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हिन्दी कविता: इन लोगों की बात सुनो!

poor in India

poor in India

सुने ना सुने

कोई बातें मेरी

मैं तो सदा

अपनी बातें कहूँगा

किसी से मुझे

कोई शिकवा नहीं

नींदों से सबको

जगाता रहूँगा

अभी भी जंगलों में

इंसान बसते हैं

नज़र उन तक

किसी की जाती नहीं है

सारी योजनाएं

शहरों तक सिमटी है

रोशनी की किरण वहाँ

तक पहुँचती नहीं है

शिक्षा का दीपक

बुझने ना दूंगा

शिक्षित सभी को

बना के रहूँगा

किसी से मुझे

कोई शिकवा नहीं

नींदों से सबको

जगाता रहूँगा

अभी भी लोग खुले

आसमान में रहते हैं

सबको यहाँ तक

खाना नहीं मिलता है

दूर-दूर तक प्रशासन

नज़र आता नहीं

इनके आँसुओं को

कोई नहीं पोंछता है

इस संदेश को

कोई सुने ना सुने

मैं इसे

लोगों तक पहुंचाऊँगा

किसी से मुझे

कोई शिकवा नहीं

नींदों से सबको

जगाता रहूँगा

सुने ना सुने

कोई बातें मेरी

मैं तो सदा

अपनी बातें कहूँगा

किसी से मुझे

कोई शिकवा नहीं

नींदों से सबको

जगाता रहूँगा !

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