हाँ! सही सुना आपने मुझे सब पता है,
मैं जा रही हूँ दूर तुझसे और तू मुझसे कहीं दूर
उस जहान से परे, जहां मिलना नहीं मंजूर
पर हम मिलेंगे ज़रूर, कब कैसे कहाँ ये सब पता है मुझे
इस जन्म न सही अगले जन्म में ज़रूर,
बसंत की पहली बहार बन कर
तुम्हारे खिड़की से झाकूँगी,
सूरज की छटाओं में नारंगी रंग से पूरे घर पर छा जाऊँगी,
मुझे ये पता है!
जब भी दफ्तर जाओगे
तो उस पुराने बस स्टॉप पर मुझे ही पाओगे
गाड़ी के शीशे में, या शायद कभी तुम्हारे कलम के स्याही में मिल जाऊँ
उस किताबों की पंक्तियों में जिसे तुम बार-बार पढ़ते हो,
और जब भी कोई गाना गुनगुनाओगे,
तो शायद उस पंक्ति में सिर्फ मुझे ही पाओगे,
या तुम्हारे घर की किवाड़ पर लटकी एक कपड़े पर,
शाम को थक कर जब वो चाय की पहली चुस्की लोगे
तब उस चाय में मिल जाऊँ
और मैं उस चाय के साथ तुम्हारे होंठों से छू कर तुम्हारे अंदर समा जाऊँगी
और कुछ देर वहीं मुझे तुम महसूस करोगे
और फिर मैं कहीं नहीं जाऊँगी
मैं तुम्हें मिलूँगी इस जन्म में न सही अगले जन्म जरूर!