भारत में पेरेंट्स लड़कियों की शादी की इतनी जल्दी रहती है कि 18 साल होते ही वर(लड़का) खोजना शुरू कर देते हैं। वहीं दूसरी तरफ लड़के के घर वालों को एक घरेलू काम कर पाने वाली बहु के रूप में नौकर चाहिए होता है, जो उनका कार्य आसानी से कर सके। इसको आप उस वक्त समझ सकते हैं, जब लड़का पक्ष लड़की देखते वक्त लड़की पक्ष से पूछता है कि लड़की घर का काम, खाना बनाना, कपड़े/बर्तन धोना आदि कर लेती है कि नहीं।
घरवालों के दबाव से बर्बाद होता कैरियर
कुछ लड़कियां आगे पढ़ना चाहती हैं पर घरवालों पर सामाजिक दबाव, आर्थिक स्थिति और स्कूलों की अनुपलब्धता की वजह से नहीं पढ़ पाती हैं। ज्यादातर घरवाले यही कहते हैं कि अपने ससुराल जाकर पढ़ना। पर ससुराल जाकर वह घर के काम और ज़िम्मेदारियों के बोझ तले दब जाती हैं, जिससे उबरना उनके लिए काफी कठिन हो जाता है। कुछ लड़कियां आगे बढ़ने की कोशिश कर रही हैं पर उनमें से नाम मात्र लड़कियों को ही सफलता मिल पाती है।
लड़कों और लड़कियों के शिक्षा में अंतर करता समाज
ग्रामीण एरिया के संपन्न परिवार अपने घर की लड़कियों को बाहर पढ़ने के के लिए भेजने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। सामाजिक पिछड़ापन और घर-खानदान की इज्ज़त का सवाल उन्हें ऐसा करने से रोकता है। पर सवाल उन पेरेंट्स से है जो अपने घरों की इज्जत सिर्फ लड़कियों के कंधों पर डाल रखे हैं। पढ़ने के लिए लड़कियों को शहर भेजने के लिए पेरेंट्स अक्सर सोच में पड़ जाते हैं कि वहां अकेली कैसे रहेगी? लेकिन ऐसा सोच लड़कों के बारे में कभी नहीं आता।
बेड़ियां तोड़कर आगे बढ़ रही हैं लड़कियां
भारत में आज भी ज्यादातर लड़कियों को बच्चे और घर की जिम्मेदारी के कारण शादी के बाद नौकरी छोड़नी पड़ जाती है। बच्चे संभालने का कार्य आज भी औरतें ही कर रही हैं। बच्चें संभालने में पुरुषों की भागीदारी लगभग नगण्य है। आज समाज की पढ़ी-लिखी कुछ लड़कियां इस पुरानी सामाजिक सोच के बैरियर को तोड़ने की कोशिश कर रही हैं। इसकी वजह से कुछ सफल भी हो रही हैं और कुछ को शादी के बाद भी सफलता मिल रही है। पर ऐसी लड़कियों की संख्या बहुत कम है।
पुरुषों को अपनी सोच को बदलने की है जरूरत
भारत सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि महिला श्रम बल भागीदारी 2020-21 में 25.1% है। डॉक्टर बी आर आम्बेडकर ने कहा था कि मैं किसी देश की तरक्की उस देश की लड़कियों की तरक्की से मापता हूं। पर उनका कथन सार्थक तभी होगा जब भारतीय पुरुषों के विचारों में बदलाव आएगा। भारत की तरक्की देश की आधी आबादी को बराबर लाने से होगी और यह तभी संभव है जब हम महिलाओं को समानता का दर्जा दे हर क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करें। इसके लिए हमारे पुरुष प्रधान समाज के पुरुषों को आगे आना होगा। खासकर घरेलू कामकाज में भी भागीदारी दिखानी पड़ेगी। पुरुषों को अपनी सोच में परिवर्तन लाकर ही ऐसा संभव है।