हर बार कहूं या हर आंकड़ों को पलटकर देखूँ जातिगत मसला हर घटना और हर खबर के पीछे जुड़ी होती है। वैसे आज भी यह देखने को मिलता है कि सामान्य जाति के 8 प्रतिशत लोगों तक लैपटॉप या कंप्यूटर की पहुंच है। वहीं दूसरी ओर अनुसूचित जाति, जनजाति समुदायों के बीच मात्र 2% या 1% पहुंच है। जाति भेदभाव के चलते आने वाली भावी पीढ़ियों को सोशल मीडिया की भूमिका से वंचित रखा जा रहा है। जहां सामान्य जाति के लोगों के पास 8% तक सोशल मीडिया की सुविधा है वहीं दूसरी ओर अनुसूचित जाति वालों के पास 1% तक की। यह आंकड़ा उस समुदाय की भावी पीढ़ी के भविष्य पर प्रभाव डालता है। जहां सवर्ण लोग इन सुविधाओं का भरपूर लाभ उठाती है, वहीं दलित और बहुजन अपने भविष्य के बारे मे सोचती हैं। सोशल मीडिया के इस दौर में बिना लैपटॉप या कंप्यूटर के जीवन कैसे सफल हो पाए? गांव हो या जातिगत मसला, सोशल मीडिया का दौर बड़ी तेजी से चला आ रहा है। हाशिये पर रह रही समुदाएं ऐसी असमानता के सामने कैसे आगे बढ़ पाएगी?
ग्रामीण क्षेत्र में जातिगत भेदभाव और डिजिटल पहुँच
मैं एक ऐसे ग्रामीण क्षेत्र से हूँ जहां जातिगत भेदभाव सबसे ज्यादा किया जाता है। अनुसुचि जाति को सवर्ण जातियों से कम समझा जाता है। आज के इस दौर से ग्रामीण क्षेत्र भी जुड़ रहा है। जहां पर सवर्ण जाति के लोगों को सोशल मीडिया का भरपूर लाभ मिल रहा है। वहीं इस भेदभाव के चलते सोशल मीडिया कैसे अपनी भूमिका निभाएगा? अनुसूचित जाति को हर लाभ से वंचित रखा जाता है। कंप्यूटर के दौर में आज भी जातिगत भेदभाव बीच की दीवार बन गई है। गांव की किशोरी हिमानी हरकोटिया कहती हैं, “जाति भेदभाव गांव में आज भी बहुत बड़ी समस्या है। एक बार हमारे गांव में कंप्यूटर सिखाया जा रहा था। वहां पर जो कंप्यूटर सिखाने वाली महिला थी, वह सामान्य जाति की थी। वह अनुसुचित जाति के लोगों को कंप्यूटर सिखाने से मना करती थी।”
सालों से होता चला आ रहा है भेदभाव
नेहा आर्य का कहना है कि जब उनकी एक सहेली सोशल मीडिया के एक समूह से जुड़ी, तो मैंने भी उसे जुड़ने को कहा। मेरी सहेली सामान्य जाति से थी तो उसने बोला, “यह समूह अनुसूचित जाति वालों के लिए नहीं है।” ग्रामीण महिला खष्टी देवी कहती हैं, “मैं एक स्कूल में कर्मचारी के रूप में कार्यरत हूँ। समाज की नजरों में अनुसूचित जाति को सामान्य दर्जा नहीं दिया जाता है।” सोशल मीडिया की तेज दौड़ में अनुसूचित जातियां आज भी काफी पीछे हैं। सरकार की तरफ से भी 8 प्रतिशत कंप्यूटर सवर्ण जाति को दिए गए हैं। गांव की बुजुर्ग महिला नीमा देवी कहती हैं, “यह भेदभाव बहुत पहले से किया जाता रहा है। नीची जाति वालों को हमेशा कम दर्जा दिया जाता है।”
आज वही स्थिति सोशल मीडिया पर भी देखने को मिलती है। जहां सोशल मीडिया का दौर ही जीवन यापन करने का सरल तरीका है। वहीं अनुसूचित जातियां इससे दूर हैं। सरकार द्वारा अनुसूचित जाति वालों को 2% ही लैपटॉप दिए गए हैं। जातिगत भेदभाव के साथ -साथ सोशल मीडिया से संबंधित घटनाएं पता चलती हैं। अगर हम आंकड़ों को पलट कर देखें तो अनुसूचित जातियां पिछड़ी ही समझी जाती हैं, जो उनकी मानसिकता को प्रभावित करती है। समाज की नजरों में समान दर्जा उन्हें नहीं दिया जाता है।