आज तुम्हारा दिन है ये कहने का हक़ नहीं मुझे,
मैंने तुम्हें बांध के रखा है, तुम्हारे पंख को पकड़कर रखा है
पिंजड़े की उस कोठरी में तुम्हारे लिए घर सजाकर रखा है
कहीं उड़ न जाओ तुम कभी, इसलिए पायल भी पहना कर रखा है
मैं इस पुरुष प्रधान में जन्मा एक मनुष्य हूँ,
जो तुम्हारे हक़ की बात भी करता हूँ, आरक्षण के नाम पर तुम्हें आगे बढ़ने का साथ भी देता हूँ
पर ये अधिकार दिया किसने मुझे?
जो तुम्हें तुम्हारे ही अपने अधिकार को मैं देने की बात करता हूँ
तुम्हें काम की भी आज़ादी देता हूँ, घूमने-फिरने और सांसद में बोलने की भी आज़ादी देता हूँ,
रोज़ तुम्हारी ही गलियों में चलने की आज़ादी नहीं देता,
पर जहाज उड़ाने का अधिकार मैं देता हूँ
रात के अंधेरों से डराकर रखता हूँ,
पर तुम्हारे हक़ की बात करता हूँ
पर मैं हूँ कौन जो तुम्हें तुम्हारी ही पहचान बनाने का दिन देता हूँ
महिला दिवस पर तुम्हें प्रणाम करता हूँ!