पिछले कुछ सालों में भारत विकास की ओर तेजी से आगे बढ़ा है। 21वीं सदी का भारत डिजिटल रूप से लैस हो चुका है। टेक्नोलॉजी से लेकर बैंकिंग सेक्टर तक, सभी क्षेत्रों में यह दुनिया का सिरमौर बन कर उभर रहा है। देश के लगभग सभी बड़े शहर नवीनतम टेक्नोलॉजी से लैस हो चुके हैं। नई पीढ़ी इसी टेक्नोलॉजी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है। लेकिन इसके बावजूद देश की राजधानी दिल्ली के कुछ ऐसे भी इलाके हैं, जहां की युवा पीढ़ी अभी तक इस टेक्नोलॉजी यानि डिजिटल साक्षरता के प्राथमिक ज्ञान से भी अछूती है। इसमें एक बड़ी संख्या किशोरियों की है। आज भी झुग्गी और कच्चे घरों में विशेषकर आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर परिवारों की कई ऐसी किशोरियां हैं जो डिजिटल साक्षरता में काफी पिछड़ी हुई हैं। इन्हें आधुनिक स्तर पर एकसार में लाना ज़रूरी है।
कोरोना काल में जब समूचे भारत में लॉकडाउन हो चुका था, स्कूलें बंद कर ऑनलाइन क्लासें चलाई जाने लगीं और बच्चे घर बैठे मोबाइल पर ऑनलाइन क्लासेस के माध्यम से शिक्षा ग्रहण करने लगे थे, ऐसे समय में डिजिटल साक्षरता का महत्त्व काफी बढ़ गया था। लेकिन इसका दुष्परिणाम यह रहा कि जो किशोरियां आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों से थीं, जिन्होंने कभी एंड्राइड मोबाइल चलाया नहीं था, उन्हें इस दौरान सबसे अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
डिजिटल साक्षरता है सभी के लिए जरूरी
इस संबंध में राजकीय सर्वोदय कन्या विद्यालय, उत्तम नगर में दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली कविता बताती है, “कोरोना महामारी के दौरान मैंने अपने पापा को कोविड होने के कारण खो दिया। मेरे घर में एकमात्र मेरे पापा ही कमाते थे। उनके जाने के बाद हमारी आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय हो गई और लॉकडाउन लगने की वजह से स्कूल का सारा कार्य ऑनलाइन डिजिटल डिवाइस पर आने लगा। डिजिटल उपकरण के उपयोग से अनजान होने के कारण मुझे बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा।” कविता की कहानी से पता चलता है कि डिजिटल साक्षरता का ज्ञान होना कितना जरूरी है।
हकीकत में, डिजिटल साक्षरता हमारे दैनिक जीवन में बहुत अहम भूमिका अदा करता है। यह आगे बढ़ने और उन्नति करने के लिए बहुत जरूरी है। इसका ज्ञान युवाओं और किशोरियों को सशक्त बनाता है। यह उन्हें किसी पर निर्भर होने से रोकता है। विशेषकर इससे किशोरियों में आत्मविश्वास बढ़ता है और साथ ही साथ वह खुद को आत्मनिर्भर महसूस करती हैं। आज के समय में डिजिटल से जुड़े सभी कार्य किशोरियाँ स्वयं कर सकती हैं। अगर उन्हें डिजिटल साक्षरता का ज्ञान हो, तो वह एडमिशन फॉर्म भरने से लेकर ऑनलाइन पैसे की आवाजाही जैसे सभी कार्य स्वयं कर सकती हैं। डिजिटल साक्षरता होने से वह अपने आपको सुरक्षित और सशक्त महसूस करती हैं। बात केवल शहरी क्षेत्रों तक सीमित नहीं है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी डिजिटल साक्षरता का काफी महत्व है। अगर ग्रामीण इलाकों की बात की जाए, चाहे खेती से जुड़ी जानकारी प्राप्त करनी हो या फिर सरकार की किसी भी योजनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करना हो इंटरनेट का उपयोग हर स्तर पर हो रहा है।
सरकार द्वारा 2016 से डिजिटल साक्षरता अभियान भी लागू किया था ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इन माध्यमों का इस्तेमाल करना सीख सकें और ग्रामीण क्षेत्रों में भी इसके उपयोग में वृद्धि हो सके। किशोरियों के लिए इंटरनेट तथा कम्प्यूटर बहुत महत्त्वपूर्ण माध्यम है, जो न सिर्फ उनकी पढ़ाई बल्कि बेहतर नौकरी मिलने की सम्भावना को भी बढ़ाता है। इन तकनीकी साधनों के असीम फायदे हैं जो किशोरियों के बेहतर भविष्य में मदद करते है और ग्रामीण जीवन के उनके संघर्षों से जूझना आसान बनाते हैं। भारत की युवा आबादी को इतना डिजिटल साक्षर बनाने का प्रयास करना है कि वह डिजिटल उपकरणों जैसे मोबाइल फोन, कंप्यूटर आदि पर किसी सूचना के लिए इंटरनेट पर खोज सके और ईमेल भेजने और प्राप्त करने में सक्षम हो सके। इस बात से अब इंकार नहीं किया जा सकता है कि डिजिटल शिक्षा हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है और इसे सिखाने का प्रयास और प्रचार विद्यालय भी कर रहे हैं। इसी के साथ यह भी ज़रूरी है कि स्कूलों के पास कंप्यूटर और इंटरनेट की उपलब्धता भी हो।
किशोरियों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है डिजिटल शिक्षा
बात जब किशोरियों की आती है तो यह हकीकत है कि हमारा समाज किशोरों की अपेक्षा किशोरियों को कम महत्व देता है। समाज की यह संकीर्ण मानसिकता कई बार तब सामने आती है, जब घर हो या बाहर, लड़कों की अपेक्षा लड़कियों को कमतर आंका जाता है। हालांकि कई मंचों पर लड़कियों ने लड़कों की अपेक्षा खुद को सर्वश्रेठ साबित करके दिखाया है। किशोरियों में उनकी प्रतिभा को सामने लाने और उन्हें भी टेक्नोलॉजी में दक्ष करने के लिए जहां सरकार की ओर से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं तो वहीं दूसरी ओर विभिन्न सामाजिक संगठन भी उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए अपने पाने स्तर पर काम कर रहे हैं। इसी कड़ी में प्रोत्साहन इंडिया फाउंडेशन का नाम भी सामने आता है जो दिल्ली स्थित साउथ वेस्ट स्लम नगरीय क्षेत्र में बच्चों विशेषकर किशोरियों को डिजिटल और जीवन कौशल शिक्षा पर जागरूक बनाने की पहल कर रही है।
आर्थिक तंगी में कैसे होगा डिजिटल दुनिया तक पहुँच
इस संबंध में संस्था की युथ पीयर लीडर सोनी कहती हैं कि उनके सेंटर पर डिजिटल और जीवन कौशल जागरूकता का प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि किशोरियां डिजिटल रूप से साक्षर हो सकें। ट्रेनिंग में उन्हें डिजिटल साधनों के लाभों की जानकारी के साथ-साथ उन्हें इसका प्रयोग करना भी सिखाया जाता है। इसमें कंप्यूटर चलाना, ईमेल लिखना, इंटरनेट का उपयोग और दुरुपयोग के बारे में भी समझाया जाता है। ट्रेनिंग से उन्हें कंप्यूटर की बेसिक शिक्षा दी जाती है और आधार कार्ड बनाने का ज्ञान सिखाया जाता है। उसका मानना है कि वर्तमान में कंप्यूटर ही किशोरियों के भविष्य को उज्जवल कर सकता है। इसीलिए किशोरियों को अधिक से अधिक डिजिटल साक्षरता की ओर बढ़ना चाहिए और इसमें उन्हें बढ़-चढ़ कर भागीदार निभानी चाहिए। उनके अनुसार आज हर क्षेत्र में डिजिटल साक्षरता का उपयोग है। अगर हम एक डिजिटल साक्षर भारत चाहते है तो हमें इसमें किशोरी अधिक से अधिक बढ़ावा देना और उन्हें इस क्षेत्र में सशक्त बनाने की ज़रूरत है। सोनी कहती हैं कि ट्रेनिंग में हिस्सा लेने वाली किशोरियों के घर की आर्थिक स्थिति का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह उन्हें कहती हैं, “दीदी, घर में आटा नहीं है, तो डाटा कहां से लाएंगे?”
संस्था के आईटी ट्रेनर गोविंद राठौर कहते हैं, “आधुनिक समय में किशोरियों में डिजिटल साक्षरता का ज्ञान होना बहुत ज़रूरी है क्योंकि यह उन्हें आत्मनिर्भर बनाती है। उनके लिए रोजगार के कई रास्ते को खोलती है।” गोविंद राठौर आईटी ट्रेनर के साथ-साथ किशोरियों के अधिकारों को दिलवाने, उन्हें साइबर क्राइम के खिलाफ सजग करने और वित्तीय साक्षरता पर सशक्त करने का भी काम करते हैं। वहीं डिजिटल साक्षरता की ट्रेनिंग प्राप्त कर रही सुनीता बताती है, “जब मैंने पहली बार कंप्यूटर चलाया तो मैं बहुत खुश हुई। मुझे लगा कि मैं अपने सारे डिजिटल से जुड़े कार्यों को कर पाउंगी और मुझे किसी पर भी निर्भर होने की जरुरत नहीं होगी। मैं अब अन्य लोगों की भी मदद कर सकती हूं। वह आत्मविश्वास के साथ कहती है कि जैसे मेरे मन से कंप्यूटर न चला पाने का डर निकला वैसे ही एक दिन सभी लड़कियों के दिल से भी यह डर निकल जाएगा और वह भी डिजिटल रूप से साक्षर हो जाएंगी।”
एक अन्य किशोरी ममता कहती है, “जब मैंने डिजिटल रूप से सरकारी योजनाओँ का उपयोग करना सीखा तो मैंने घर के लोगों का लेबर कार्ड बनाया। आय का स्रोत भी बनाया जिससे उन्हें आर्थिक मदद मिली। आज वह मुझ पर गर्व करते हैं। मुझे खुशी है कि मैं अपने सपनों को पूरा कर पा रही हूं।” एक अन्य किशोरी बताती है कि लॉकडाउन के दौरान कोई कौशल न होने के कारण उसे बहुत सी दिक्क्तों का सामना करना पड़ा था। तत्पश्चात उसने डिजिटल ज्ञान प्राप्त किया और आज वह अच्छी जॉब पर कार्यरत है। वह अपने घर वालों को आर्थिक रूप से मदद भी करती है।
प्रोत्साहन इंडिया फाउंडेशन के द्वारा साल 2021 में 64 स्लम क्षेत्रों में किए गए एक सर्वे के दौरान आंकड़े सामने आए है कि मात्र 50.8% छात्राओं के पास डिजिटल डिवाइस उपलब्ध है। केवल 33.6% छात्राओं के पास ही अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए डिजिटल डिवाइस उपलब्ध है। शेष अन्य 15.7% छात्राओं को बड़ी मुश्किल से ही अपना कार्य पूरा करने के लिए डिजिटल डिवाइस उपलब्ध हो पाता है। यह आंकड़ा इस बात को दर्शाता है कि इस डिजिटल युग में किशोरियां अभी भी डिजिटल साक्षरता से काफी दूर हैं। इस दूरी को मिटाने के लिए डिजिटल डिवाइस तक उनकी पहुंच को आसान बनाना बहुत ज़रूरी है।
यह आलेख संजॉय घोष मीडिया अवार्ड 2022 के तहत दिल्ली से माला कुमारी ने चरखा फीचर के लिए लिखा है.