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“आधुनिकता का मतलब रचनात्मकता होता है, दिखावा नहीं”

समय के साथ बदलाव होता है और यही समय का मांग भी है। यह समय की प्रकृति है कि” जैसे-जैसे आगे की ओर बढता है, बदलाव करता जाता है। नियम भी यही है कि” मानव समय के साथ निरंतर ही प्रगति करता चला जाता है। समय के साथ ही ऊँची-ऊँची बिल्डिंगे बनती जाती है, सड़कों का चौड़ी करण होता चला जाता है। समय के साथ ही मनुष्य का आहार-विहार, उसके रहन-सहन और उसके व्यवहार में अमूल-चूल परिवर्तन होता है। यह नेचुरल भी है और यही होता भी है।

परन्तु…..जब इस बदलाव से अलग कुछ हम स्वीकार करने लगते है, अपनाने लगते है, तो वह दिखावा करना हो जाता है। जब हम अपने मूल को ही भूल कर अलग दिखने की कोशिश करने लगते है, तब वह दिखावा कहलाता है। आज-कल हो भी यही रहा है। चारों तरफ एक अजीब सा प्रवाह चल रहा है दिखावा करने की। विकास की रफ्तार तो ठीक है, किन्तु” उसमें रचनात्मकता का सर्वथा अभाव दिखता है। आज-कल तो इस बात की होड़ सी लगी हुई है कि” हम दिखावे में कितना आगे निकल रहे है।

आज-कल आम बात सी हो गई है बढा-चढा कर दिखाने की। हम अगर एक छोटा सा भी आयोजन करते है, तो हमारे मन में तीव्र उत्कंठा रहती है कि” समाज में किस तरह से अपने दबदबे को कायम किया जाए। बस’ इस होड़ में हम भूल जाते है कि’ इसमें जो रचनात्मक करना था, उसका सर्वथा अभाव है। हम उस मूल बिंदु को ही भूल जाते है, जहां से रचनात्मक विकास की शुरुआत होती है। बस दिखावा करना है और दिखावे की संस्कृति को मजबूत करना है।

इसका परिणाम भी हितकर नहीं हो रहा। आज-कल हम दिखावे की संस्कृति से इस तरह से चिपक गए है कि” हम अपने-आप को ही भूल गए है, उस धरातल को ही भूल गए है, जिसपर हम खड़े है और जो हमारा आधार-स्तंभ है। हम इस बात को भूलते जा रहे है कि” मानव का नैतिक दायित्व है , जो हम उन संस्कारों को, उन चारित्रिक विशेषताओं को खुद से अगली पीढी को ट्रांसफर करें। परन्तु…..हम अपने दायित्व से बेखबर होकर बस इसी बातों पर हावी होते रहते है कि” किस प्रकार से हम दूसरे पर हावी हो।

हम इसी उद्देश्य को पूर्ति करने के लिए हमेशा प्रयासरत रहते है। हम तो इस बात से बिल्कुल बेखबर होकर बस अपने मन की करते रहते है, जिसके फलस्वरूप आने बाली पीढी पर इसका विपरीत असर हो रहा है। दिखावे रुपी विष धारा से पोषित होकर आने बाली पीढी और भी उद्दंड होती जा रही है। वह तो’ इस दिखावे रुपी विष से इतना ग्रसित हो चुका है कि” वह कुछ भी समझना नहीं चाहता। उसे तो बस मन की करने की, अपने इच्छाओं को पूर्ण करने की ही पड़ी है। वह तो बस अपने मूल को ही समझना चाहता है। आने बाली पीढी पूरी तरह उद्दंड हो चुका है।

अब बस जरूरत है कि” हम इस बात को समझे। इस बात को समझे कि” दिखावे की दुनिया से अलग भी रचनात्मकता की दुनिया है। आधुनिकता का अनुकरण करना गलत नहीं, क्योंकि “यह समय के साथ उपयुक्त है। परन्तु…..आधुनिक होने का यह मतलब नहीं कि” दिखावे के सैलाब में बहे। जरूरत है कि” हम आधुनिक होने के साथ ही रचनात्मक बने।

क्रमशः-

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