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“बाल कलाकारों को उभरने का मौका देता टनकपुर पुस्तक मेला”

Importance of books

Importance of books

पहाड़ों की सुंदरता से लगे हुए एक छोटे से शहर टनकपुर ने किताबों की सुंदरता को भी पहचानने की कोशिश की। 24 और 25 दिसंबर को टनकपुर में पहली बार पुस्तक मेला आयोजित किया गया। 

पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देना

सामुदायिक पुस्तकालय आयोजित करके पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देने वाले हिमांशु काफलटिया जी ने टनकपुर में पहली बार शुरुआत की। हिमांशु जी एसडीएम के रूप में समाज सेवा तो करते ही हैं और साथ ही पढ़ने की संस्कृति पर भी जोर देते हैं। उनकी अभी तक तीन किताबें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। 

क्या था इस पुस्तक मेले में

अटल उत्कृष्ट राजकीय इंटर कॉलेज में आयोजित इस पुस्तक मेले में 20 से अधिक स्टॉल लगे थे। इसमें किताबों के भण्डार के साथ ही आर्ट, हैंडीक्राफ्ट,धूप-बत्ती, एडवेंचर स्पोर्ट्स के तमाम सामानों के स्टॉल भी लगे थे। अनुपमा जी अपने भाई बसंत के साथ स्टोन आर्ट करती हैं। वे कहती हैं कि “हम अलग-अलग जगह जाते हैं और इस आर्ट को दिखाते हैं और बेचते भी हैं।” उनकी बात में उनके भाई बसंत जोड़ते हुए कहते हैं कि, “हम अपने स्टॉल बिना किसी के सपोर्ट से लगाते हैं पर इस पुस्तक मेले में हमें एसडीएम जी का सपोर्ट मिल गया।”

अपनी कला का प्रदर्शन करते लोग

“आओ! किताबों से दोस्ती करें” जैसा संदेश देने वाले ये पुस्तक मेले ने सिर्फ अनुपमा और बसंत जैसे तजुर्बेदार आर्टिस्ट को ही अपनी कला दिखाने का मंच नहीं दिया बल्कि तनमय जैसे नए आर्टिस्ट को भी उभरने का मौका दिया है। “मैंने ड्राइंग्स और स्केच बनाना लॉकडॉउन के समय से शुरू किया और अब पहली बार अपनी ड्राइंग लोगों के सामने डिस्प्ले कर रहा हूँ।” अपने स्केच के साथ खड़े सातवीं क्लास के तनमय ने बताया। तनमय टनकपुर में ही रहते हैं और इस पुस्तक मेले ने उन्हें अपनी ड्राइंग्स को व्यक्त करने का मौका दिया और अब वे कहते हैं, “मैं और भी मेलों में जाऊंगा।”

बच्चों के लिए किताबें जरूरी

“आजकल 3 महीने के बच्चे को ही फ़ोन पकड़ा दिया जाता है और फिर वह उसका आदी हो जाता है। लेकिन इसके बावजूद बच्चे को ही दोष दिया जाता है। लेकिन बच्चों के खेलने के लिए आज अच्छे पार्क भी उपलब्ध नहीं हैं। मनोरंजन के नाम पर कुछ हैं तो वो है मोबाइल फोन !” लखनऊ से आई गीतिका जी कहतीं हैं। गीतिका ‘जनचेतना’ नाम की एक संस्था से जुड़ी हुई हैं। जनचेतना का मानना है, “बेहतर ज़िन्दगी का रास्ता बेहतर किताबों से होकर जाता है।” वह कहती हैं, “हम समाज को बदलने का काम करते हैं, पुस्तक मेलों में तो जाते ही हैं और रोड-साइट एग्जिबिशन भी लगाते हैं।” इस मेले में भी गीतिका जी और उनके साथियों ने अपना स्टॉल लगाने के लिए एक कोना पकड़ लिया था।

किताबों से रूबरू होते लोग

इस बीच सामने बड़े से स्टेज पर कल्चरल प्रोग्राम हो रहे थे। यहाँ बच्चे अपनी प्रस्तुति देकर लोगों के मनोरंजन का साधन बन रहे थे। बीच में कई बार गेस्ट को बोलने का मौका भी दिया जा रहा था। इन्हीं आवाज़ों के बीच प्रवीण भट्ट जी कहते हैं, “हम इस पुस्तक मेले में समय साक्ष्य प्रकाशन की तरफ से आए हैं।” प्रवीण जी और उनकी टीम 10 साल से पुस्तक प्रकाशन का काम कर रही है। वो उत्तरी भारत में घूम-घूमकर लोगों को किताबों से रूबरू कराते हैं। यह मेला, पुराने प्रकाशनों के लिए भी एक नए स्टेज के रूप में उभरा है।

किताबों के साथ-साथ वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन

“हम अलग-अलग जगह कैंप करते हैं और लोगों को अपनी आर्ट फ्री में सिखाते हैं,” कैलाश चन्द्र भट्ट जी खुद की बनाई लकड़ी की आकृति को रंग करते हुए बताते हैं। उनके सफ़ेद बाल उनके उम्रदार होने और तजुर्बेदार होने का परिमाण देते हैं। वह 30 सेकंड में 4 से 5 वुड आर्ट के नाम बता देते हैं। इसी तरह यह मेला अनेक कारीगरों, प्रकाशनों जैसे आरंभ, समय साक्ष्य, नवारुण, आदि साथ ही एडवेंचर स्पोर्ट और वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन को बढ़ावा देने वाले लोगों, साथ ही किताबों की महक को पसंद करने वाले लोगों के लिए एक बेहतर मंच के रूप में साबित हुआ।

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