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“लोगों को जंगल में आग लगाने का नुकसान पता है, फिर भी आग लगा रहे हैं”

Forest fire in Uttarakhand

Forest fire in Uttarakhand

समय पूर्व तैयारियों ने हमें चक्रवाती तूफ़ान ‘बिपरजॉय’ से होने वाले नुकसान से तो बचा लिया लेकिन यह अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या हमारा पर्यावरण असंतुलित हो रहा है? भयंकर गर्मी, बेमौसम बारिश, चक्रवात, सूखा, ओलावृष्टि और जंगलों में लगने वाली आग जैसी घटनाएं कुछ इसी तरफ इशारा भी कर रही हैं। कम से कम उत्तराखंड के घने जंगलों से ढके पहाड़ों में लगी आग तो यही संदेश दे रहे हैं कि इस प्रकार की घटनाएं पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या इसके ज़िम्मेदार हम नहीं हैं? क्योंकि उत्तराखंड के जंगलों में लगने वाली ज्यादातर आग मानव निर्मित होती हैं, जो अक्सर लोग अवैध रूप से लगाते हैं।

उत्तराखंड के जंगलों में आग क्यों लग रही

इस सीजन में घास के बेहतर विकास को बढ़ावा देने के लिए लगाई जाती है। इनके अलावा जंगल में आग लगाने के लिए कई बार लोगों की लापरवाही भी जिम्मेदार होती है जैसे धूम्रपान करके जलता हुई सिगरेट अथवा बीड़ी को इधर उधर फेंक देना, जिससे सूखी घास में तेज़ी से आग पकड़ लेती है और देखते ही देखते पूरा जंगल तबाह हो जाता है। इस आग से ग्रामीणों को काफी आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है, क्योंकि जंगल से ही लोग ईंधन, इमारती लकड़ी, भोजन और फल उत्पाद प्राप्त करते हैं।

पोथिंग गाँव की बदहाली

इसका एक उदाहरण उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कपकोट ब्लॉक से 25 किलोमीटर की दूरी पर बसा पोथिंग गांव है। जो पहाड़ों की घाटियों में बसा हुआ है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है। इसे पहाड़ों की हरियाली और शुद्ध हवाओं के लिए ही जाना जाता है। इस गांव की आबादी लगभग 2 हजार से ज्यादा है। लेकिन कुदरती संसाधनों से भरपूर इस गांव को खुद इंसानों की नज़र लग गई है। लगातार जंगलों में आग लगने से लोगों को तो परेशानी हो ही रही है, जानवर भी बीमारियों का शिकार होते जा रहे है। जंगलों से उठने वाला धुआं लोगों के लिए बहुत नुकसानदायक साबित हो रहा है। एक ओर जहां इससे लोगों की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ रहा हैं वहीं धुंए से वातावरण भी खराब होता जा रहा है। इसके कारण धीरे-धीरे यह गांव धुंए का चिमनी बनता जा रहा है।

जंगल में आग कर रहा नुकसान

जंगल में लगने वाली आग से परेशान गांव की एक किशोरी पूजा का कहती हैं, “जंगल में आग लगने से जो धुआं निकलता है उससे पूरा वातावरण अशुध्द होता जा रहा है। हमें सांस लेने में दिक्कत होने लगी है। आग की वजह से पूरे गांव में कोहरे की चादर छाने लगी है। लोगों में नई-नई बीमारियां पैदा हो रही हैं। जंगल के पेड़ पौधों में लगी आग करोना महामारी की तरह फैलती जा रही है।’ गांव की एक अन्य किशोरी नेहा बताती है, “धुएं के कारण पूरा जंगल तबाह हो रहा है। कभी-कभी लगता है जंगल पूरी राख में ही तब्दील न हो जाए।” नेहा के अनुसार धुएं की वजह से न केवल इंसान परेशान है बल्कि जानवरों में भी एक एक कर कई बीमारियों ने डेरा डाल लिया है। उस बीमारी का नाम भी हमें पता नहीं है जो बैलों में फैल रही है। यह बीमारी आग लगने पर गर्मी ज्यादा होने के कारण होती है।

जंगलों में आग से बढ़ती बीमारियाँ

गांव की एक 47 वर्षीय महिला शांति देवी का कहना है कि धुएं की वजह से जानवरों को छोटे-छोटे दाने होते हैं और फिर वह दाने फूट जाते हैं। जिसके बाद उनमें से खून निकलने लगता है। आज कल धान बोने का समय है और जानवर बीमार हो रहे हैं। ऐसे में खेती को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। इसके अलावा खाना पकाने के लिए लकड़ियों की भी कमी हो रही है। पहले जंगलों में महिलाओं का झुंड जाया करता था जहां आसानी से चारा, फूल फल और लकड़ी इत्यादि आसानी से प्राप्त हो जाया करती थी। लेकिन इस साल जंगल में आग लगने से सब राख बन गया है। एक अन्य महिला नेहा देवी कहती हैं, “पिछले वर्ष तक हमें अपने पालतू जानवरों के लिए जंगल से चारा आसानी से मिल जाया करता था। परंतु अब हरी हरी घास की जगह केवल जली हुई काली काली धरती नजर आती है।” वह कहती हैं, “लोगों को सब पता है कि जंगल में आग लगाने से क्या क्या नुकसान हो सकते हैं? मगर अब किसी को अपनी प्रकृति से लगाव ही नहीं रहा है। जिस जंगल के कारण हम जिंदा हैं, आज लोग उसी को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। अगर हमारा वातावरण स्वच्छ और प्रकृति चारो तरफ से साफ रहेगी, तभी हम स्वच्छ और कम बीमारियों की शिकार होंगे।”

जगलों में आग लगाते लोग

वहीं गांव की 65 वर्षीय बुजुर्ग खखौती देवी बताती हैं कि “दरअसल जंगल में आग वही लोग लगाते हैं जिनके घर में बहुत ज्यादा गाय, भैंस और बकरी है। इनकी सोच है कि जंगल जलने के बाद नई घास आएगी जिससे मवेशियों को अधिक मात्रा में चारा उपलब्ध हो सकेगा।” उनका यह भी कहना है कि कई बार आग लगने के पीछे मुख्य कारण महिलाओं का धूम्रपान करना भी होता है। वह चारा या लकड़ी लेने जंगल जाती हैं और फिर वहीं पर धूम्रपान करना शुरू कर देती हैं। फिर वहीं पर जलती हुई माचिस की तीली या बीड़ी फेंक देती हैं। जिससे जंगलों में आग लग जाती है।

जंगल के नियमों का उल्लंघन

इस संबंध में गांव की प्रधान पुष्पा देवी कहती हैं, “पोथिंग, कपकोट ब्लॉक का सबसे बड़ा गांव है। यहां सभी जाति के लोग रहते हैं और यहां के जंगल से हर प्रकार से लाभ उठाते हैं। लेकिन उसी जंगल और उसके नियमों का पालन नहीं करते हैं। इसकी वजह से न केवल जंगल सिकुड़ रहा है बल्कि आग लगने की घटना के कारण लोगों की तबीयत भी खराब हो रही है। आग की वजह से गांव में वायु प्रदूषण भी तेज़ी से फ़ैल रहा है। शहरों की तरह यहां भी प्रदूषण का स्तर बढ़ने लगा है, जो न केवल प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है बल्कि इससे मनुष्यों के जीवन पर भी खतरा मंडराने लगा है। जागरूकता के अभाव में लोग अनजाने में अपने हाथों से जंगल को बर्बाद कर रहे हैं। वह इसके दुष्परिणाम से वाकिफ नहीं हैं।”

दरअसल, कई बार मनुष्य अपने फायदे के लिए प्रकृति से छेड़छाड़ से गुरेज़ नहीं करता है। जिसके परिणाम बहुत भयंकर होते हैं। हाल के दिनों में दुनिया में तेज़ी से बदलते पर्यावरण इसकी बार बार चेतावनी भी दे रहे हैं। विकास के नाम पर पहले मैदानी क्षेत्रों और अब पहाड़ों पर भी बहुत कुछ बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इन सबके बीच पहाड़ के जंगलों में बार बार आग लगने की घटना को यदि समय रहते नहीं रोका गया तो किसी अनहोनी के लिए हमें तैयार हो जाना चाहिए। अफ़सोस की बात यह है कि जागरूकता के अभाव में हम खुद इसके ज़िम्मेदार बनते जा रहे हैं।

यह आलेख पोथिंग, उत्तराखंड से दिशा सखी और पूर्व संजॉय घोष मीडिया अवार्डी 2022 की विजेता डॉली गड़िया ने चरखा फीचर के लिए लिखा है

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