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“रवीश कुमार! विलेन, हीरो या एक अपराजेय योद्धा?”

रवीश कुमार

नमस्कार मैं रवीश कुमार! ये शब्द कभी बहुत अनजान हुआ करते थे लेकिन धीरे धीरे समय और संघर्ष के रास्ते अब यह लाइन बेहद चर्चित बन गई। देश के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने एनडीटीवी से इस्तीफ़ा दे दिया। इस बात को मानने से कोई इंकार नहीं कर सकता कि वे देश के चर्चित पत्रकार हैं। पसंदीदा या लोकप्रिय है या नहीं ये आपका अपना विवेक तय करेगा लेकिन अगर आप यह लेख पढ़ रहे हैं तो एक बात जान लीजिए कि मैं ना तो रवीश की जय – जयकार करने वालों में से हूं और ना ही उनका विरोधी।

कैसा पत्रकार बनना है?

एक पत्रकारिता का छात्र होने के नाते मुझे कई बार कहा जाता है कि कैसा पत्रकार बनना है? तभी सामने से ही जवाब आता है कि रवीश कुमार बनना है क्या ?, लेकिन मेरा जवाब होता है नहीं मुझे सिर्फ़ अपने आप को बनाना है। रवीश कुमार देशभर में चर्चा का विषय हैं क्योंकि रवीश कुमार एक निर्णायक भूमिका में दिखते हैं। उनके द्वारा प्रचलित गोदी मीडिया शब्द आज हर किसी मुंह पर आ ही जाता है।

ऐसे में एक बड़ा सवाल बेहद संवेदनशील और विवेकशील व्यक्तियों के मन में आता होगा कि क्या रवीश कुमार एक निष्पक्ष पत्रकार हैं? और इस सवाल के हज़ारों जवाब हैं लेकिन क्या इस सवाल का कोई विशेष महत्व है? क्या ऐसे सवालों से पत्रकारिता की गुणवत्ता बढ़ती या घटती है? अगर मुझसे पूछा जाएगा तो मेरा एक ही जवाब होगा नहीं। क्योंकि पत्रकारिता की प्राथमिकता समाज और देश होता है।

राजनीति पत्रकारिता में दूसरे नम्बर पर आती है इसलिए सबसे पहले जब पत्रकारिता की बात होती है और ज़मीनीं पत्रकारिता के मामले में हकीकत वाले मुद्दे उठाने में रवीश कुमार एक बेहतरीन पत्रकार है। हालांकि मैं यह भी नहीं मानता कि दूसरे चैनल या दूसरे पत्रकार यह काम करते ही नहीं है।

पत्रकारिता के अहम स्तम्भ

100 जनों की भीड़ जो कि एक निर्दोष को दोषी बता रही है, उनके सामने खड़े होकर आप एक पत्रकार के रूप में किसी बेगुनाह को गुनहगार बता रहे हैं तो क्या आप सही हैं? या फिर 100 जनों की भीड़ जो एक गुनहगार को गुनहगार बता रही है, उसे आप भी गुनहगार बता रहे हैं तो क्या आप गलत है? दरअसल “सत्य किसी मार्ग से गुज़रता है और झूठ उसके ऊपर झूठा कीचड़ उछलता है, तो वह सत्य झूठ नहीं हो जाएगा”

रवीश कुमार पत्रकारिता का एक बेहद अहम स्तंभ हैं लेकिन कई बार उनके शो में ऐसी बातें भी देखी जाती है जो पूरी तरह से सेलेक्टिव होती है और मैंने आपसे पहले भी कहा है कि मैं हवा के साथ जय जयकार करने वालों में से नहीं हूं। जो सत्य है वह है।

कॉंग्रेस शासन में रवीश कुमार और गुलाम नबी आज़ाद वाला किस्सा भी आपने सुना होगा लेकिन रवीश कुमार के प्रसंशक उनके निष्पक्षता के दावे के आगे उनके कई पक्षपात वाले कामों को फीका कर देते हैं। हालांकि मैं स्वयं रवीश कुमार की प्रशंसा करता रहता हूं। उनकी ज़मीनी मुद्दों पर रिपोर्ट मुझे बेहद प्रभावित करती है।

रोहित सर्दाना और रवीश

लेकिन मुझे बात तो वह भी करनी पड़ेगी जो रवीश कुमार के बारे में छुपाई जाती है। एक वक्त था जब वरिष्ठ पत्रकार रोहित सरदाना ने उनको एक लंबा खत लिखा था, लेकिन अपनी बेबाकी से के लिए मशहूर रवीश कुमार ने उस पत्र का जवाब नहीं दिया था। रवीश कुमार भारतीय पत्रकारिता में एक बेहद खास स्तंभ हैं। रवीश कुमार ने अब NDTV से इस्तीफ़ा दे दिया और अब वह अपना यूट्यूब चैनल चलाएंगे।

अगर मैं कहूं कि रवीश कुमार का रवैया हमेशा सत्ता विरोधी वाला है, तो ना कुछ गलत होगा न ही अतिशयोक्ति। पत्रकारिता को समझने वाले इस बात को बेहद अच्छे से समझते हैं कि सत्ताविरोधी होना गलत नहीं है। रवीश कुमार के कई मुद्दों पर अलग अलग स्टैंड होते हैं। चाहे वह मॉब लिंचिंग हो, या अपहरण के गुनहगारों को जस्टिफाई करना हो। और यह ऑन रिकॉर्ड है। अगर आपको इसमें किसी प्रकार का कोई झूठ लगता हो तो आप क्रॉस चेक कर सकते हैं। रवीश कुमार की पत्रकारिता हम सबके लिए आदर्श भी हैं।

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