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हिन्दी कविता: इंतज़ार में हूं

मुझे कोई डर तो नहीं

बस एक सपना याद आता है

मुझे कोई नाराज़गी नहीं

बस तुझे परेशान देखा नही जाता

मुझे कोई संदेह नहीं

बस खुद पे भरोसा नहीं हो पाता

मेरा कोई दुश्मन नहीं

बस मैं किसको दोस्त कह नहीं पाता

मुझे कोई बीमारी तो नही

बस मैं बोल नहीं पाता

मुझे कुछ नापसंद तो नहीं

बस मैं अपनी पसंद दिखा नहीं पाता

मुझे भरोसा तो नहीं खुद पे

बस मैं किसी को समझा नहीं पाता

मैं घुट तो रहा हूं ख़ुद में

बस मैं किसी को बता नहीं पाता

हर दिन एक नई चोट दे रहा है मुझे

बस मैं हार मान नहीं पा रहा

जिन्दगी से अब कोई उम्मीद तो नहीं मुझे

बस आख़िरी रात के इंतजार में हूं

कोशिश तो बहुत कर चुका हूं

बस कोशिश के सफल होने के इंतजार में हूं।

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