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“पत्नी को पति का गुलाम बताने वाली गीता प्रेस सम्मानित कैसे हो सकती है?”

Stop Gender biases against women

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मैं गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित और हनुमान प्रसाद पोद्दार द्वारा लिखित एक पुस्तक के कंटेंट पर बात करूँगा। इस पुस्तिका का शीर्षक है ‘स्त्री – धर्म प्रश्नोत्तरी’। 46 पेज की इस किताब में बताया गया है कि स्त्रियों को क्या करना चाहिए। यह किताब दो महिलाओं के बीच बातचीत के रूप में प्रस्तुत की गई है। एक महिला प्रश्न पूछती है और दूसरी उसका उत्तर देती है। इसके लिए लेखक ने दो पात्रों की रचना की है। एक पात्र का नाम है सरला और दूसरी का नाम है सावित्री। सरला सरल है, भोली है अनुभवहीन है। सावित्री अनुभवी है।

क्या महिलाओं का धर्म पति को खुश रखना है

इस किताब की पात्र सावित्री का नाम सावित्री रखकर उसकी बातों को लेजिटिमेसी दी गयी है। सरला पहला सवाल पूछती है कि स्त्रियों का मुख्य धर्म क्या है? सावित्री बताती है कि स्त्रियों के लिए मुख्य धर्म केवल पतिपरायण होना ही है। बाकी के सारे धर्म तो गौण हैं। सावित्री के अनुसार स्त्रियों का हर व्यवहार केवल पति को खुश करने के लिए होना चाहिए। अगर स्त्री के सारे काम पति को खुश करने के लिए ही होने चाहिए तो फिर ऐसे में वह देश क्या बनने जा रहा है जिसकी करीब आधी आबादी को सामाजिक, राष्ट्रीय समस्याओं को दूर करने के लिए सोचने-समझने के काम से दूर रखा जा रहा है। 50% आबादी को मुद्दे सेंट्रिक नहीं बल्कि व्यक्ति सेंट्रिक बनाया जा रहा है।

क्या महिलाओं का काम केवल पति की सेवा है

इस पुस्तिका के पेज नंबर एक पर सरला सवाल करती है कि आजकल तो लोग कहते हैं कि स्त्री और पुरुष के समान अधिकार हैं। वे कहते हैं कि अकेली स्त्री ही पति की सेवा क्यों करें। पति अपनी स्त्री की सेवा क्यों ना करें? इसके उत्तर में सावित्री कहती है कि जो लोग समानता की बात करते हैं, वे आर्य महिलाओं के पतिव्रता धर्म का महत्व नहीं जानते। यानी आर्य जाति का महत्व समानता के विचार को मानने और उसको आचरण में उतारने में है।

क्या महिलाएं मर्दों का रिहैबिलिटेशन सेंटर है

सरला का अगला सवाल है कि वैसे पति के साथ क्या करें जो दुराचारी है। सावित्री समझाती है कि दूसरों की देखा-देखी स्त्री भी अपना धर्म छोड़ दे यह अच्छी और न्यायसंगत दलील नहीं है। सावित्री कहती है कि यह किसी साध्वी स्त्री का काम ही नहीं है कि वह अपने पति के आचरण पर ध्यान दे। इसी सवाल के उत्तर में सावित्री नाम की पात्र से कहलवाया गया है कि अगर स्त्री सचमुच में पतिपरायण है तो वह बुरे कामों में पड़े अपने पति को सही रास्ते पर ला सकती है। यानी स्त्री रिहैबिलिटेशन सेंटर यानि सुधार-गृह है। तरह-तरह के बुरे मर्दों का सुधार केंद्र।

पति को सुधारने की जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाती किताब

सरकार अलग-अलग अपराधों में लगे अपराधियों को समझने के लिए उन अपराधों से जुड़े एक्सपर्ट्स की सेवाएँ लेती है। लेकिन गीता प्रेस मानकर चल रही है कि महिलाओं को हर तरह के अपराधी को सुधारने की कला आनी चाहिए। अगर ‘पति’ नाम सुधर न पाया, तो दोष अपराधी के सिर नहीं, निरपराध पत्नी के सिर पर मढ़ा जाएगा।

महिलाओं को न मिले शिक्षा या आजादी

इस पुस्तिका के पेज 13 पर सरला, सावित्री से सवाल पूछती है कि स्त्रियों की शिक्षा कैसी होनी चाहिए? सावित्री उत्तर देती है कि स्त्रियों की शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि उनमें धार्मिक ग्रंथों को समझने की समझ पैदा हो जाए, वे घर के कामों में निपुण हो जाएँ और सब प्रकार से पति की पिछलग्गू हो सकें। पेज 15 पर सरला सवाल करती है कि क्या कन्या को माता-पिता के अधीन रहना आवश्यक है? सावित्री उत्तर देती है कि लड़की का माता-पिता के अधीन रहना आवश्यक ही नहीं, धर्म है।

इस उत्तर में सावित्री नाम की पात्र से कहलवाया गया है कि किसी भी अवस्था में स्त्री जाति को स्वतंत्र नहीं होना चाहिए। अपनी बात में वजन लाने के लिए सावित्री मनु को कोट करती है। इसीलिए कहा जाता है कि महिलाएँ अंतिम उपनिवेश हैं। साम्राज्यवाद से एक-एक करके तमाम उपनिवेश स्वतंत्र हो गए, लेकिन पुरुषों के साम्राज्यवाद से स्त्री नामक उपनिवेश की मुक्ति होनी अभी बाकी है।

धार्मिक स्थलों पर जाने के लिए महिलाएं ले पति का अनुमति

पुस्तिका के पेज 16 पर सरला पूछती है कि क्या स्त्रियों को तीर्थों में, मंदिरों में और मेलों में जाना चाहिए? सावित्री उत्तर देती है कि मेलों में तो बिल्कुल नहीं जाना चाहिए। हाँ, अगर पति No Objection Certificate दे दे, तो वो मंदिर जा सकती है। सावित्री इस No Objection Certificate का जस्टिफिकेशन यह कहकर देती है कि स्त्री के लिए पति से बढ़कर कोई दूसरा देवता नहीं है। कोई दूसरा देवता है ही नहीं, पति के चरणों में ही स्त्री का तीर्थ है। इसलिए उसे मंदिर जाने की क्या जरूरत?

चोर, उचक्के, बलात्कारी, कातिल, लुटेरे, घूसखोर आदि अपराधों में लिप्त पुरुष देवता बना दिये जा रहे हैं। इस प्रकार देवताओं की नगरी में कैसा-कैसा अपराधी रह सकता है। है ना कमाल का स्त्री धर्म। जिस देश में हर तरह के अपराधी को देवता मानने की सीख दी जा रही हो, उस देश को अपराध, अन्याय से मुक्त कर न्यायप्रिय बनाना असंभव सा लग रहा है।

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