मौजूदा दौर में इंटरनेट का महत्व बहुत खास है। आज यह अधिकांश लोगों के जीवन का खास हिस्सा बन गया है। बिना इसके काम करना मुश्किल हो गया है क्योंकि आज के इस भागदौड़ भरी जिंदगी में किसी के पास समय नहीं है। या यूं कहें कि लोगों ने रचनात्मक जीवन जीने के शॉर्टकट तरीके खोज लिए हैं। बदलते समय के साथ सब कुछ बदल गया है। किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए घर से बाहर जाने की जरूरत नहीं है। इंटरनेट से हर जरूरी काम पूरे हो जाते हैं। स्कूल में, ऑफिस, प्राइवेट कंपनी, पोस्ट ऑफिस, बैंक हर जगह इंटरनेट जिंदगी की मूलभूत आवश्यकता है। इसके बिना कोई भी काम पूरा नहीं किया जा सकता है।
आज जिंदा रहने के लिए भी इंटरनेट चाहिए
इंटरनेट से घर बैठे बैठे देश-विदेश हर जगह की जानकारी प्राप्त हो सकती है अर्थात सूचनाओं का विस्फोट हो रहा है। जिस तरह जिंदा रहने के लिए खाना जरूरी है, उसी प्रकार से आज मनुष्य के लिए इंटरनेट भी एक बहुत बड़ी जरूरत बन चुका है। यह जरूरी भी है क्योंकि बिना इंटरनेट के कोई भी कार्य करना असंभव हो गया है। खासकर आंकड़ों से जुड़ा कार्य। अगर हम कोविड काल की बात करें तो उस टाइम पर लोगों ने इंटरनेट का भरपूर इस्तेमाल किया। घर से बैठकर ही ऑफिस के सारे काम, पढ़ाई ,बच्चों के ऑनलाइन एग्जाम। उस दौरान लोग एक दूसरे से मिल भी नहीं पाते थे, लेकिन इंटरनेट की सुविधा ने हर असंभव कार्य को संभव कर दिया था। अब इंटरनेट सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं रह गया था, बल्कि जीवन शैली का एक हिस्सा बन चुका है।
गांवों में किशोरियाँ इंटरनेट से है दूर
लेकिन आज भी हमारे ग्रामीण दूरस्थ क्षेत्रों में में इंटरनेट के लिए खास तौर से किशोरी बालिकाओं और महिलाओं को जूझना पड़ता है। आंकड़े बताते हैं कि अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं तकनीकी दक्षताओं से दूर हैं। कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र है जहां पर अभी भी इंटरनेट की सुविधा नहीं है। ऐसे दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क नहीं आता है जिसकी वजह से महिलाएं न तो आत्मनिर्भर बन पाती हैं और न ही कुछ सीख पाती हैं। सबसे अधिक कष्टों का सामना किशोरी बालिकाओं को करना पड़ता है। इंटरनेट के असुविधा के कारण न तो वह अपनी पढ़ाई कर पाती हैं और न किसी चीज को सर्च कर पाती हैं। कई बार उनके जरूरी फॉर्म या जानकारियां भी छूट जाती हैं। ऑनलाइन या डिजिटल होती दुनिया में वे कैसे संघर्ष करें यह एक बड़ा सवाल है?
महिलाओं को नहीं है मोबाईल इस्तेमाल का अधिकार
किशोरियों को इंटरनेट के लिए अपने भविष्य के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। कई बार तो बच्चों के पास फोन ही नहीं होते हैं। उनके माता-पिता उन्हें मोबाइल दो कारणों से नहीं देते हैं। पहला कि उनकी इतनी आमदनी नहीं है कि वह उन्हें ऐसे फोन दिला सकें और दूसरी बात वह यह सोचते हैं कि ऐसे फोन के इस्तेमाल से लड़कियां बिगड़ जाएंगी, तो समाज में उनकी इज्जत चली जाएगी। इस बात पर जब उनसे पूछा गया कि क्या आप यही सोच रख कर अपने बेटे को भी मोबाइल नहीं देते होंगे? तो उनका कहना था कि लड़के अगर कुछ गलत भी करते हैं तो कोई बड़ी बात नहीं। यहां पर लैंगिक भेद भी साफ तौर पर नजर आता है। अभी भी हमारे उत्तराखंड राज्य के कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र है जहां यह मानसिकता आम बात है और इस बात की सर्वप्रथम शिकार किशोरी लड़की और महिला होती है।
विषम क्षेत्रों में जाकर इंटरनेट का करना पड़ता है
सुबह जल्दी उठकर किशोरी बालिकाएं घर का सारा काम करती हैं, स्कूल जाती हैं, फिर शाम को घर आती हैं। जिन लड़कियों के पास फोन है वह अपने मवेशियों के लिए घास चारा लेने जंगल जाती हैं। फिर जंगल की ऊंची ऊंची पहाड़ियों पर चढ़कर जहां पर उनको इंटरनेट की सुविधा मिलती है। वहां पर वह अपना इंटरनेट कनेक्ट करने की कोशिश करती हैं और इंटरनेट कनेक्ट करते-करते कई बार उनके साथ ऐसे हादसे हो जाते हैं जिसके विषय में हम सोच भी नहीं सकते हैं। अंत में, इन लड़कियों को मानसिक यातनाएं सहनी पड़ती हैं। लोग इन लड़कियों के लिए गलत विचारधाराएं बना लेते हैं। ऐसा ही एक गांव लमचूला है, जो उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के गरुड़ ब्लॉक में स्थित है। यह गरुड़ ब्लॉक से लगभग 27 किमी की दूरी पर स्थित है। इस गांव की आबादी लगभग 15 से 20 परिवार है।
लमचूला, बेहद खूबसूरत पहाड़ियों ,नदियों, पेड़ पौधों, कच्ची पक्की सड़कों तथा छोटी छोटी पगडंडियों के बीच स्थित है। जहां नेटवर्क की सुविधा बिल्कुल भी नहीं है। इस बारे में किशोरी बालिका, दीपा जो कक्षा 12 की छात्रा है, कहती हैं, “लॉकडाउन के दौरान हमारे पास फोन नहीं था और बोर्ड की परीक्षा हमारे सर पर थी। स्कूल जाना बंद ही हो गया था। वह दौर बहुत कठिन था। ऐसा मुश्किल दौर फिर कभी हमारे जीवन में हाहाकार मचाने न आए क्योंकि न हमारे पास इंटरनेट की सुविधा थी, न फोन था और ना ही टीचर तक पहुँच। उस समय किताबों का ही एकमात्र सहारा था। खुद से ही पढ़ाई की और अगर किसी के फोन में इंटरनेट आता था तो हम उससे विनती करते थे कि हमें थोड़ा सा इंटरनेट दे दो, तो हमें इसके लिए भी बहुत ताने सुनने पड़ते थे। इस कारण हमें बहुत दुख होता था।”
कविता कक्षा 12वीं की छात्रा है। वह कहती हैं, “हम बहुत ऊंचे-ऊंचे पहाड़ियों पर इंटरनेट चलाने के लिए जाते हैं। दूर-दराज जगह पर जाने के लिए भी हमें कई लोगों के ताने सहने पड़ते हैं।” गांव की बुजुर्ग महिला खगोती देवी कहती हैं, “मेरे दोनों बेटे दूर शहरों में नौकरी करते हैं। इंटरनेट की असुविधा के कारण महीनों तक मेरी अपने बच्चों से बात नहीं हो पाती है। मुझे कभी-कभी तो लगता है कि अपने बच्चों से बात करें बिना ही न मर जाऊं। मुझे बहुत दुख होता है।” गांव के प्रधान पदम राम का कहना है कि अभी भी वास्तव में आज इंटरनेट हमारे जीवन की बहुत बड़ी जरूरत बन चुकी है। आज भी हमारे गांव घरों में नेटवर्क की सुविधा नहीं है। जिसकी वजह से बच्चों को बहुत ही दिक्कत होती है। बच्चे अपनी पढ़ाई से जुड़ी चीजों को जानने की कोशिश नहीं कर पाते हैं और अगर किसी को कोई नई चीज सीखनी है तो उसको भी सर्च नहीं कर पाते हैं।
पदम राम कहते हैं कि कई बार जरूरी सूचनाएं समय पर नहीं पहुंच पाती हैं, जो कि बहुत आवश्यक है। लेकिन उनका पूरा प्रयास रहेगा कि वे अपने गांव का विकास कर सकें और अपने गांव में इंटरनेट टावर लगवा सकें ताकि उनके गांव में भी वह सारी सुविधाएं हो जो शहरों में होती हैं। उनके गांव के बच्चे भी अपने भविष्य को उज्जवल बना सकें, जरूरी फॉर्म भर सकें। उन्हें भी शहरों जैसी सुविधाएं उपलब्ध हो सके।
नीलम ग्रेंडी, गरुड़, उत्तराखंड चरखा फ़ीचर