Site icon Youth Ki Awaaz

हिन्दी कविता: तैरती पतंग

kite flying in the sky

स्वछंद सी उड़ती पतंग

रंग बिरंगी सी

नील गगन को

रंगों से भरती

लेकिन क्या

इसका कोई अपना वजूद है

क्या स्वछंद सी उड़ती पतंग

खुद आज़ाद है?

क्या इसकी दिशा

हवा तय नहीं करती?

क्या इसकी ऊंचाई

मांझे के भरोसे नहीं है?

क्या इसकी फुर्ती

चालक के हाथों नहीं है?

तो फिर ये आज़ाद कैसे

आज़ादी तो उसे

मांझे से अलग होकर मिलती है

जब वह खुद

अपने हिसाब से तैरती है

अपनी दिशा को

ख़ुद निर्धारित करते हुए

स्वछंद आसमान में

तैरती विचरती है।

हां पता है मुझे

तैर कर वो

जमीन पर आ गिरती है

लेकिन फिर भी

उसमें पतंग की रजामंदी है

उसका अपना फ़ैसला है

क्यों कि तब आज़ाद है वो।

Exit mobile version