इसमें कोई दो राय नहीं है कि इन्टरनेट आज के समय में हमारी मूलभूत जरुरत बन चुका है। खासकर स्टूडेंट्स के लिए, या यूँ कहें उन सभी लोगों के लिए जो कुछ नया सीखना चाहते हैं। शिक्षा की बात करें तो कोरोना महामारी ने हमें इस बात का एहसास बहुत अच्छी तरह से करा दिया था कि हमें किसी भी विपरीत परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए। समय मुश्किल क्यों न हों, अगर हमारी मूलभूत जरूरतें पूरी हो जाये तो किसी भी मुश्किल पर पार पा लिया जा सकता है। कोरोना काल में लगभग 2 साल पूरी दुनिया थम सी गई थी, बच्चों का भविष्य मानों धुंधला लगने लगा था। उस वक़्त इंटरनेट ने बच्चों को शिक्षा से जोड़े रखा, कोरोना महामारी के दौरान हमें इंटरनेट की असली ताकत का एहसास हुआ था। दुनिया भर के बच्चे शिक्षा के लिए पूरी तरह से इन्टरनेट पर निर्भर थे। शिक्षा हो, नौकरी हो या कोई भी बिज़नस जब पूरी दुनिया थम गई थी तो इंटरनेट की बदौलत सब चलता रहा।
भारत में कितना मिलता है छात्रों को इंटरनेट
भारत में इन्टरनेट की बात करें तो हाल ही में अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन द्वारा किये गए सर्वेक्षण से यह बात निकलकर सामने आई है कि लगभग 60% स्कूल जाने वाले बच्चों को आज भी भारत में ऑनलाइन पढ़ाई का अवसर नहीं मिल पाता। यानि देश के ज्यदातर बच्चे ऑनलाइन शिक्षा से इन्टरनेट तक पहुँच न होने के करना वंचित हैं। एक और सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि केवल 47% परिवारों के पास इंटरनेट तक पहुंच है, जिनके पास कंप्यूटिंग डिवाइस (स्मार्टफोन सहित) है। केवल 27% भारतीय घरों में इंटरनेट की पहुंच है। जाहिर सी बात है अभी ऑनलाइन लर्निंग को देश के घर-घर पहुंचाने के लिए बहुत लम्बा रास्ता तय करना होगा।
ऑनलाइन शिक्षा की चुनौतियाँ
भारत जैसे देश में जहाँ की अधिकतर आबादी गाँव में बसती है, वहां कोरोना काल में ऑनलाइन शिक्षा में कई चुनौतियां भी थी। हालांकि दूर-दराज गाँव में भी शिक्षा विभाग ऑनलाइन पढ़ाई करवा रहा था, लेकिन उनकी अपनी अलग चुनौतियाँ और मुश्किलें थीं। हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के एक सरकारी स्कूल में कार्यरत शिक्षिका शैली चौहान का कहना है, “एक रिमोट सरकारी स्कूल में बच्चों के साथ लॉकडाउन के समय ऑनलाइन पढ़ाई का अनुभव काफी अलग था। शिक्षा विभाग और हर अध्यापक ने अपनी तरफ से बच्चों को पढ़ाने की भरपूर कोशिश की। हालांकि यह सभी के लिए नया और चुनौतीपूर्ण काम था लेकिन नतीजा अच्छा ही रहा।” यह पहली बार था जब बच्चे इस तरह टीचर्स से ऑनलाइन पढ़ रहे थे, बच्चों और टीचर्स ले लिए नया अनुभव था।
ऑनलाइन शिक्षा तक सबकी नहीं है पहुँच
ऑनलाइन शिक्षा तक अभी हर बच्चे की पहुँच नहीं। हमारा देश, खासकर गाँव और कुछ कस्बे अभी भी पूरी तरह से ऑनलाइन शिक्षा के लिए तैयार नहीं हैं। जबकि ऑनलाइन शिक्षा और इन्टरनेट इस समय की जरूरत है। बच्चों को कोरोना के समय में ऑनलाइन पढ़ाई करने में सबसे बड़ी समस्या दूर -दराज के गावों में नेटवर्क की थी। दूसरा हर घर में एंड्राइड फ़ोन नहीं था, तीसरा बच्चों के अभिभावक अभी भी ऑनलाइन शिक्षा के महत्त्व को पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं, जिसमे उनका कोई दोष नहीं, क्योंकि इंटरनेट तक पहुँच न होने के कारण और जानकारी के अभाव के कारण ज्यादातर लोग अभी भी इन्टरनेट को मनोरंजन की तरह देखते हैं। इसकी वजह से कई बार बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाना हल्के में लिया गया, जिसका असर दो साल बाद स्कूल खुलने के बाद हम बच्चों पर देख रहे हैं। वहीं अगर इन्टरनेट की स्पीड और सबके पास एंड्राइड फ़ोन होते तो कितना अच्छा होता। शिक्षकों का कितना समय तो बच्चों के माँ- बाप को ऑनलाइन शिक्षा के महत्व के बारे में बताने में निकल गया। लेकिन ऑनलाइन क्लासेस की सुविधा न होती, हम बच्चों से बराबर बातचीत न करते तो शायद आज स्थिति और ख़राब होती। इन्टरनेट ने हमें स्टूडेंट्स से जोड़े रखा। बिना इन्टरनेट के बच्चों को भला हम कोरोना जैसी विश्व व्यापक महामारी में कैसे पढ़ा पाते।
हाशिये पर रह रहे लोगों तक कितनी इंटरनेट
कोरोना काल में स्कूल जाने वाले बच्चों के अलावा ऐसे भी बच्चे थे जो कॉम्पीटीटीव पपेर्स की तैयारी कर रहे थे। वो भी कुछ नया सीखने के लिए इन्टरनेट पर निर्भर थे। जहाँ दुनिया के विकसित देशों में बचे एयर कंडिशन्ड कमरों में हाई स्पीड इन्टरनेट का आनंद ले रहे थे वहीं हिमाचल में एक किसान अपने बच्चे के लिए एंड्राइड मोबाइल खरीदने के लिए गाय बेच रहा था। (शायद आपने कोरोना के टाइम पर न्यूज़ देखी होगी)। यह स्थिति कई जगह थी। हर व्यक्ति के पास मोबाइल नहीं था जिसमें स्टूडेंट्स ऑनलाइन क्लासेज ले पायें। पहले तो मोबाईल का होना बहुत बड़ी बात थी फिर उसमें इन्टरनेट की कनेक्टिविटी एक और समस्या थी। लेकिन टीचर्स और बच्चों ने पढ़ने के अलग-अलग तरीके ढूंढ निकाले थे।किसी ने नहीं सोचा था कि शिक्षा प्रणाली पूरी तरह इन्टरनेट यानि ऑनलाइन शिक्षा पर निर्भर हो जाएगी। इसलिए यह कहना अतिशोक्ति नहीं होगा कि आज के इस समय में रोटी, कपड़ा, मकान के साथ-साथ इन्टरनेट भी एक जरूरत बन चुका है। देश और दुनिया में स्कूल के अलावा भी स्टूडेंट्स कुछ नया सीखने, कोर्स करने के लिए काफी हद तक इन्टरनेट पर निर्भर हैं।
इंटरनेट ने दुनिया को किया छोटा
इन्टरनेट ने दुनिया को बिल्कुल छोटा कर दिया है। जो जानकारी पहले स्टूडेंट्स विदेशों में घूमकर ही ले पाते थे आज वो पूरी जानकारी इन्टरनेट की बदौलत आसानी से घर बैठे उपलब्ध हो सकती है। कहीं मुफ्त में तो कहीं पैसे देकर आप अनेकों ऑनलाइन कोर्सेस कर सकते हैं। इसे आज के समय में टेक्नोलॉजी का वरदान नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे? गाँव हो या चाहे शहर, हर बच्चा आगे बढ़ना चाहता है कुछ नया और अलग सीखना चाहता है, इन्टरनेट उनको आज पूरा मौका दे रहा है।
भारत में कितनी एडटेक कंपनियां पिछले 2-3 सालों में यूनिकॉर्न बन गई। लाखों करोड़ों बच्चों ने अपने भविष्य को सँवारने के लिए ऑनलाइन शिक्षा का सहारा लिया, और यूटूब चनेल्स अचानक करोड़ों का टर्नओवर देने लगे। यह उदहारण इस बात को दर्शाता है कि इन्टरनेट आज के समय में हमारी जरूरत है और हमारी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा। लोग उन दो सालों के बाद अब ऑनलाइन शिक्षा पर भरोसा करने लगे हैं और इसके महत्त्व को समझने लगे हैं।
18 महीनों पहले उत्तर प्रदेश से इंजीनियर बनने का सपने लेकर कोटा आये अर्जुन कहते हैं, “मैंने 10वीं क्लास तक कोई कोचिंग नहीं ली थी। लेकिन किसी भी जानकारी के लिए मैं हमेशा इंटरनेट का साहारा लेता था जो मेरे लिए काफी नार्मल था। कोरोना के टाइम पर मैं जेईई एग्जाम की तैयारी करना चाहता था लेकिन शुरू-शुरू में कोई ऑनलाइन अच्छा कोचिंग सिस्टम नहीं था। इसलिए ऑफलाइन क्लास शुरू होने पर मैंने ऑफलाइन के साथ- साथ ऑनलाइन के लिए भी ऑप्ट किया। उससे काफी हेल्प मिली। जैसे कि जिस दिन में कोचिंग नहीं जा पाता था तो ऑनलाइन क्लास कर सकता था। जो बच्चे किसी कारणवश ऑफलाइन कोचिंग नहीं ले सकते, जैसे कहीं दूसरे शहर नहीं जा सकते तो ऑनलाइन कोचिंग उनके लिए बेस्ट है। ज्यादातर स्टूडेंट्स ऑनलाइन कोर्सेज अफोर्ड भी कर सकते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि दो सालों में काफी सारी एडटेक कंपनियां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ऑनलाइन कोर्सेज के माध्यम से प्रदान कर रही है।”
कैसे पहुंचे सभी तक इंटरनेट
जाहिर सी बात है आज अर्जुन कोटा में रहकर हाई स्पीड इन्टरनेट में अपनी क्लासेज अटेंड करता है वहीं अगर किसी बच्चे को उत्तर प्रदेश के दूर दराज के गाँव में भी यही सुविधा मिल पाए वो भी कम पैसों में तो हर उस बच्चे का सपना पूरा होगा जो जीवन में बेहतर बनना चाहता है, कुछ करना चाहता है। स्टूडेंट्स को यूटूब के माध्यम से, शिक्षा और जानकारी से संबंधी एप्स के माध्यम से कितनी जानकारी मुफ्त में मिल रही है। लाखों बच्चे इसका फायदा भी उठा रहे हैं। बस इन्टरनेट के हर घर, हर बच्चे के पास पहुँचने की देर है। तो सवाल यह है कि देश के हर व्यक्ति के पास इन्टरनेट की सुविधा हो उसके लिए क्या किया जा सकता है। या यूँ कहे कि हम इसे कैसे हक़ीकत बना सकते हैं। बहुत से ऐसे एरियाज़ हैं जहाँ से शुरुआत की जा सकती है।
सबसे पहले बिजली के साथ-साथ हर घर में दूरसंचार सेवायों का पहुंचना बेहद जरूरी है। भारत में पांच प्रमुख ऑपरेटर्स हैं : भारतीय एयरटेल, बीएसएनएल, एमटीएनएल, रिलाइंस जिओ और वोडाफोन इंडिया। सरकार इन सभी के साथ मिलकर भारत के घर-घर और गाँव-गाँव तक पहुँचने के लिए कोई योजना बना सकती है जिससे सभी दूरसंचार कंपनियों को भी फायदा मिले और काम भी हो जाये।अंत में देश को भी फायदा मिले। इसमें सरकार की भागीदारी बेहद जरूरी है क्योंकि दूर-दराज के गाँवों तक बिना सरकार की मदद और सहयोग के पहुंचना मुश्किल होगा।
हर गांव में इंटरनेट के जरूरी है मजबूत एक्शन प्लान
गाँव में इंटेनेट के महत्त्व पर जागरूकता के साथ साथ मोबाईल कंपनियों के साथ भी सरकार को मिलकर कोई एक्शंन प्लान बनाने की जरूरत है। बिना रेवेनीऊ मॉडल के और मुनाफे के कोई भी कंपनी इतना रिस्क नहीं लेती कि शहरों जैसा रिटर्न न मिलने पर भी कई सालों तक नुक्सान झेलती रहे। हर घर इन्टरनेट को एक मुहीम बनाये बिना ये खाई पाटना नामुमकिन है इस सपने और मुहीम को हकीकत बनाने के लिए सरकार को प्राइवेट कंपनियों और गैर सरकारी संस्थाओं की मदद लेनी ही होगी। सबसे महत्तवपूर्ण है हर गाँव, कसबे शहर में ये जागरूकता लाना कि देश कि तरक्की में इंटरनेट बेहद अहम भूमिका निभाएगा। हर घर इंटरनेट की बात जब तक हर घर तक नहीं पहुंचेगी, जब तक सरकार इस ओर पूरा ध्यान नहीं देगी, देश की अलग-अलग कम्पनीज और संस्थाएं जो इसमें अहम् भूमिका निभा सकती है उनकी मदद नहीं लेगी तब तक यह केवल एक सपना मात्र होगा।
इंटरनेट सेवा का हर भारतीय उपयोग कर सकें इसके लिए हर व्यक्ति की इंटरनेट तक पंहुच होना जरूरी है। हमें शुरूआती दिनों में इसे सस्ता भी बनाना होगा ताकि लोग इसे खरीदने का सामर्थ्य रख सकें। हमारे पास रिलाइंस जिओ कंपनी का एक सफल मोडल है। उसमें से बहुत सी चीजें सीखी जा सकती है। रिलाइंस ने जिओ की शुरुआत ही इस इस तरह से की गई थी कि हर वो व्यक्ति जिसकी जिओ तक पहुँच हो, उसे इंटरनेट एक जरूरत लगने लगे। पहले लोगों तक रिलाइंस जियो पहुँचाया गया, फिर उसे मुफ्त किया गया और बाद में जब लोगों को जरूरतें उससे पूरी होने लगी बहुत से काम आसान होने लगे तो लोगों ने इन्टरनेट इस्तेमाल करने के लिए खुद के पैसे खर्च किया। कितने समय तक कंपनी को नुक्सान झेलना पड़ा। आज हम भी उस मोड़ पर खड़े हैं जहाँ सबको मिलकर कदम उठाने होंगे ताकि देश के हर घर में इन्टरनेट पहुंचे, कोई इससे वंचित न रहे। खासकर हमारे स्टूडेंट्स, हमारा युवा जिन्हें हम देश का भविष्य कहते हैं।