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“नींबू मिर्च की माला सड़क पर फेंक देना कौन सी महानगरीय सभ्यता है?”

Superstition in India

Superstition in India

वह लड़की अपनी धुन में चली जा रही थी। उस महानगर की व्यस्त सड़क पर आगे बढ़ी जा रही थी कि अचानक उसके पांव में कांटा चुभने जैसा महसूस हुआ। उसने झुककर देखा तो पाया कि नींबू मिर्च की एक माला जो तार में पिरोई गई थी उसके चप्पल को बेधते हुए पांव में चुभ गई थी। शायद किसी ने सड़क पर फ़ेंक दिया था।

नींबू मिर्च की पड़ी माला का पैरों में चुभना

लड़की ने वह तार निकालकर सड़क के किनारे रखे कूड़ेदान में उस टूटी-फूटी माला को डाल दिया, यह सोचकर कि दूसरे राहगीरों को इससे नुकसान न पहुंचे। उसने महसूस किया कि सड़क किनारे के दुकानदार उसकी तरफ घूरती नजरों से देख रहे हैं मानो उसने उस टूटी-फूटी माला को कूड़ेदान में डालकर कोई गुनाह कर दिया हो। वह वापस आगे बढ़ने को मुड़ी ही थी कि अचानक एक और नींबू मिर्च की माला कहीं से आकर उसके पांव के पास ही सड़क पर गिरी। उसने उस तरफ देखा तो पाया कि सामने वाले दुकानदार का हाथ अभी फेंकने की मुद्रा में ही उठा हुआ था। तय था कि उसी ने फेंका था।

नींबू मिर्च की माला को लेकर अंधविश्वास

लड़की को अपनी तरफ देखता पाकर दुकानदार मुंह बिदकाकर दूसरी तरफ देखने लगा मानो वह कह रहा हो कि ज्यादा शरीफ मत बनो, माला को सड़क पर ही पड़ी रहने दो। दरअसल,उस इलाके के लोगों में यह अंधविश्वास था कि हर शनिवार को दुकानदार लोग अपनी दुकान में नींबू मिर्च की नई माला लटकाते थे और पुरानी माला को सड़क पर फ़ेंक देते थे। ऐसा करने के पीछे उनकी मान्यता थी कि इससे उनके दुकान का ‘शुद्धिकरण’ हो जायेगा तथा सारी ‘अशुद्धियां’ सड़क पर से गुजरने वालों पर पड़ेगी।

महानगर में होते हुए भी अंधविश्वास का साया

इसीलिए वे पुरानी माला को कूड़ेदान में न डालकर सड़क पर फ़ेंक देते थे। लेकिन उनमें इतनी भी समझ नहीं थी कि सड़क से गुजरने वालों को इस से कितनी परेशानी होती है। उस लड़की ने उस दूसरी माला को भी कूड़ेदान में डाला और यह सोचते हुए आगे बढ़ गई,”लोग अपनेआप को महानगरीय सभ्यता से जोड़कर खुश होते हैं। लेकिन हकीकत में उनका आचरण ‘कबीलाई असभ्यता’ से भी गया गुजरा है।”

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