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“लड़के दिन भर फेसबुक करते हैं पर हमारी पढ़ाई तक छूट जाती है”

Girl holding a notebook in rural India

Girl holding a notebook in rural India

आज का युग तकनीक का युग है। सूचना क्रांति के इस दौड़ में पूरी दुनिया ग्लोबल बन गई है। सूचना भेजने से लेकर प्राप्त करने तक सभी कार्य सुलभ हो गए हैं। जैसे ऑनलाइन परीक्षा, बैंक, लेन देन, व्यापार धंधा, पढ़ाई, देश दुनिया के समाचार, सूचना भेजना आदि की जानकारी प्राप्त करना बहुत आसान हो गया है। स्मार्ट मोबाइल के आ जाने से सारा काम चुटकियों में हो जाता है। पढे लिखे के अलावा अनपढ़ भी फोन का इस्ताल करते हैं। मोबाइल ने मुश्किल काम को भी आसान बना दिया है। भारत में केवल 27% लोग ही ऐसे हैं जिसमें केवल एक व्यक्ति के पास ही इंटरनेट की सुविधा उपलबध है। वहीं 12.5 प्रतिशत छात्र ऐसे हैं जिनके पास इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है। महिलाओं की बात की जाए तो 16% महिलाएं ही इंटरनेट से जुड़ी हैं। यह लैंगिक भेदभाव को भी साबित करता है।

डिजिटल साक्षरता से कोसों दूर महिलाएं

उत्तराखंड का बागेश्वर ज़िले का पोथिग गांव, जो बागेश्वर से 45 किमी की दूरी पर बसा है। इस गांव की लड़कियां डिजिटल साक्षारता से कोसों दूर हैं। यहां फोन की सुविधा तक उपलब्ध नहीं है। गांव की किशोरी पूजा का कहना है डिजिटल साक्षर न होने की वजह से हमें बहुत परेशानी उठानी पड़ती है। सबसे ज्यादा तकलीफ महिलाओं और लड़कियो को उठानी पड़ती है। उन्हें इंटरनेट की सुविधा से दूर रखा जाता है। जबकि लड़के दिन भर सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसी चीजों में व्यस्त रहते हैं। उनकी पढ़ाई तक छूट जाती है। इसी मुद्दे पर गांव की किशोरी राखी का कहती हैं, “हमारे घर में तो आधुनिक फीचर के मोबाईल फोन तो हैं, पर हमारे गांव में नेटवर्क नहीं आता है। हमारे गांव में अभी तक टावर उपलब्ध नहीं है। हमें अपनी ऑनलाइन क्लास के लिए उपर पहाड़ों पर जाना पड़ता है।”

किशोरियों के इंटरनेट के इस्तेमाल पर सवाल

हमारे इंटरनेट चलाने पर गांव के लोग तरह-तरह की बातें बनाते हैं। हमारे घर वालों को हमारे खिलाफ भड़काते हैं। हमारे चरित्र पर उंगलियां उठाते हैं। बोलते हैं कि तुम्हारी बेटी बिगड़ रही है। जबकि यह वह दौर है जिसमें हर बच्चे के पास डिजिटल सुविधा होनी चाहिए, चाहे लड़का हो या लड़की, दोनों को बराबर का हक होना चाहिए। महिलाओं को भी यह सब सुविधाएं मिलनी चाहिए। लड़कियां डिजिटल साक्षरता से कोसों दूर हैं। अगर बच्चों को छोटी उम्र से ही कंप्यूटर का ज्ञान होगा तो बड़े हो कर इंजीनियर और डॉक्टर बन सकते हैं। लड़कियों को तो यहां घर के काम से ही फुर्सत नहीं होती है। गांव के ज्यादातर लोग अपने बच्चों पर ध्यान नही देते हैं। बस उन्हें अपने घर के काम से मतलब है।”

गांव के युवा विनोद कहते हैं, “इस समय हर व्यक्ति के पास डिजिटल साक्षरता जैसी सारी सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए। अगर बच्चे को छोटी उम्र में ही ज्ञान होगा तो उसे बाद में कोई भी परेशानी नही आएगी। यहां सबसे ज्यादा परेशानी लड़कियों को होती है। वह अपनी पढ़ाई नहीं कर पाती हैं।” गांव की महिला लीला देवी कहती हैं, “हम अपने बच्चों की पढ़ाई के मामले में पूरा सहयोग करते हैं। हम ने उन्हें अच्छा स्मार्टफोन भी दिया है, जिससे उनकी पढ़ाई अच्छे से हो सके। हमारे बच्चों को अपनी पढ़ाई करने के लिए 10 किमी दूर जाना पड़ता है, जिससे उन्हें बहुत परेशानी होती है।”

गांव की प्रधान चंपा देवी का कहना है कि डिजिटल समावेश को बढ़ावा देना चाहिए। सबसे ज्यादा ज़रूरी लड़कियो और महिलाओ को है। हर किसी के लिए डिजिटल समावेश जरुरी है। अगर हर किसी को ज्ञान होगा तो वह अपना काम आसानी से कर सकते हैं। आजकल सारा काम स्मार्टफोन से होता है जैसे किसी को पत्र भेजना या पैसे भेजना आदि। गांव के टीचर चंद्र देव का कहना है कि आज का समय डिजिटल साक्षरता का युग है। ग्रामीण क्षेत्रो में डिजिटल साक्षरता की सुविधा नही होती है। शहरों में सब सुविधाएं होती हैं। पर गांव में नही होती है। यहां लड़कियों के पास कोई भी सुविधा नही है। इसकी सबसे बड़ी वजह सरकारी उदासीनता है। सरकार ग्रामीण क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान नही देती है। 

सीमा मेहता, कपकोट, उत्तराखंड चरखा फ़ीचर

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