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हिन्दी कविता: जय भीम की ललकार!

जातिगत कंदराओं के मध्य उजालों की राह देखते,

ऐतिहासिक शोषण के खिलाफ खड़े रहे,

समुचित वर्ग को मनुस्मृतियों के मकड़जाल में फंसा कर,

राज करनेवालों के खिलाफ जाकर,

बाबा साहेब ने अधिकार दिया,

जागृत्ति लाकर पूरे समाज को,

अपने अधिकारों के प्रति लड़कर जागृत किया ।

फिर भी समाज में गिद्ध तो रहेंगे ही,

उन गिद्धों के खिलाफ एकजुटता की यह लड़ाई है,

ताकि गिद्ध मौके की तलाश में झपट न पड़े,

सावधानी जरूरी है क्योंकि गिद्ध उड़ते हुए,

नज़र रखे हुए हैं कि जहाँ इनके आंदोलन में,

थोड़ी भी ढिलाई हुई और थकान दिखी,

तभी झपट्टा माड़कर आंदोलन को तोड़ देना है,

अगर आन्दोलन न तोड़ सके, तो इनके मध्य ही पिट्ठुओं को लाना है,

वे पिट्ठुओं पर दांव लगाएंगे और आन्दोलन को इनके माध्यम से, पंगु बनाएंगे,

अपने लोगों के बीच लालच लाकर और क्षणिक सुख देकर,

पिट्ठुओं की जमात बढ़ाएंगे,

फ़िर भी हमें जो ‘फुले-अम्बेडकर’ के साथ हैं,

जिन्होंने तपकर आंदोलन के उपवन को सींचा है,

जो रविदास के ‘बेगमपुरा’ की तलाश में है,

डटे रहना है, शिक्षित, संघर्षशील और एक रहना है,

प्रलोभनों के ख़िलाफ़ वैचारिक लड़ाई लड़ना है,

तभी जाति का समूलनाश हो पाएगा ।

संविधान की भावना का सम्मान हो पायेगा ।

तब आर्टिकल-15 केवल फिल्मों में नहीं रहेगी,

वो चीखेंगी ताकि उसकी आवाज़ बहरों को सुनाई दे,

बाबा साहेब ने जिसे बनाया उस देश को दिखाई दे।

जय भीम की ललकार शहर-देहात व चौक-चौराहों में सुनाई दे।

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