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हिन्दी कविता: चाटुकारिता

घूमते हैं यूँ आगे पीछे,

गजब! बेरोज़गारी का आलम है

आता नहीं जिन्हें खुद से खाना

रहमों करम पर लालन-पालन है

चाटते हैं यूँ ऊपर-नीचे

लालच है या प्रलोभन है ?

फेंके हुए टुकड़ों पर है जीना

अंग्रेजी दौर से यही, प्रचलन है।

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