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तिनका था

कविता

मैं आ रही!

आ रही मैं तुम्हारे नजदीक

अब तो तबियत भी  है ठीक

कुछ वक्त से तबियत  नाज़ुक थी ,

खुद की ज़्यादा कुछ खबर नहीं थी

तिनका था !

थोड़ा दूर था मुझसे

लेकिन डूबने की जगह मेरी दूर थी तिनके से

वक्त के साथ हो गया यकीन,

तैरने की कोशिश नहीं की मैंने सलीके से।

भरोसा था!

दूरियां कम‌ हो जाएंगी वक्त से

लेकिन वक्त से तो निकला बस वक्त ही ।

तबियत ठीक है‌ अब तन मन से ,

तैरना शुरू किया है ,आ रही मैं जल्द ही।

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