगी है।
हर तरफ मेकअप की महक है। एक महिला तैयार होकर उठती है तो दूसरी बैठ जाती है। हम सबसे बात करने की कोशिश कर रहे हैं। मेरे मन में बहुत सी बाते हैं जो मैं पूछ लेना चाहती हूँ कि वो लोग यहाँ पर कैसा महसूस करती हैं बहुत सवाल भी हैं जैसे आप यहाँ कब आईं, कैसे आई, क्यों आई, क्या आपको, अपनों की याद नहीं आती है? माँ, बहन भाई कोई है आपका? अगर है तो क्या आपका मन नहीं हुआ कभी जाने का, या आपके परिवार वाले कभी सम्पर्क किये, आप उनके सम्पर्क हैं। क्या आपको धोखे से बेचा गया है?
मेरा एक सवाल और घबराती महिला
काफी सारे सवाल मन में हैं। मन हो रहा है पूछ लूँ, लेकिन थोड़ा अजीब लग रहा है क्या सोचेंगी आते- आते सवाल पूछने लगी और वो मुझे क्यों बतायेंगी। मैं तो एक अजनबी हूँ, यहाँ पर हर किसी के लिए। मैं तो अपनों को भी जल्दी अपनी बातें नहीं बताती हूँ, ये लोग कैसे बतायेंगी जो खुद ही धोखे की शिकार हैं।
फिर भी एक कोशिश करने में क्या जाता है यह सोचते हुए मैं सामने तैयार हो रही एक महिला से पूछ ही लेती हूँ। आप यहाँ पर कब से हैं? यह सुनते ही वो महिला एकदम से घबड़ा जाती है और कुर्सी छोड़ कर उठ जाती है, इधर-उधर कुछ खोजने लगती है। जैसे उसका कुछ खो गया है। फिर बोलती है यह क्या सवाल है। आपको क्यों जानना है।
मैं तो बस बातचीत करने कोशिश कर रही थी। यह सुनते ही वो महिला जवाब न देते हुए वहाँ से निकल जाती है। पीछे से हम लोग भी बाहर आ जाते है क्योंकि सब अपने काम में व्यस्त हैं और बहुत शाम भी हो चुकी है। फिर हम अपने अधूरे सवाल–जवाब के साथ रिक्शा लेकर वहाँ से निकल जाते हैं।