यू.पी.एस.सी सिविल सर्विसेज परीक्षा भारत में युवाओं के लिए सबसे अधिक प्रतिस्पर्धी और मुश्किल प्रतियोगी परीक्षाओं में से एक है। यू.पी.एस.सी परीक्षा में तीन पड़ाव होते हैं -प्रारंभिक ,मुख्य और साक्षात्कार। पर इन सबके बीच मानसिक स्वास्थ्य का अनकहा परीक्षण एक ऐसा सच है जो अक्सर उतना चर्चा में नहीं आता है। जबकि यह इस पूरी प्रक्रिया में बेहद ज़रूरी मामला है जिससे अमूमन हर एस्पिरैंट गुज़रता है। यू.पी.एस.सी की तैयारी की पूरी प्रक्रिया आमतौर पर लगभग एक साल लम्बी होती है पर अनिश्चितता होने की वजह से कई बार सालों भी लग जाते हैं। ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियां और बढ़ जाती हैं।
यू.पी.एस.सी की तैयारी मानसिक सेहत की कसौटी क्यों मानी जाती है
मानसिक सेहत दरअसल एक होलिस्टिक मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक तौर पर स्वस्थ और संतुष्ट होने का पैमाना है। यू.पी.एस.सी के सन्दर्भ में इसके दायरे में तमाम सारे लक्षण हो सकते हैं। कुछ प्रत्यक्ष और कुछ अप्रत्यक्ष जिनके साथ कई सारे पहलू जुड़े हुए हैं । मसलन परीक्षा की असफलता को खुद की असफलता से जोड़के देखने के कारण पैदा होने वाला गुस्सा और चिड़चिड़ापन एक आम लक्षण है। इसके अलावा पैनिक अटैक्स और एंग्जायटी डिसऑर्डर्स भी एस्पिरेंट्स में देखे जाते हैं। ये पैनिक अटैक्स कई बार व्यक्ति को न तो बैठने देते हैं और बुरे सपने और स्लीप डिसऑर्डर्स भी दे सकते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य के लिए लें चिकित्सकीय मदद
नींद नहीं आना और मन में हर वक्त अतीत और भविष्य के बीच फंसे रहना; जहां पुरानी असफलताओं , रोज़गार के बाज़ार से अलग-थलग पड़ने और समाज और लोगों के तानों का डर होता हो या फिर मूड की अस्थिरता जहां यू.पी.एस.सी परीक्षा को ही ज़िन्दगी का सर्वेसर्वा बना लिया जाता है और उसकी सफलता या असफलता; यहाँ तक कि मॉक टेस्ट्स के परफॉर्मन्स से खुद के मूड को जोड़ लेना-ये सभी अंततः मन की स्थिरता और फिर प्रोडक्टिविटी को प्रभावित करते हैं। जब यह मनःस्थिति गहराती है तो अवसाद का रूप भी ले सकती है जिसे तुरंत एक्सपर्ट सहायता और ध्यान देने की आवश्यकता है। कई दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में परीक्षा में लगातार असफलता और यह अवसाद एक अकेलेपन और गहरी निराशा की भावना डाल देता है। एस्पिरैंट ऐसे में आत्महत्या जैसा घातक कदम उठा लेते हैं।
शारीरिक स्वास्थ्य से भी हो सकता है तनाव
इसके अलावा घर से दूर रहने के कारण अक्सर शारीरिक स्वास्थ्य की समस्याएं भी मानसिक तनाव को जन्म देती हैं। उदाहरण के तौर पर अक्सर स्टूडेंट्स यू.पी.एस.सी की तैयारी के लिए दिल्ली की ओर रुख करते हैं। पर वहां जाकर कई बार उन्हें हवा-पानी-खाने में बदलाव के कारण तमाम शारीरिक बीमारियों का सामना करना पड़ता है जिसका नतीजा मानसिक सेहत पर भी पड़ता है। एक ही जगह पर घंटों बैठकर पढ़ने के कारण भी शारीरिक बीमारियों से जनित तनाव की समस्या भी होती है।
केवल यू.पी.एस.सी ही सफलता का पैमाना नहीं
साथ ही हमारे देश में यू.पी.एस.सी की परीक्षा और इसके टॉपर्स को लेकर जिस किस्म की ग्लोरिफिकेशन है, उस वजह से भी अक्सर युवाओं और उनके परिवारों को लगता है कि यही एक सफलता का पैमाना है। जबकि किसी भी देश में देश-समाज और व्यक्तिगत उन्नति के लिए कई तरीके हो सकते हैं। यह दबाव भी यू.पी.एस.सी की परीक्षा की प्रतिस्पर्धा को और मुश्किल बना देता है। इसके अलावा इस परीक्षा को देने वाले ऐसे युवा ,जो अमूमन पढ़ाई में अव्वल और ऐसे स्टूडेंट होते हैं जिन्होंने स्कूल या कॉलेज में कभी बहुत बड़े फेलियर्स नहीं देखे होते हैं। जब वे इस प्रक्रिया में लगातार या अचानक से पहली बार असफल होते हैं तो उनके लिए इसे टैकल करना मुश्किल हो जाता है।
परीक्षा और परिणाम के तनाव के बजाय प्रक्रिया का आनंद कैसे लें
यू.पी.एस.सी की तैयारी शुरू करने से पहले एस्पिरेंट्स को अपने सारे ऑप्शंस , संसाधनों और परीक्षा के बारे में पूरी जानकारी के साथ मानसिक मज़बूती का आंकलन ज़रूर कर लेना चाहिए। अगर आपकी मानसिक शान्ति और आत्मविश्वास के लिए आपका आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना ज़रूरी है, तो आपको उसके ऑप्शंस पर विचार ज़रूर करना चाहिए। हर अटेंप्ट के कुछ वक़्त पहले भी यह असेसमेंट होना चाहिए ताकि परीक्षा हॉल में आपकी मनःस्थिति एकदम मज़बूत हो चाहे एग्जाम और परिणाम की अनिश्चितताएं कैसी भी हो।
तमाम विशेषज्ञ और मेंटर्स ये बात अक्सर कहते हैं कि यू.पी.एस.सी परीक्षा के पहले दिन से ही (या ज़िन्दगी में हमेशा ही )शारीरिक और मानसिक सेहत का ध्यान सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। अच्छी सेहत और खुश मन बड़ी से बड़ी चुनौती से लड़ने में समर्थ हो सकता है। इसके लिए आप योग/एक्सरसाइज और ध्यान के लिए नियमित वक़्त निकाल सकते हैं। ध्यान विशेषतः आपको माइंडफुल और स्थिर चित्त रहने में मदद करता है। इसके साथ ही सही समय पर लिया गया पौष्टिक भोजन और पर्याप्त नींद भी कहीं मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े होते हैं।
बड़े नहीं छोटे-छोटे लक्ष्य बनाए
बड़े लक्ष्य के दबाव की बजाय छोटे छोटे दिन, सप्ताह या माह के आधार पर निश्चित किये गए लक्ष्यों को पूरा करने के लिए खुद को रिवार्ड करना भी अगली बार ऐसे ही काम करने को प्रेरित करता है। हालाँकि ज़िन्दगी में हर दिन एक सा नहीं होता ;अतः कभी लक्ष्य नहीं भी पूरा न हो पर आप थोड़ा आगे बढ़ें हों तो आप अपनी पीठ थपथपा सकते हैं।
अपनी हॉबीस को जिंदा रखें
अपनी हॉबीज़ , अपने हैप्पी ज़ोन्स को ज़िंदा रखना भी इस परीक्षा के दौरान बेहद ज़रूरी है। समय-समय पर ब्रेक लेना हो या खुद को खुश रखने के लिए जो तरीके संभव आपको लगें वो आपको ज़रूर करते रहना चाहिए। हालाँकि पढ़ाई और इन ब्रेक्स के बीच के बैलेंस को बनाये रखना भी मानसिक संतुष्टि के लिए ज़रूरी है।
काउंसलिंग की मदद लें
तमाम यू.पी.एस.सी एस्पिरेंट्स के अनुभव कई बार ये भी बताते हैं कि माता पिता और छात्रों दोनों स्तर पर काउंसलिंग की आवश्यकता है। कई बार मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियां आम परिवारों के सहयोग और साथ के बावजूद उनकी समझ के परे होती हैं और उन्हें सही समय पर पहचाना जाना ज़रूरी है। विशेषज्ञ का परामर्श और थेरेपी की ज़रुरत हो तो बिना हिचकिचाहट लेना चाहिए क्यूंकि बिना सही पहचान हुए निदान होने में देरी और डैमेज दोनों घातक हो सकते हैं। अपने किसी दोस्त को भी आप इसमें मदद कर सकते हैं।
अपने इर्द-गिर्द सिर्फ यू.पी.एस.सी नहीं बल्कि अन्य करियर -क्षेत्रों के लोगों का दायरा भी बढ़ाना सहायक हो सकता है क्योंकि हर वक़्त एक ही किस्म की बातें करना भी दिमाग को दबाव में और कुंद कर देता है। इसके अलावा ऐसे दोस्त, पार्टनर या मेंटर जो आपके भीतर की क्षमताओं को परीक्षा ही नहीं बल्कि एक इंसान के तौर पर बेहतर समझ सकें-उनसे बातें करना भी हीलिंग होता है।
कोचिंग संस्थानों में अनिवार्य हो कॉउंसलर्स
कोचिंग संस्थानों में विशेष कर यू.पी.एस.सी की तैयारी कर रहे एस्पिरेंट्स के लिए कॉउंसलर्स के होने के लीगल प्रावधान होने चाहिए। फिलहाल ऐसा अनिवार्य नहीं है। आई आई आई टी जैसे शिक्षा संस्थानों में मनोवैज्ञानिक सहायता और काउंसलिंग सेल की तरह इन कोचिंग संस्थानों में जो आज के युवाओं की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारियों के गढ़ हैं, वहाँ भी यह अनिवार्य होना चाहिए। इस तरह के सैल की और अन्य टेली-काउंसलिंग /ईमेल /मैसेज -पहुँच और जानकारी हर कोचिंग छात्र को दी जानी चाहिए। इसके अलावा शिक्षकों के रिक्रूटमेंट के समय अकादमिक स्तर के अलावा उनके नज़रिये को भी जांच करना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाए कि उनका रवैय्या क्लासरूम्स में प्रोत्साहन और सकारात्मकता भरा हो। साथ ही मेन्टल हेल्थ ,इमोशनल वेल्बींग के मुद्दों पर खुली बातचीत करने को बढ़ावा देने के लिए सेशंस और प्लेटफॉर्म्स दिए जाए।
छात्र और शिक्षक अनुपात का ध्यान रखा जाए
इसके अलावा अक्सर कई बड़े कोचिंग संस्थानों में शिक्षक और छात्रों का जो रेश्यो होता है वह भी तनाव का एक कारण बनता है। तीन सौ से चार सौ छात्रों की भीड़ में सवाल और डर दोनों साथ में पनपते हैं। अतः इन क्लासरूम्स में छात्र संख्या का ध्यान रखा जाना चाहिए।
इंडियन साइकेट्रिक सोसाइटी के अनुसार भारत में मेन्टल हेल्थ प्रोफेशनल्स की संख्या जनसंख्या की तुलना में बहुत कम है (0.75 प्रति 100000 लोग) और खासकर के छोटे शहरों में इन सेवाओं की ज़रूरतें और भी पूरी नहीं हो पाती हैं। अतः इन पर ध्यान देना ज़रूरी है।
यू.पी.एस.सी में जाने से पहले करें खुद का असेसमेंट
एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि यू.पी.एस.सी की तैयारी शुरू करते वक़्त और समय – समय पर आपको अपनी प्रोफेशनल स्किल सेट का असेसमेंट करना चाहिए। साथ में उस दिशा में खुद को अपस्किल भी अगर कर सकें और एक एग्जिट प्लान भी रख सकें तो बेहतर होगा। तब तैयारी आपकी पूरी ज़िन्दगी नहीं बल्कि जिंदगी के अन्य हिस्सों की तरह एक अनुभव देने वाला हिस्सा हो सकती है। सफल और असफल दोनों ही मामलों में आप सीखेंगे यह तय होता है। पर इस आंकलन के साथ आपके लिए भविष्य के प्रति दोनों ही स्थितियों में आशाएं बनी रहेगी।
इसीलिये युवाओं को अपने भीतर छुपी सारी छोटी-बड़ी योग्यताओं, गुणों और विशेषताओं का मान ज़रूर होना चाहिए। समाज के तौर पर हम सभी को यह समझना ज़रूरी है कि एक यू.पी.एस.सी परीक्षा जिसमें सफलता का प्रतिशत बेहद ही कम होता है; जिसके स्वभाव में ही अनिश्चितता है, उसके आधार पर अपने वजूद को परिभाषित करना बेमानी है। जिंदगी में आपकी यूनिक योग्यताओं के दम पर आपके लिए सफलता और संतुष्टि दोनों के रास्ते काफी हैं। बस आपको दूसरे रास्तों को मौका देना है।