सुने ना सुने
कोई बातें मेरी
मैं तो सदा
अपनी बातें कहूँगा
किसी से मुझे
कोई शिकवा नहीं
नींदों से सबको
जगाता रहूँगा
अभी भी जंगलों में
इंसान बसते हैं
नज़र उन तक
किसी की जाती नहीं है
सारी योजनाएं
शहरों तक सिमटी है
रोशनी की किरण वहाँ
तक पहुँचती नहीं है
शिक्षा का दीपक
बुझने ना दूंगा
शिक्षित सभी को
बना के रहूँगा
किसी से मुझे
कोई शिकवा नहीं
नींदों से सबको
जगाता रहूँगा
अभी भी लोग खुले
आसमान में रहते हैं
सबको यहाँ तक
खाना नहीं मिलता है
दूर-दूर तक प्रशासन
नज़र आता नहीं
इनके आँसुओं को
कोई नहीं पोंछता है
इस संदेश को
कोई सुने ना सुने
मैं इसे
लोगों तक पहुंचाऊँगा
किसी से मुझे
कोई शिकवा नहीं
नींदों से सबको
जगाता रहूँगा
सुने ना सुने
कोई बातें मेरी
मैं तो सदा
अपनी बातें कहूँगा
किसी से मुझे
कोई शिकवा नहीं
नींदों से सबको
जगाता रहूँगा !