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हिन्दी कविता: ना मस्जिद बुरी ,ना मंदिर बुरा

A Hindu and a Muslim boy

ना मस्जिद बुरी, ना मंदिर बुरा।

दिखावे में लिपटा आडंबर बुरा

गैरों से गिला क्या करना भला,

अपनों के हाथों में खंजर बुरा।

शीशे के मकान है, शीशे के लोग,

हाथ में पकड़ा वो पत्थर बुरा

न डुबोए हमें, न उभारे कभी

आंखों में भीगा वो समंदर बुरा

बच्चों के नन्हें हाथों में रफल,

भयानक सा है वो मंजर बुरा।

सुनसान सा घर और खेत मेरा,

आंखों में नमी दिल बंजर बुरा।

सब जीता किया करते हैं यहां,

इतिहास में क्यों सिकंदर बुरा।

है पुख्ता रहे मिट्टी की पकड़,

फिसलन भरा संगमरमर बुरा।

सकुनी के पासे, वो गहरे जख्म,

अपनों का रचा वो षड्यंत्र बुरा।

हैं सपनों के खंडहर टूट गए,

यादों का उछला बवंडर बुरा!

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