बांग्लादेश की वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार का कार्यकाल 29 जनवरी 2024 को पूरा हो रहा है। माना जा रहा है कि इस साल के अंत तक आम चुनाव संभव हैं। चुनाव से ठीक पहले इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को लेकर विपक्षी दलों एवं सरकार के बीच सहमति बनती दिखी। शेख हसीना सरकार ने इस साल के आम चुनाव में ईवीएम का इस्तेमाल नहीं करने पर अपनी सहमति जता दी है।
बैलेट पेपर के जरिए होगा आम चुनाव
एक रिपोर्ट के मुताबिक, “शेख हसीना सरकार ने विपक्ष की ईवीएम हटाने और बैलेट पेपर के जरिए देश में आम चुनाव करवाने की मांग को मान लिया है।” अब बांग्लादेश के सभी 300 संसदीय सीटों पर चुनाव के लिए बैलेट पेपर और पारदर्शी मत पेटियों का इस्तेमाल किया जाएगा। बांग्लादेश इलेक्शन कमीशन के सचिव जहांगीर आलम ने चुनाव आयुक्तों की बैठक के बाद EVM को बंद करने के फैसले की घोषणा की थी। उन्होंने कहा कि सरकार के पास नई मशीनें खरीदने और पुरानी मशीनों के नवीनीकरण के लिए धन की कमी भी इस फैसले के पीछे का एक प्रमुख कारण है। बांग्लादेश की मुख्य विपक्षी पार्टी बीएनपी और अन्य प्रमुख राजनीतिक दलों ने चुनाव में ईवीएम मशीनों के इस्तेमाल का कड़ा विरोध किया था।
लोकतांत्रिक छवि को मजबूत करने की बड़ी कोशिश
पिछले महीने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा था, “सरकार ने चुनाव में डिजिटल मशीन का इस्तेमाल करना इसलिए चुना था, क्योंकि सरकार को लगा था कि देश की जनता आधुनिक तरीके से चुनाव में भाग लेना चाहेगी। लेकिन, मशीनों की तटस्थता पर आपत्ति जताई गई है। लिहाजा हम यह चुनाव आयोग पर छोड़ रहे हैं, कि वो क्या फैसला लेंगे। हम चुनाव आयोग के फैसले को स्वीकार करेंगे।” वहीं बांग्लादेश के राजनीतिक विश्लेषकों ने राजधानी ढाका में कहा कि पुराने पेपर बैलट को वापस लाने से शेख हसीना की सरकार की लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने की छवि को निश्चित रूप से बढ़ावा मिलेगा।
पहली बार कब इस्तेमाल हुआ था ईवीएम
बांग्लादेश में साल 2018 के आम चुनाव के लिए पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल हुआ था। लेकिन सीमित संख्या में ही ईवीएम का प्रयोग हुआ। हालाँकि देश में स्थानीय सरकार के चुनावों में आठ साल पहले ही ईवीएम की शुरूआत हुई थी। आपको बता दें कि ईवीएम को लेकर भारत में भी पिछले कुछ सालों से विवाद होता रहा है। भारत की कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों ने ईवीएम के हैकिंग और छेड़छाड़ के आरोप लगा चुकी है। लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार ने विपक्ष आरोपों को हर बार गलत बताया है। भारत के केंद्रीय चुनाव आयोग ने भी विपक्षी पार्टियों को ईवीएम हैक करने की चुनौती दी थी और उन्हें एक डेमो कार्यक्रम में भाग लेने के लिए बुलाया था, लेकिन उसमें विपक्षी पार्टियों ने हिस्सा ही नहीं लिया था।
भारत में ईवीएम पर विवाद
साल 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा में समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने बीजेपी का मुद्दा उठाते हुए यूपी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा था कि बीजेपी को जिताने के लिए प्रशासन वोटों की चोरी करने में जुटा है। ये लोकतंत्र का आखिरी चुनाव है इसके बाद लोगों को क्रांति करनी पड़ेगी। अखिलेश यादव के आरोपों पर पलटवार करते हुए भाजपा ने कहा था कि अपनी हार को देख अखिलेश यादव बौखला गए हैं जिस कारण वो ईवीएम पर तरह-तरह की टिप्पणी कर रहे हैं। बीजेपी ने भले ही अखिलेश यादव के आरोपों का मजाक बनाया हो लेकिन ईवीएम पर सबसे पहले सवाल बीजेपी ने ही उठाया था। साल 2009 में जब बीजेपी के गठबंधन को सत्ता नहीं मिली, तो पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम पर सवाल उठाए थे। बीजेपी ने उस दौरान ईवीएम के साथ की जानी वाली धोखाधड़ी को लेकर देशभर में अभियान भी चलाया था। आपको बता दें, बीजेपी, कांग्रेस से लेकर आरजेडी, बीएसपी, टीएमसी और समाजवादी पार्टी लगभग सबने ईवीएम पर सवाल उठाए हैं। लेकिन फिर भारत में ईवीएम के मदद से ही चुनाव होते हैं।
वहीं, ईवीएम पर लगातार उठे सवालों को लेकर चुनाव आयोग ने कहा कि अन्य देशों मे इस्तेमाल होने वाली ईवीएम मशीन से अपने देश की ईवीएम बिल्कुल अलग है। उन्होंने कहा कि यहां ईवीएम को हैक नहीं किया जा सकता। इस समय भारत की लगभग सभी विपक्षी दलों में ईवीएम को हटाकर बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की है जिसे सरकार और चुनाव आयोग द्वारा खारिज़ किया जा चुका है। अब देखना यह होगा कि क्या भारत में भी ईवीएम हटाने और बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग तेज़ होगी या नहीं।